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सबको साधा, चुनौती बाकी

राजनैतिक चुनौतियों के बीच कमलनाथ की कैबिनेट में युवाओं को तरजीह, क्षेत्रीय और गुटीय समीकरणों का भी रखा ख्याल
इन पर दारोमदारः कैबिनेट सहयोगियों के साथ मुख्यमंत्री कमलनाथ (सबसे बाएं)

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद के लिए भले 47 साल के ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह 72 साल के कमलनाथ को तरजीह दी हो, लेकिन मंत्रिमंडल गठन में युवा पीढ़ी का पूरा ख्याल रखा है। गुटीय और क्षेत्रीय संतुलन को साधते हुए कमलनाथ ने अपनी कैबिनेट में 28 लोगों को जगह दी है। यह पहला मौका है जब किसी को राज्यमंत्री नहीं बनाया गया है। कैबिनेट के करीब एक-तिहाई सदस्यों की उम्र 40-50 साल के बीच है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह सबसे कम उम्र के मंत्री हैं। 32 साल के जयवर्धन लगातार दूसरी बार विधानसभा पहुंचे हैं। इसके अलावा पंद्रह साल बाद राज्य को आरिफ अकील के तौर पर कोई मुस्लिम मंत्री मिला है।   

कमलनाथ ने क्षेत्रीय और जाति समीकरणों तथा भविष्य की राजनीति का ख्याल रखते हुए सभी गुटों को समान भाव देने की कोशिश की है। संतुलन बनाने के लिए बुजुर्ग और नौजवान सभी को महत्व दिया है। फिर भी पार्टी के कुछ विधायक नाराज बताए जा रहे हैं। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं। उसे सभी चार निर्दलीय, बसपा के दो और सपा के एक विधायक का समर्थन हासिल है। कैबिनेट गठन से जाहिर है कि कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत नहीं होने के बावजूद कमलनाथ ने नाराज  विधायकों की परवाह नहीं की है। बसपा और सपा विधायकों को भी कैबिनेट में शामिल करने पर विचार नहीं किया। हालांकि इन दोनों पार्टियों ने सरकार में शामिल होने की औपचारिक पहल भी नहीं की थी, पर कहा जा रहा है कि बसपा विधायक दबाव बना रहे थे। निर्दलीय विधायकों में से केवल प्रदीप जायसवाल को कैबिनेट में जगह दी गई है। चुनाव से पहले कांग्रेस से बगावत करने वाले जायसवाल कमलनाथ के खांटी समर्थक माने जाते हैं। 

राज्य में मुख्यमंत्री समेत 34 मंत्री बनाए जा सकते हैं। अभी मुख्यमंत्री समेत 29 मंत्री हो गए हैं। पांच मंत्री बनाने की गुंजाइश अभी भी बची है। माना जा रहा है कि अब लोकसभा चुनाव के बाद ही कैबिनेट का विस्तार होगा। मंत्रिमंडल गठन से जाहिर है कि कमलनाथ अपने दोस्त पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोग से लोकसभा चुनाव में पार्टी की नैया पार लगाना चाहते हैं। कैबिनेट में शामिल किए गए लोगों में से 11 कमलनाथ के समर्थक माने जाते हैं। दिग्विजय सिंह के भी इतने ही समर्थकों को स्थान दिया गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के सात समर्थकों को कैबिनेट में जगह मिली है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के भाई सचिन यादव को भी मंत्री बनाया गया है।

कमलनाथ वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविन्द सिंह या डॉ. विजयलक्ष्मी साधो में से किसी एक को विधानसभा अध्यक्ष बनाना चाहते थे। लेकिन दोनों में से कोई इसके लिए तैयार नहीं हुए और दोनों को मंत्री बनाना पड़ा। अब नर्मदा प्रसाद प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है। आदिवासी युवाओं के संगठन जयस के कर्ताधर्ता डॉ. हीरालाल अलावा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और विधायक बन गए। लेकिन, पहली बार के विधायक को मंत्री नहीं बनाने के फॉर्मूले के कारण वे मंत्रिमंडल में जगह नहीं पा सके हैं। कमलनाथ ने लोकसभा चुनाव में नतीजा भुगतने की अलावा की चेतावनी को भी नजरअंदाज कर दिया। कांग्रेस से पहली बार विधायक बने 55 नए चेहरों में से किसी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है। पिछोर के विधायक के.पी. सिंह भी मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज बताए जा रहे हैं। 

अनुसूचित जाति (एससी) से पांच और अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से चार को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। इसके अलावा ब्राह्मण, ठाकुर और ओबीसी का भी ख्याल रखा गया है। सबसे ज्यादा आठ राजपूत मंत्री बनाए गए। मंत्रिमंडल को लेकर दिल्ली में चार दिन तक मंथन चला। दो महिलाएं- विजयलक्ष्मी साधो और इमरती देवी मंत्री बनाई गई हैं। 15 विधायक ऐसे हैं, जो पहली बार मंत्री बने हैं। मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय संतुलन साधने की भी पूरी कोशिश की गई है, फिर भी विंध्य इलाके को कम प्रतिनिधित्व मिला है। इस बार विंध्य में कांग्रेस को अच्छी सफलता नहीं मिली है। अनूपपुर जिले की तीनों सीटें जीतने के बाद भी वहां से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है। मालवा-निमाड़ से नौ, सेंट्रल मध्य प्रदेश से छह, ग्वालियर-चंबल से पांच और बुंदेलखंड से तीन लोगों को जगह दी गई है।

वैसे तो 72 साल के कमलनाथ राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं, फिर भी अल्पमत की सरकार को चलाना बड़ी चुनौती है। मुख्यमंत्री कमलनाथ को स्वयं जीतकर विधानसभा भी पहुंचना है। साथ में कांग्रेस को लोकसभा में भी अच्छी जीत दिलानी है। यहां उन्हें मजबूत भाजपा का सामना करना पड़ेगा। सदन के भीतर और मैदान में भी। इसके लिए कमलनाथ ने कमर कस ली है और उसी के अनुरूप काम भी शुरू कर दिया है।  

कमलनाथ ने बागडोर संभालते ही किसानों की दो लाख रुपये तक कर्जमाफी और कन्या विवाह की राशि 28 हजार रुपये से बढ़ाकर 51 हजार रुपये करने का ऐलान कर दिया। कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा कहते हैं, “कमलनाथ जी बिना तामझाम और प्रचार के फैसले कर रहे हैं। भाजपा सरकार होती तो ढिंढोरा पीटती।” मध्य प्रदेश में एक करोड़ 17 लाख किसान हैं। कर्जमाफी का फायदा राज्य के 34 लाख किसानों को मिलेगा। इससे सरकारी खजाने पर 38 हजार करोड़ रुपये का भार आएगा। पर खजाना अभी खाली है। राशि की व्यवस्था कैसे की जाएगी, यह चुनौती है।

कमलनाथ ने व्यापारियों और युवाओं को साधने का काम भी शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने चुनावी वादे के अनुरूप पुलिस कर्मचारियों की साप्ताहिक छुट्टी शुरू करने के भी निर्देश दे दिए हैं। आजादी के बाद पहली दफा पुलिस विभाग में ऐसा प्रावधान किया जा रहा है। कमलनाथ ने धार, छिंदवाड़ा, उज्जैन और भोपाल में गारमेंट पार्क की स्थापना का ऐलान कर उद्योग की फिक्र करने वाले नेता होने का एहसास लोगों को कराया है। इस पर 150 करोड़ रुपये खर्च होंगे। कमलनाथ ने अपने पहले प्रेस कांफ्रेंस में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के कारण मध्य प्रदेश के युवाओं को नौकरी न मिल पाने की बात कर राजनीति गरमा दी। कमलनाथ ने साफ कर दिया कि 70 फीसदी रोजगार स्थानीय लोगों को देने पर ही उद्योगों को प्रोत्साहन राशि मिलेगी। कमलनाथ के इस बयान पर भले भाजपा ने बवाल खड़ा कर दिया, लेकिन यह मध्य प्रदेश के युवाओं को साधने की उनकी रणनीति भी कही जा रही है। यहां बेरोजगारी बड़ी समस्या है।

मध्य प्रदेश मानव विकास सूचकांक में काफी नीचे है और महिला अपराध में यह राज्य सबसे ऊपर है। कमलनाथ ने सख्त प्रशासक की छवि पेश करते हुए 47 आइएएस अधिकारियों को एक झटके में इधर से उधर कर दिया है और मध्य प्रदेश में अफसरशाही के हावी रहने की धारणा तोड़ने की कोशिश की है। कमलनाथ सबको साथ लेते हुए जमीन से जुड़े लोगों की राय के साथ काम करने की दिशा में आगे बढे़ हैं, लेकिन बसपा, सपा के साथ निर्दलीय कभी भी आंख दिखा सकते हैं। भाजपा भी इसी ताक में बैठी है। ऐसे में मध्य प्रदेश में उनके लिए सरकार चलाना तलवार की धार पर चलने जैसा है।  

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