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बेरोजगारी, धीमी रफ्तार, एनपीए बड़ी चुनौती

बैंक और एनबीएफसी क्षेत्र बड़े संकट में, अर्थव्यवस्‍था के कई बुनियादी क्षेत्रों को फौरी मदद की दरकार लेकिन हालात बहुत बुरे नहीं, अगर ढंग से कारगर कदम उठाए गए और लंबी रणनीति बनाई जाए तो हालात सुधरेंगे
लंबी अवधि की रणनीति की दरकार

भारतीय इकोनॉमी इस समय नए चैलेंज से गुजर रही है। इस समय नई नौकरियां नहीं आ रही हैं, बैंकों की कर्ज देने की रफ्तार यानी क्रेडिट ग्रोथ जैसी होनी चाहिए वैसी नहीं है। साथ ही निवेश भी उम्मीद के मुताबिक नहीं आ रहा है। इसके साथ ही फाइनेंशियल सेक्टर में भी समस्या है। बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) काफी बढ़ गई हैं। इसी तरह से गैर बैंकिंग वित्तीय सेक्टर (एनबीएफसी) में कर्ज और नकदी की समस्या है। चुनावों को देखते हुए लंबी अवधि के निवेश को लेकर थोड़ी अनिश्चितता है। इसकी वजह से इकोनॉमी पर थोड़ा दबाव है। लेकिन अभी भी ऐसी स्थिति नहीं है कि हम कहें कि इकोनॉमी पर कोई संकट आ गया है। अगर हम चीजों को सही तरीके से हल करें तो ये स्थितियां जल्द सुधर जाएंगी। हालांकि इसके लिए हमें तुरंत कदम उठाने होंगे। ये कदम भी समयबद्ध होने चाहिए, ताकि उनका असर भी दिखे। अगर ऐसा होता है तो इकोनॉमी की रफ्तार सुस्त नहीं पड़ेगी।

पहले हम बैंकों के एनपीए की बात करें तो यह 11 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो चुका है। यह बैंकिंग सेक्टर के लिए गंभीर समस्या है। इसको दूर करने के लिए देर से पहल की गई, जिसकी वजह से यह इस स्तर तक पहुंच गया है। अगर सही समय से कदम उठाए गए होते तो यह स्थिति नहीं आती। हालांकि अब कई कदम ऐसे उठाए जा रहे हैं जिसकी वजह से सुधार की उम्मीद है। खास तौर से प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) एक अच्छा कदम है, जिससे एनपीए में कमी आएगी। अभी इस समस्या को खत्म होने में डेढ़ से दो साल का समय लगेगा। लेकिन नए प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन नियमों के तहत हमें बहुत अलर्ट रहना होगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो एनपीए बढ़ सकता है। लेकिन इस समय एनबीएफसी, एमएसएमई सेक्टर सभी को मदद की जरूरत है, जो बैंकों के जरिए ही प्रमुख तौर पर पूरी की जा सकती है।

एनबीएफसी सेक्टर भी नए संकट के दौर से गुजर रहा है। एनबीएफसी सेक्टर में 1000 से ज्यादा कंपनियां हैं, जो अपने रेग्युलेटर के प्रति जवाबदेह हैं। सेक्टर में कर्ज और नकदी की समस्या बढ़ गई है। इसे जल्द से जल्द हल करने की जरूरत है। हमें इस सेक्टर की समस्या को हल करने के लिए खास सतर्कता भरे कदम उठाने होंगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस सेक्टर में बड़ी कंपनियों की तुलना में छोटी कंपनियां ज्यादा हैं। उन्हें मदद की जरूरत है। एक्शन लेने से पहले हमें इन बातों का खास तौर से ध्यान रखना होगा, ताकि आने वाले दिनों में दूसरा कोई एनपीए संकट खड़ा नहीं हो जाए।

अच्छी बात यह है कि अभी भी इकोनॉमी उतने बुरे दौर में नहीं है कि इन समस्याओं को दूर न किया जा सके। बस जरूरत है कि हम अपने संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करें। अगर ऐसा करने में हम सफल होते हैं तो समस्या बहुत जल्द सुलझाई जा सकती है। अच्छी बात यह है कि अभी भी जीडीपी ग्रोथ 6-7 फीसदी के बीच है। हालांकि यह पिछले साल से कम है, फिर भी संतोषजनक है। इसी तरह निवेश कम होने के बाद भी इसकी दर 20 फीसदी से ऊपर है। यह अच्छी बात है। साथ ही, हमें यह बात भी समझनी होगी कि पूरी इकोनॉमी में समस्या नहीं है। कुछ जगहों पर कदम उठाने हैं। ऐसे में अगर कोई यह कहे कि इकोनॉमी में लेहमन संकट वाली स्थिति आ गई है, तो ऐसा नहीं है। अभी भी जीडीपी और दूसरे सूचकांक बेहतर हैं। इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि जिस तरह से विदेशी निवेशक मार्केट से अपना निवेश निकाल रहे हैं, उससे भुगतान की समस्या खड़ी हो जाएगी। यानी हमारा विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम हो गया है, यह सही नहीं है। यह जरूर है कि रिजर्व थोड़ा कम हुआ है लेकिन अभी भी हमारे पास पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार है। यानी रिजर्व की कोई समस्या नहीं है। ऐसे में भुगतान संतुलन जैसी कोई समस्या खड़ी हो जाएगी, ऐसी कोई आशंका नहीं है। स्थिति भयावह हो जाएगी, ऐसा बिलकुल नहीं है। अभी जरूरत है कि ऐसे कदम उठाए जाएं, जिससे इकोनॉमी को रफ्तार मिले। साथ ही हमें अपने राजकोषीय घाटे पर भी नजर रखनी होगी। हालांकि राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम-2003 (एफआरबीएम) के तहत जो मानक तय किए गए हैं, मुझे नहीं लगता कि उसे पूरा करने में कोई दिक्कत आएगी। हो सकता है कि चुनावों को देखते हुए सरकार की तरफ से थोड़े खर्च बढ़ जाएं, फिर भी मेरा मानना है कि राजकोषीय घाटा नियंत्रण में रहेगा। हो सकता है कि राजकोषीय घाटा लक्ष्य से एक दो अंक थोड़ा ज्यादा रहे, पर वह कोई ऐसी चिंता की बात नहीं होगी। इसको लेकर यह कहना कि घाटा इकोनॉमी की हालत बिगाड़ देगा, ऐसा बिलकुल नहीं है। भारतीय इकोनॉमी की स्थिति अच्छी है। ऐसे में इसका कोई ज्यादा असर नहीं होगा।

सुधार की दिशा में कदम उठाने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि जो प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं, उनको समय पर पूरा किया जाए। उनका समय पर पूरा होना बेहद जरूरी है। अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो इकोनॉमी काफी हद तक पटरी पर आ जाएगी। लेकिन ऐसा करने के लिए हमें प्रशासनिक सुधार करना होगा। कारोबारी सहूलियत के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, वह काफी अच्छे हैं। इस दिशा में हमें आगे बढ़ना चाहिए। हमें ऐसा सिस्टम तैयार करना चाहिए, जिससे प्रोजेक्ट क्लीयरेंस का काम जल्द से जल्द पूरा हो सके। अभी एक प्रोजेक्ट के लिए कई तरह के मंत्रालयों की मंजूरी लेने की जरूरत पड़ती है। इसकी वजह से क्लीयरेंस अटकता है। यानी कई मंत्रालयों का दखल होता है, जिससे क्लीयरेंस में देरी होती है। इसे दूर करने की जरूरत है। इसके लिए ऐसा सिस्टम डेवलप किया जाए, जिससे क्लीयरेंस काफी कम समय में मिल सके। इसके लिए जरूरी है कि हमें किसी पॉलिसी को लागू करने के लिए एक क्रियान्वयन मंत्रालय बनाना चाहिए, जिसकी जिम्मेदारी होगी कि वह प्रोजेक्ट को पूरा कराए। अभी किसी प्रोजेक्ट के क्लीयरेंस और उसके क्रियान्वयन में 4-5 मंत्रालय शामिल होते हैं। ऐसे में मेरा कहना है कि जब कोई पॉलिसी बन जाए, उसके बाद अलग-अलग मंत्रालयों का दखल नहीं होना चाहिए। एक मंत्रालय पूरे क्रियान्वयन की जिम्मेदारी संभाले, ताकि प्रोजेक्ट समय से पूरा हो सके। ठीक उसी तरह जिस तरह चुनाव आयोग, भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) जैसे सरकारी स्वतंत्र संस्थान काम कर रहे हैं, जो अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह निभा रहे हैं। ये संस्थान इसलिए आज इतने कामयाब हैं, क्योंकि ये सरकारी मंत्रालयों से स्वतंत्र हैं और उनके कामकाज में मंत्रालयों का दखल नहीं होता है। इससे ये बेहतर काम कर पाते हैं। ऐसा ही सिस्टम बनाने की जरूरत है। अगर ऐसा होता है तो प्रोजेक्ट समय पर पूरे होंगे।

इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन मानकों के तहत बैंकों को जो राहत दी जा रही है, वह अच्छा कदम है। इससे निश्चित तौर पर नकदी की स्थिति में सुधार होगा। लेकिन साथ में यह भी देखने की जरूरत है कि ढील देने से एनपीए न बढ़े। यानी थोड़ा नियंत्रण रखा जाए, ताकि एनपीए का नया संकट न खड़ा हो। हालांकि नए नियमों में यह बात भी आ रही है कि अगर कोई डिफॉल्टर होता है तो तुरंत करेक्टिव एक्शन लिए जाएंगे। यानी उन्हें अटकाया नहीं जाएगा। हमें इस बात से नहीं डरना चाहिए कि नए नियमों से समस्या बढ़ जाएगी। ऐसा इसलिए है, क्योंकि चेक ऐंड बैलेंस का प्रावधान नए नियमों में रखा जा रहा है। इस समय इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए ऐसे कदम उठाने की बेहद जरूरत है।

अब जरूरी है कि नए सुधारों को जल्द से जल्द लागू किया जाए। जहां तक यह बात है कि नियमों में ढील देने से एनपीए बढ़ जाएगा, यह सही नहीं है।

चाहे छोटे और मझोले उद्योग (एमएसएमई) हों या फिर एनबीएफसी सेक्टर, कोई भी संकट में है तो उसे उबारने के लिए हमें कदम उठाने होंगे। लेकिन यह भी देखना होगा कि जो कदम उठाए जाएं, वे सही तरीके से लागू हों। ऐसा करने की हमारे अंदर क्षमता है, साथ ही इकोनॉमी की स्थिति भी ऐसी है, जो इन कदमों को उठाने के लिए तैयार है। इसी दिशा में सरकार ने एमएसएमई सेक्टर के लिए जो कदम उठाए हैं, वह काफी अच्छे हैं, इसका सकारात्मक असर होगा। कुल मिलाकर इस समय कई सेक्टर को सपोर्ट की जरूरत है। अगर ऐसे कदम उठाए जाते हैं तो निश्चित तौर पर उसका फायदा मिलेगा। इन कदमों के अलावा हमें लंबी अवधि की भी रणनीति बनानी होगी। हालांकि इसके लिए अभी हमें इंतजार करना होगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि चुनावों के बाद नई सरकार ही इस दिशा में ठोस कदम उठा पाएगी। अभी अनिश्चितता बनी रहेगी। वह स्वाभाविक भी है लेकिन इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है। अभी जो तात्कालिक कदम उठाए जा रहे हैं, वे निश्चित तौर पर इकोनॉमी को रफ्तार देंगे। कुल मिलाकर हमें बस यह ध्यान में रखना होगा कि समय पर पूरे चेक ऐंड बैलेंस के साथ इन कदमों पर अमल हो, ताकि आने वाले समय में किसी तरह का कोई संकट न खड़ा हो।

(लेखक आरबीआइ के पूर्व गवर्नर हैं, यह लेख प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित है)

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