वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जब चुनावी मुहाने पर खड़े थे तो बातों ही बातों में कह बैठे- मुझसे एक बड़ी गलती हो गई। मैं कुछ अफसरों के कहने पर सरकारी मुलाजिमों की फाइलों में उलझा रहा। मेरा 70 फीसद से ज्यादा वक्त सात लाख कर्मचारियों के तबादला, पोस्टिंग और प्रमोशन की फाइलों में उलझा रहा। दिग्विजय सिंह को केंद्रीकृत सत्ता के नफे नुकसानों का जब तक अहसास हुआ तब तक उनके हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी और कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिटक चुकी थी। करीब 11 साल से मध्य प्रदेश पर राज कर रहे शिवराज सिंह चौहान भी कमोबेश इसी स्थिति में खड़े हैं। आलम यह है कि चपरासी तबादला भी मुख्यमंत्री के दस्तखत के बगैर नहीं हो सकता। जाहिर है कि जनप्रिय नेता होने के नाते शिवराज को तो फाइलें देखने की फुरसत नहीं रहती। ऐसे में अपवादों को छोड़ दें तो होता वही है जो उनके करीबी अफसर चाहते हैं। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री के करीबी और अति प्रिय अफसरों में ज्यादातर वही हैं जो या तो दिग्गी के प्रिय थे या फिर उनके चहेते जूनियर थे।
अगर शिवराज के अति प्रिय सात अफसरों की बात की जाए तो इसकी शुरुआत पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी से होती है। शिवराज ने मुख्यमंत्री बनने के बाद साहनी को जब मुख्य सचिव का ताज पहनाया था तो वो वरिष्ठता सूची में नौवीं पायदान पर थे। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज के मुख्यमंत्री रहते हुए जो मुख्य सचिव अब तक रहे हैं उनमें सबसे ज्यादा कामयाब और पावरफुल वही माने जा सकते हैं। साहनी ने अपने सीएस रहते हुए मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रमुख सचिव स्तर के किसी भी अफसर को नहीं आने दिया। उनके सबसे प्रिय अफसर इकबाल सिंह ही पहले सचिव और बाद में प्रमुख सचिव बनकर रह सके। नौकरी में रहते साहनी मप्र बिजली बोर्ड के चैयरमैन रहे और सेवा निवृत्ति के बाद उन्हें मप्र बिजली नियामक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। ये कार्यकाल पूरा हुआ तो अब साहनी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल है। उनकी नियुक्ति में कानून का उल्लंघन भी हो रहा है मगर कांग्रेस से उनकी इतनी करीबी रही है कि कभी कांग्रेस ने भी उनकी नियुक्ति पर कोई सवाल नहीं उठाया।
सीएम के साîो में दूसरा नाम है साहनी के शिष्य और वर्तमान में अपर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस का। बैंस का दिग्विजय सिंह के दौर में भी इकबाल बुलंद था। उनके गृह जिले गुना की कलेक्टरी करते हुए वो भोपाल कलेक्टर बने और आबकारी आयुक्त जैसा ओहदा भी उन्होंने संभाला। जब शिवराज सीएम बने तो बैंस उनके सचिवालय में सबसे ताकतवर सचिव के रूप में मौजूद थे। पिछले महीने वह अपर मुख्य सचिव बनने के बाद वहां से अपनी इच्छा से ही हटे और उनके उत्तराधिकारी के रूप में प्रमुख सचिव बनकर सीएम सचिवालय में आए अशोक वर्णवाल भी इकबाल की मर्जी से नियुक्त किए गए।
सीएम के तीसरे चहेते हैं अशोक वर्णवाल। मुख्यमंत्री जब भी कैबिनेट या मंत्रियों के साथ समीक्षा बैठक करते हैं तो उनके साथ केवल मुख्य सचिव ही बैठते हैं। प्रमुख सचिव रहते हुए न तो इकबाल सिंह ने ऐसी हिमाकत की और न मनोज श्रीवास्तव ने। लेकिन वर्णवाल हाल ही में एक समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री के बाजू में बैठे तो बैठक कक्ष में मौजूद सारे अफसरों के बीच उनका रुतबा चर्चा का विषय बन गया। चौथे नंबर पर हैं मोहम्मद सुलेमान जिन्हें इकबाल के बाद सीएम का सबसे करीबी अफसर माना जाता है। इन्हें दिग्गी का भी करीबी माना जाता था। फिलहाल प्रमुख सचिव उद्योग के बतौर कार्यरत सुलेमान को अब शिवराज अपना हनुमान मानते हैं। वो लालकृष्ण आडवाणी के रिश्तेदार हैं तो मोदी के करीबी उद्योगपति गौतम अडानी से भी उनके गहरे संपर्क हैं।
शिवराज के सîाों में पांचवा नंबर है लोक निर्माण महकमे के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल का। इनके तुगलकी फरमानों से महकमे के अफसर ही नहीं बल्कि लोक निर्माण विभाग के मंत्री भी परेशान हैं। शिवराज के सबसे करीबी मंत्री रामपाल सिंह की भी उन्हें कोई परवाह नहीं है। विभाग के प्रमुख अभियंता अखिलेश अग्रवाल को उन्होंने इतना पंगु बना दिया है कि उन्होंने वहां काम करने से मना कर दिया है।
इसी प्रकार सात साल से जल संसाधन विभाग में प्रमुख सचिव रहे राधेश्याम जुलानिया जब अपर मुख्य सचिव बने तो उन्हें ग्रामीण विकास विभाग की कमान और सौंप दी गई। ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के एतराज के बाद भी जुलानिया ग्रामीण विकास में डटे हुए हैं। इसी मध्य प्रदेश में आयकर छापे के बाद पोषण आहार कारोबारियों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आंगवाड़ियो में टेक होम राशन की व्यवस्था खत्म करके सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के मुताबिक स्व सहायता समूहों को कुपोषित बच्चों और प्रसूता महिलाओं को भोजन की व्यवस्था के निर्देशों की महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया धता बता रहे हैं। कंसोटिया के जरिए शिवराज ने तीन महीने पहले दलित एजेंडा की राह भी पकड़ी है। ऐसा नहीं है कि मध्य प्रदेश में अच्छे अफसरों की कोई कमी है लेकिन सत्ता पर सवार सîाों की मदमस्त चाल के आगे सभी बेबस दिख रहे हैं।