मध्य प्रदेश में किसानों की कर्जमाफी रस्म अदायगी जैसी ही लग रही है। कमलनाथ सरकार ने 12 दिसंबर 2018 तक कर्ज लेने वाले किसानों का दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का फैसला किया है, लेकिन इनमें से कई किसान कर्ज चुका चुके हैं। ऐसे लोगों के पैसे वापस नहीं होंगे और एक अप्रैल 2007 के पहले ऋण लेकर डिफाल्टर हो चुके किसानों को भी कोई राहत नहीं मिलेगी। आयकर देने वाले किसानों का भी कर्ज माफ नहीं होगा।
जनसंपर्क मंत्री पी.सी. शर्मा और उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने साफ कर दिया है कि एक अप्रैल 2007 और उसके बाद लिए गए फसल ऋण को ही माफ किया जाएगा। सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और राष्ट्रीयकृत बैंक से केवल फसल ऋण लेने वाले किसानों का अधिकतम दो लाख रुपये तक का ही लोन माफ होगा। वैसे, कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में दो लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने का ही वादा किया था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया था कि यह केवल फसल लोन के लिए होगा या फिर सभी तरह के लोन इसके दायरे में आएंगे। इसलिए, कर्जमाफी से लोगों की अपेक्षाएं कुछ ज्यादा ही थीं।
अनुमान है कि राज्य के करीब 55 लाख किसानों के 38 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ होंगे। इसमें 35 लाख किसान लघु और सीमांत श्रेणी के हैं। एक सर्वे के मुताबिक, मध्य प्रदेश में करीब 85 लाख लघु और सीमांत किसान हैं और इनमें से 50 लाख किसानों पर लगभग 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। मध्य प्रदेश के किसानों ने सबसे ज्यादा कर्ज सहकारी बैंकों और स्टेट बैंक से ले रखे हैं। मध्य प्रदेश अपेक्स बैंक के प्रबंध संचालक आर.के. शर्मा ने बताया कि अपेक्स के मातहत काम करने वाले सहकारी बैंकों से 34 लाख किसानों ने कर्ज लिया है, जिन पर 18 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने शपथ लेने के चंद घंटों के भीतर ही किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला ले लिया था, लेकिन योजना को अंतिम रूप देने में उन्हें तीन हफ्ते से ज्यादा लग गए। पहले 31 मार्च 2018 तक लोन लेने वाले किसानों को राहत देने का आदेश हुआ। इस बीच, खंडवा जिले के अस्तरिया गांव के किसान जुवान सिंह ने आत्महत्या कर ली। परिजनों के माध्यम से बात आई कि कर्जमाफी वाले किसानों की सूची में अपना नाम न होने की वजह से उसने यह कदम उठाया। इसके बाद 12 दिसंबर 2018 तक कर्ज लेने वाले किसानों का लोन माफ करने की नीति बनाई गई। कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा का कहना है कि कर्जमाफी के फैसले से किसान कमलनाथ सरकार को संवेदनशील सरकार के रूप में देख रहे हैं। सरकार की कोशिश होगी कि आगे किसानों को कर्ज लेने की जरूरत न पड़े और समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत उन्हें मिले। भाजपा प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि कांग्रेस कर्जमाफी के नाम पर किसानों को भ्रमित कर रही है। लोकसभा चुनाव के बाद यह भ्रम टूटेगा।
मध्य प्रदेश में कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या की घटनाएं राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा हैं। कर्ज न चुका पाने का बड़ा कारण उपज का उचित मूल्य न मिल पाना है। कर्जमाफी से सरकार पर लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी के मुताबिक, 31 मार्च, 2018 तक किसानों का करीब 75,000 करोड़ रुपये कर्ज बकाया था। 2017-18 में 40 लाख किसानों को 46,000 करोड़ रुपये कर्ज दिया गया था। वित्त विभाग के मुताबिक, मध्य प्रदेश पर इस समय 1,60,871.9 करोड़ रुपये का कर्ज है। कहा जा रहा है कि ऋणमाफी के लिए सरकार को नए सिरे से कर्ज लेना होगा। यही वजह है कि किसानों को कब तक इसका लाभ मिलेगा यह फिलहाल तय नहीं है।
मंत्री पी.सी. शर्मा और जीतू पटवारी ने बताया कि किसानों को इस साल 22 फरवरी से ऋणमुक्ति प्रमाण-पत्र और सम्मान-पत्र दिए जाएंगे। प्रत्येक विकास खंड में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत के माध्यम से योजना का क्रियान्वयन करेंगे। लेकिन, इतनी जल्दी सारी प्रक्रिया कैसे पूरी हो पाएगी? एक बात साफ है कि कर्ज लेने वाले सभी किसानों को इससे फायदा नहीं होगा। कांग्रेस का घोषणा-पत्र आने के बाद से कुछ ही किसान कर्ज चुका रहे थे। पहले ऐसे किसानों को प्रोत्साहन राशि देने की बात हो रही थी, लेकिन आर्थिक संकट के कारण सरकार इससे पीछे हट गई है।