छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में ऐसा लग रहा है कि विकास के दावे पर बदलाव का नारा भारी पड़ गया। भाजपा अपने 15 साल की सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से का तोड़ नहीं निकाल सकी और न ही कांग्रेस के किसानों की कर्जमाफी और धान का समर्थन मूल्य 2500 रुपये क्विंटल, बकाया दो साल का बोनस और बिजली बिल आधा करने जैसे वादे का विकल्प जनता को दे सकी। यही वजह है कि संगठनात्मक रूप से कमजोर कांग्रेस का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। कहा जा रहा है कि लड़ाई भाजपा और जनता के बीच रही। जोगी कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री विधान मिश्रा का मानना है कि जनता का आक्रोश भाजपा के प्रति दिखाई दिया। जनता ही भाजपा से लड़ी है। तीसरे मोर्चे, यानी जोगी कांग्रेस और बसपा गठबंधन को जनता ने ज्यादा भाव नहीं दिया। यहां तीसरे मोर्चे को अधिकांश सीटों पर शायद वोट काटने वाले की भूमिका में ही देखा गया। कुछ गिनी-चुनी सीटों पर ही तीसरे मोर्चे की ताकत दिखी।
वोटिंग ट्रेंड से लग रहा है कि कर्जमाफी और धान के समर्थन मूल्य का मुद्दा गांवों में ज्यादा असरकारक रहा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल का कहना है कि किसानों के मुद्दे हमारी पार्टी को जीत दिलाएंगे। बघेल ने दावा किया कि कांग्रेस इस बार 90 में से कम से कम 50 सीटें जीतेगी। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील सोनी का कहना है कि राज्य में तो भाजपा की ही सरकार बनेगी। 2013 में कांग्रेस की सरकार बनने का माहौल बनाया गया। अंततः सरकार भाजपा की बनी। ग्रामीण इलाकों में वोटिंग 80 फीसदी तक दर्ज की गई। 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य में 76.35 फीसदी वोट पड़े हैं, जो 2013 के मुकाबले एक फीसदी कम है, लेकिन गांवों में शहरों के मुकाबले दो से सात फीसदी तक ज्यादा वोट पड़े। ग्रामीण इलाके वाले कुरुद विधानसभा में 89 फीसदी वोट पड़े, वहीं रायपुर जैसे शहरी इलाके की सीट रायपुर उत्तर और पश्चिम में वोटिंग 61 फीसदी को पार नहीं कर पाई। बस्तर का सुकमा इलाका हो या फिर मनेंद्रगढ़ और जशपुर, महिलाओं ने बढ़-चढ़कर वोटिंग में हिस्सा लिया। कोरिया जिले के भरतपुर सोनहट विधानसभा में महिलाओं के वोट पुरुषों के मुकाबले 3.54 फीसदी और जशपुर के कुनकुरी में 3.27 फीसदी ज्यादा रहे।
भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के चेहरे पर चुनाव लड़ी और उनकी सरकार के 15 साल की उपलब्धियों और विकास को आगे रखकर वोट मांगा। भाजपा सरकार ने लोगों को लुभाने के लिए मुफ्त में मोबाइल, टिफिन और कुकर बांटे। किसानों को धान का तीन साल का बोनस भी दिया। आदिवासी इलाकों में तेंदूपत्ता बोनस बांटा, लेकिन कांग्रेस के चुनावी घोषणा-पत्र में कर्जमाफी और किसानों-कर्मचारियों के लिए किए वादे ने शायद ज्यादा असर डाला। पुलिस भी भाजपा से नाराज दिखी। एक हवलदार ने कहा कि सरकार ने हमारा वेतन नहीं बढ़ाया और जब हमारे परिवारवालों ने इसे लेकर प्रदर्शन किया तो उनपर सख्ती की गई। चुनाव के शुरुआती दिनों में मतदाता मौन रहे, लेकिन मतदान के एक-दो दिन पहले रुख साफ करने लगे। कसडोल, बलौदाबाजार, चांपा, खरसिया, धरसींवा और सक्ती विधानसभा के मतदाताओं से बात करने से लगा कि मतदाता पहले से मन बना चुके थे कि उन्हें करना क्या है?
कांग्रेस राज्य में कोई चेहरा प्रोजेक्ट करने की जगह सामूहिक नेतृत्व पर चुनाव लड़ी और राहुल गांधी ही केंद्र में रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने ताबड़तोड़ सभाएं कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया, लेकिन नोटबंदी, जीएसटी, पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के बढ़ते दाम का असर कम नहीं कर पाए। भाजपा को बागियों ने भी चोट पहुंचाया। कांग्रेस अपने बागियों को मनाने में काफी हद तक सफल रही, लेकिन भाजपा के नाराज अंत तक मैदान में डटे रहे। रायगढ़ सीट पर विजय अग्रवाल, बसना सीट पर संपत अग्रवाल, जांजगीर चांपा सीट पर ब्यास कश्यप समेत 11 बागी भाजपा की राह में रोड़े बन गए। भाजपा ने कई चेहरे बदले और करीब 16 विधायकों के टिकट भी काटे, लेकिन कुछ मंत्रियों और विधायकों को लेकर नाराजगी दिखी। लोगों ने बसना, धरसींवा, प्रतापपुर, रायपुर ग्रामीण और रायपुर पश्चिम के भाजपा प्रत्याशी का अपने गांव-मोहल्ले में खुलकर विरोध किया। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि किसानों का कांग्रेस पर भरोसा नहीं है। भाजपा ने जो कहा, वह किया।
सरकार विरोधी लहर की बात गलत है। उनके मुताबिक, छत्तीसगढ़ में भाजपा चौथी बार सरकार बनाने जा रही है। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में इस बार किसान केंद्र में रहे। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष शाह ने राष्ट्रीय मुद्दों को उठाया और रमन सरकार के विकास की बात की। राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे में घपले के साथ कर्जमाफी पर जोर दिया। कांग्रेस के विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टी. एस. सिंहदेव का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने किसानों के लोन माफ करने की स्पष्ट बात की, वही गेमचेंजर होगा और कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। भाजपा ने अपने कई स्टार प्रचारकों को झोंका। उनके मुकाबले राहुल अकेले ही मोर्चा संभाले दिखे। बसपा प्रमुख मायावती और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के अजीत जोगी ने भी ताकत दिखाई, लेकिन अजीत जोगी की बार-बार बदलती रणनीति और बयानों ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया, जबकि माना जा रहा था कि जोगी-बसपा गठबंधन से कांग्रेस को नुकसान होगा। कसडोल विधानसभा में इस गठबंधन के दो प्रत्याशी मैदान में थे। बृजमोहन अग्रवाल का अब भी कहना है कि जोगी-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस के वोट काटे हैं, इसका लाभ भाजपा को मिल रहा है।
वैसे, कहा जा रहा है कि जोगी-बसपा गठबंधन ने अकलतरा, चंद्रपुर, जैजेपुर और पामगढ़ में जबरदस्त ताकत दिखाई है, उसे इन सीटों पर लाभ मिल सकता है। मतदान प्रतिशत और वोटरों के रुझान से लग रहा है कि मुकाबला कांटे का रहा और बदलाव की बातें सुनाई पड़ीं। अब 11 दिसंबर को ही पता चलेगा कि मतदाता प्रत्याशी बदलते हैं या सरकार?
फिर ईवीएम संदेह के घेरे में
छत्तीसगढ़ में ईवीएम मशीनों को लेकर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव ने आउटलुक से कहा कि मतदान के दिन करीब 400 ईवीएम मशीनें खराब होने की शिकायतें आई थीं। इतनी संख्या में मशीनें खराब होने से कार्यकर्ताओं के मन में संदेह हो रहा है। सिंहदेव का कहना है कि राज्य में भाजपा सरकार और अफसरों का जिस तरह गठजोड़ बन गया है, उससे भी पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव को लेकर आशंका बनी हुई है। कोरिया जिले में एक पीठासीन अधिकारी के घर पर तीन ईवीएम मशीनें जब्त होने से इस बात को बल मिला।