कमाई एक लाख रुपये सालाना और सिर पर एक लाख का ही कर्ज। ऐसे में इंसान अपना गुजारा करे कि कर्ज चुकाए। देश का किसान ऐसी परिस्थिति में ही अपने परिवार का भरण-पोषण करने को मजबूर है। इतनी थोड़ी कमाई का ही नतीजा है कि हर दूसरा किसान परिवार कर्ज के कुचक्र में फंस गया है। किसान इस भंवरजाल से कैसे निकलेगा, इसका कोई रास्ता पिछले पांच साल से केंद्र में काबिज भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली एनडीए सरकार नहीं दे पाई है। हालांकि उसने सत्ता में आने से पहले बड़े-बड़े वादे किए थे। अब सरकार पर विपक्ष का हमला तेज है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सत्ता में आने पर कर्जमाफी की बात कर रहे हैं, मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आरोप है कि आज किसान की जो स्थिति है उसकी जिम्मेदार कांग्रेस है। उनका कहना है कि कर्जमाफी कोई रास्ता नहीं है। हालांकि पिछले दो से तीन साल में उनकी ही पार्टी की उत्तर प्रदेश, असम, महाराष्ट्र की सरकारें कर्जमाफी का फैसला कर चुकी हैं।
देश के कई हिस्सों में लगातार संघर्षों से कृषि संकट को केंद्रीय मुद्दा बनाने वाले अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वी.एम. सिंह आउटलुक से कहते हैं, “किसान इस समय गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। उस पर करीब 13-14 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो चुका है। सरकारों की गलत नीतियों और किसान से ज्यादा कॉरपोरेट को तरजीह देने से यह स्थिति बनी है। ऐसे में जरूरी है कि उसे फौरी राहत देने के लिए कर्जमाफी का मरहम दिया जाए। हम यह चाहते हैं कि एक बार में किसान का पूरा कर्ज माफ किया जाए, ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा हो और नई पीढ़ी खेती को अपनाए।”
बकौल वी.एम. सिंह लगातार घाटे की खेती के कारण हाल के वर्षों में किसान कर्ज से लदते चले गए हैं। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच साल में कृषि कर्ज 61 फीसदी बढ़ कर 11.79 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। 2013-14 में कृषि कर्ज 7.30 लाख करोड़ रुपये था। करीब 12 लाख करोड़ रुपये के कृषि कर्ज से किसान अपनी खेती की कई सारी जरूरतें पूरी करता है। रिपोर्ट के अनुसार, किसान करीब 65 फीसदी कर्ज ही फसल ऋण के रूप में लेता है। 35 फीसदी कर्ज ट्रैक्टर, पंप सेट, मुर्गी पालन, डेयरी आदि की दूसरी जरूरतों के लिए टर्म लोन के रूप में है। यानी करीब चार लाख करोड़ रुपये का कर्ज दूसरी जरूरतों के लिए इस्तेमाल होता है।
एसबीआइ के पूर्व सीजीएम सुनील पंत ने आउटलुक को बताया कि “फसल ऋण तो जरूर किसान को सस्ता पड़ता है लेकिन टर्म लोन उसकी तुलना में काफी महंगा होता है। अगर किसान समय से कर्ज चुकाता है तो उसे चार फीसदी की ब्याज दर पर कर्ज मिल जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार समय पर कर्ज चुकाने पर तीन फीसदी की ब्याज सब्सिडी देती है। टर्म लोन की ब्याज दरें कहीं ज्यादा होती हैं।” देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआइ ट्रैक्टर लोन, डेयरी लोन, गोल्ड लोन, पोल्ट्री, सिंचाई सहित दूसरी कृषि जरूरतों के लिए 10 फीसदी से लेकर 16.50 फीसदी की ब्याज दर पर कर्ज देता है। ऐसा नहीं है कि किसान केवल 11.79 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में ही फंसा है। उसने रिश्तेदारों, साहूकारों, मित्रों से भी कर्ज ले रखा है। नाबार्ड अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण-2016-17 (नफीस) के अनुसार, किसानों पर करीब 30 फीसदी कर्ज ऐसे ही स्रोतों से है। अगर इस पैमाने को माना जाए तो देश के किसानों पर मार्च 2018 तक करीब 14-15 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। करीब 75 फीसदी कर्ज उसे वाणिज्यिक बैंकों से मिलता है, जबकि 13 फीसदी को-ऑपरेटिव बैंकों और 12 फीसदी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक से मिलता है।
यह जानना भी जरूरी है कि किसानों के कर्ज लेने का पैटर्न क्या है। आरबीआइ के डायरेक्टर रविशंकर और रिसर्च अफसर राजेंद्र रघुमंदा और सुखबीर सिंह ने कर्जमाफी पर एक रिपोर्ट तैयार की है। उसके अनुसार, मार्च 2016 तक बैंकों ने ही 8.94 लाख करोड़ रुपये कृषि ऋण बांटे हैं, जिसमें 6.04 लाख करोड़ रुपये फसल ऋण है। इसमें छोटे और सीमांत किसानों को करीब 40 फीसदी यानी 3.57 लाख करोड़ रुपये का कर्ज मिला है। इसमें 2.69 लाख करोड़ रुपये का कर्ज फसल ऋण है।
बैंकों में ही 7.68 करोड़ कृषि ऋण खाते हैं, जिसमें सबसे ज्यादा खाते एक लाख रुपये तक के कर्ज लेने वाले किसानों के हैं। इनकी संख्या 5.47 करोड़ है। जबकि एक लाख रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक कर्ज लेने वाले खातों की संख्या 84 लाख, 1.5 लाख रुपये से लेकर दो लाख रुपये तक कर्ज वाले खातों की संख्या 37 लाख, वहीं दो लाख रुपये से ज्यादा कर्ज वाले खातों की संख्या 1.01 करोड़ है। कुल 7.68 करोड़ खातों में से 3.87 करोड़ खाते छोटे और सीमांत किसानों के हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अगर सरकार एक लाख रुपये तक के कर्ज माफ करें। तो उस पैमाने पर मार्च 2016 तक सभी तरह के कृषि ऋण माफ करने पर 4.50 लाख करोड़ रुपये की कर्जमाफी होगी। जबकि सरकारें अगर केवल फसल ऋण माफ करती हैं, तो 3.26 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ होंगे। अगर केवल छोटे और सीमांत किसान के कर्ज माफ किए जाएं तो 2.19 लाख करोड़ रुपये के कुल कर्ज माफ होंगे। वहीं, छोटे और सीमांत किसानों के केवल फसल ऋण माफ किए जाएं तो 1.72 लाख करोड़ रुपये की कर्जमाफी होगी।
पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, कृषि ऋण में करीब 60 फीसदी ऋण ऐसा है जो किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए लिया जा रहा है। किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए किसानों को फसल ऋण लेना बेहद आसान रास्ता है। आरबीआइ की ट्रेंड एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन इंडिया 2017-18 रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2018 तक 6.91 करोड़ एक्टिव किसान क्रेडिट कार्ड हैं। इसमें बैंकों से 2.35 करोड़, को-ऑपरेटिव बैंकों से 3.34 करोड़ और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से 1.21 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए गए हैं, जिनके जरिए करीब 6.70 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है। ‘नफीस’ की रिपोर्ट के अनुसार, जिस तरह से किसान अभी औसतन 8996 रुपये की मासिक कमाई कर रहा है। उसको देखते हुए कृषि ऋण में कर्ज न चुकाने के मामले भी बढ़े हैं। एसबीआइ की दिसंबर 2018 में कर्जमाफी पर आई रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2017 में कृषि ऋण पर एनपीए करीब 60,200 करोड़ रुपये रहा है। जिसमें से 27,700 करोड़ रुपये किसान क्रेडिट कार्ड और फसल ऋण का एनपीए है। इसी ट्रेंड के आधार पर यह अभी करीब 80 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। जबकि किसान क्रेडिट कार्ड और फसल ऋण के आधार पर 36,800 करोड़ रुपये एनपीए होगा।
अब किसान से कर्ज वसूली की प्रक्रिया को भी देखा जाए तो यहां कॉरपोरेट ही किस्मत वाले नजर आते हैं। कॉरपोरेट की तुलना में किसान अगर एनपीए करता है, तो उसके लिए कर्ज रिकवरी के नियम बहुत सख्त हैं। उत्तर प्रदेश में राजस्व विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, किसान अगर ट्रैक्टर लोन लेता है तो उसकी जमीन गिरवी रखी जाती है। इसके लिए कम से कम पांच एकड़ जमीन होना आवश्यक है। कई बार पर्याप्त जमीन नहीं होने पर गारंटर को शामिल किया जाता है। अगर किसान कर्ज नहीं चुका पाता है तो ऐसे में बंधक जमीन रिकवरी का हिस्सा बनती है। इसी तरह किसान क्रेडिट कार्ड पर एक लाख रुपये तक के कर्ज पर जमीन गिरवी नहीं रखी जाती है। लेकिन अगर कर्ज एक लाख रुपये से ज्यादा है तो किसान को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ती है। किसी परिस्थिति में किसान कर्ज नहीं चुका पाता है तो उसकी जमीन कुर्क कर ली जाती है। अगर जमीन 3.25 एकड़ से कम है तो उसे प्रशासन अपने कब्जे में कर लेता है। वहीं, 3.25 एकड़ से ज्यादा जमीन होने पर उसे नीलाम कर कर्ज की रकम वसूली जाती है।
एसबीआइ के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष की रिपोर्ट के अनुसार, कृषि ऋण के अलावा दूसरे कर्ज पर एसेट क्लासिफिकेशन मानक आसान हैं। ऐसे में कृषि ऋण के भी मानक आसान किए जाने चाहिए। अभी कृषि ऋण में किसान के साथ बड़ी समस्या यह है कि वह नया कर्ज तभी ले सकता है जब पहले से लिया गया कर्ज पूरी तरह से चुकाए। यानी उसे नया कर्ज लेने के लिए पहले का मूलधन और ब्याज सब चुकाना होगा। जबकि गैर कृषि कर्ज में ऐसा नहीं है। वहां पर केवल ब्याज चुकाकर नया कर्ज लिया जा सकता है।
एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, कर्जमाफी का जिस तरह से राज्यों में ट्रेंड बढ़ा है उसकी वजह से कर्ज न चुकाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। हालांकि बैंकों की लोन बुक के लिहाज से यह कदम फायदेमंद है क्योंकि सरकार किसानों के बदले में खुद बैंकों को कर्ज चुका देती है। इससे लोन बुक क्लीन हो जाती है। यह बात सही है कि पिछले कुछ वर्षों में कृषि ऋण में एनपीए बढ़ा है। आरबीआइ की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2012 में जहां एनपीए 24,800 करोड़ रुपये था वह मार्च 2017 में 60,200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। लेकिन जब पूरे बैंकिंग सेक्टर की बात की जाय तो कृषि ऋण के एनपीए की हिस्सेदारी केवल छह फीसदी ही है। यानी दूसरे क्षेत्र में लोग कर्ज चुकाने में ज्यादा आना-कानी कर रहे हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक को बताया कि किसानों की समस्या का हल केवल कर्जमाफी नहीं है। ऐसा होता तो पहले दो बार की गई माफी से हो जाता। केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी) में बढ़ोतरी से लेकर फसल बीमा, मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी स्कीम लेकर आई। इसके अलावा भी दूसरे और क्या विकल्प हो सकते हैं, उस पर भी काम किया जा रहा है, जिससे किसानों को राहत मिल सके। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता एम.वी.राजीव गौड़ा ने आउटलुक को बताया कि इस समय किसान गंभीर समस्याएं झेल रहा है। ऐसे में उसे फौरी राहत देने के लिए कर्जमाफी एक तुरंत का समाधान है। हालांकि लंबी अवधि के लिए योजनाएं बनानी होंगी। कांग्रेस शासित राज्यों में कर्जमाफी से लेकर दूसरी योजनाओं पर काम शुरू हो गया है, जिसका फायदा किसान को जरूर मिलेगा।
दो बार राष्ट्रीय स्तर पर माफी
पहली बार 1990 में जनता दल के नेतृत्व वाली सरकार ने किसानों का 10 हजार रुपये तक का कर्ज माफ किया था। करीब 4.4 करोड़ किसानों का कुल 6,000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ हुआ था। स्कीम के तहत सार्वजनिक बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज माफ हुए थे। फिर 2008 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार कृषि कर्जमाफी और कर्ज राहत योजना लाई। करीब 60 हजार करोड़ रुपये के कर्जमाफी पैकेज का ऐलान किया गया। फायदा एक अप्रैल 1997 से लेकर 31 मार्च 2007 के बीच कर्ज लेने वाले किसानों को मिला। इसके तहत छोटे और सीमांत किसान को 100 फीसदी कर्जमाफी दी गई। जबकि दूसरे किसानों को 75 फीसदी कर्ज की राशि चुकाने पर 25 फीसदी की छूट मिली थी। योजना के तहत 3.73 करोड़ किसानों को फायदा मिला था, कुल 52,259 करोड़ रुपये के कर्ज माफ हुए थे। बढ़ते आंदोलन के बाद कई राज्य सरकारों ने कर्जमाफी का ऐलान किया है। उत्तर प्रदेश में 36 हजार करोड़, महाराष्ट्र में 34 हजार करोड़, मध्य प्रदेश में करीब 35 हजार करोड़, कर्नाटक में 34 हजार करोड़, आंध्र प्रदेश में 24 हजार करोड़, तेलंगाना में 17 हजार करोड़, पंजाब में 10 हजार करोड़, तमिलनाडु में 6,000 करोड़, छत्तीसगढ़ में 6,000 करोड़, राजस्थान में 8,000 करोड़, असम में 600 करोड़ रुपये की कर्जमाफी की गई है। फिर भी किसान परेशान हैं, साफ है कि कर्जमाफी के तरीकों में कई सारी कमियां हैं। इसकी पड़ताल हमने देश के प्रमुख राज्यों में की है। आइए जानते हैं कि उन राज्यों में कर्जमाफी का सच क्या है?