पंजाब में आतंकी गतिविधियां फिर से सिर उठाने लगी हैं। अगर समय रहते इन पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो पंजाब एक बार फिर आतंक की चपेट में होगा। अमृतसर में निरंकारी भवन पर ग्रेनेड हमले की घटना के पीछे भी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का हाथ होने के पुख्ता सबूत मिले हैं। संसद भवन पर आतंकी हमला, मुंबई धमाका, दीनानगर और पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन पर आतंकी हमलों के तार सीधे तौर पर आइएसआइ से जुड़े साबित हुए हैं। पंजाब में आतंक फैलाने के लिए पाकिस्तान और कनाडा समेत कई देशों में बैठे खालिस्तानी विचारधारा के पंजाबियों ने आइएसआइ और कश्मीरी आतंकियों के साथ हाथ मिला लिया है। 13 साल तक आतंक के काले दौर से गुजरे पंजाब के स्थानीय लोग नहीं चाहते कि उन्हें फिर उस दौर से गुजरना पड़े। इसलिए चरमपंथियों का उन्हें कोई समर्थन नहीं है। विदेशों में बैठे खालिस्तानी चरमपंथी अपनी विचारधारा से उन स्थानीय बेरोजगार युवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्होंने आंतक का दौर नहीं देखा है। कई युवा तो ऐसे हैं जो उस वक्त तक पैदा भी नहीं हुए होंगे। इनमें से ज्यादातर की आपराधिक पृष्ठभूमि भी नहीं है। हालिया अमृतसर की ग्रेनेड हमला की घटना में शामिल युवा आरोपी बिक्रमजीत सिंह का तो जन्म ही तब हुआ, जब पंजाब आतंक से उबर चुका था। पुलिस के पास उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है। बेरोजगार स्थानीय युवाओं को विदेशों में बैठे चरमपंथी आतंक के लिए अपना हथियार न बना सकें, इसके लिए कोई ठोस कदम उठाने होंगे।
आतंक फैलाने के लिए कश्मीर के साथ पंजाब भी पाकिस्तान के रडार पर है। 1971 में बांग्लादेश के गठन के समय से ही पाकिस्तान भारत से खार खाए बैठा है कि बांग्लादेश के गठन को भारतीय सेना का समर्थन था। 1980 में चरम आतंक के समय जब पंजाब में स्थानीय उग्रपंथियों ने खालिस्तान (अलग स्वतंत्र देश) की आवाज उठाई तब से ही पाकिस्तान इनके समर्थन में खड़ा है। 1980 और 90 के दशक के शुरुआती दौर में पंजाब में आतंकवाद के समय मारे गए करीब 39 हजार लोगों में कई उग्रपंथी भी थे। कई उग्रपंथियों ने पंजाब छोड़ विदेशों में पनाह ली। तत्कालीन डीजीपी केपीएस गिल के समय पुलिस ने करीब छह हजार उग्रपंथियों, उनके समर्थकों और उनके फाइनेंसर्स का कंप्यूटराइज्ड रिकॉर्ड तैयार किया।
1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के बाद से पंजाब में आतंक शांत होने लगा। बचे हुए ज्यादातर उग्रपंथियों द्वारा विदेशों में पनाह लिए जाने और पंजाब में आतंक को स्थानीय समर्थन मिलना समाप्त होने से पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकी गतिविधियां बढ़ा दीं। पिछले तीन साल से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई तेज होने से पाकिस्तान से आने वाले आतंकियों ने घुसपैठ के लिए पंजाब का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। इन्हें पाकिस्तान में बैठे खालिस्तानियों का समर्थन भी है। पंजाब के साथ लगती 553 किलोमीटर लंबी सीमा पर ‘राइवर्ली एरिया’ होने के कारण पहले भी घुसपैठ होती रही है। तीन साल पहले पाकिस्तान की तरफ से बमियाल एरिया के साथ लगती सीमा से आतंकियों की घुसपैठ हो चुकी है और पाक आतंकी 2015 में दीनानगर में बस और थाने के बाद 2016 में पठानकोट एयरबेस पर हमला करने में सफल हो गए थे।
इसमें कोई शक नहीं कि करतारपुर कॉरीडोर का खुलना भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सुधारने की दिशा में एक नई पहल है। साथ ही, सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह एक नई चुनौती भी हो सकती है। दरअसल, पाकिस्तान में अभी भी खालिस्तान समर्थकों की तादाद काफी है, जिन्हें आइएसआइ का खुला समर्थन है। ऐसे में आशंका है कि इस कॉरिडोर का उपयोग करते हुए खालिस्तान समर्थक पंजाब के युवाओं को उग्रवाद के लिए उकसा सकते हैं। इस मार्ग का उपयोग नशीली दवाओं की तस्करी के लिए भी किया जा सकता है।
यह बेहद दुखद, लेकिन सच है कि श्रीननकाना साहिब जैसे महान धर्मस्थल के क्षेत्र को पाकिस्तान में खालिस्तान और आइएसआइ का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां कई ब्लैकलिस्टेड खालिस्तानी आतंकियों के अड्डे सक्रिय हैं। पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के महासचिव गोपाल सिंह चावला ने श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव पर पाकिस्तान में आयोजित समारोह में खुले मंच से पंजाब रेफरेंडम-2020 को समर्थन देने की घोषणा करते हुए कहा है कि खालिस्तान जरूर आजाद होगा। यही नहीं उसने श्रीअकाल तख्त साहिब पर पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे जगतार सिंह को जत्थेदार बनाने की बात कही है।
पाकिस्तान पंजाब को अशांत करने के लिए लगातार साजिशें रच रहा है। भारत के खिलाफ आतंकवाद को खुला समर्थन और खालिस्तान समर्थकों को छूट दे रहा है। इसका उदाहरण बीते दिनों उस समय देखने को मिला जब श्रीगुरु नानक जयंती के अवसर पर ननकाना साहिब में खालिस्तान समर्थक पोस्टर लहराए गए। खालिस्तान समर्थक ग्रुप सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) के पंजाब रेफरेंडम-2020 अभियान के तहत पाकिस्तान में रैली किया जाना पहले से तय था। इसकी घोषणा यूके में रेफरेंडम-2020 रैली के दौरान ही कर दी गई थी। करतारपुर कॉरीडोर खोलने के लिए पाकिस्तान की तुरंत रजामंदी कहीं वाजपेयी सरकार के समय एक ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर दूसरी तरफ करगिल जैसे हालात पैदा करना तो नहीं। पाकिस्तान पर भरोसा खतरे से खाली नहीं।
(लेखक पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक हैं)