देश इस समय गंभीर कृषि संकट से गुजर रहा है। किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत नहीं मिल रही है। कमाई नहीं होने से किसान लगातार कर्ज के बोझ से दबा जा रहा है। किसानों के आंदोलन लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में किसी सरकार और राजनैतिक दल से जिन कदमों की उम्मीद की जाती है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में नहीं उठाए हैं। प्रधानमंत्री की सारी चिंता नए जुमले देने में रहती है। यहां तक कि जिस स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर वह डेढ़ गुना एमएसपी बढ़ाने का दावा करते हैं, वह भी पूरी तरह से सही नहीं है। उन्होंने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का सपना दिखाया, वह भी नहीं होने वाला है। कुल मिलाकर वह किसानों को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन अभी किसानों को मूर्ख बनाने की जरूरत नहीं है, उन्हें ऐसे आदमी की जरूरत है जो उनकी मदद करे। किसान इस समय गंभीर हालत में है। यह संकट उपज की स्थिति और उचित कीमत नहीं मिलने और दूसरी वजहों से खड़ा हुआ है। पिछले वर्षों में कई बार ऐसा हुआ है कि पैदावार तो बहुत अच्छी हुई लेकिन किसान को उसकी उचित कीमत नहीं मिली। इस वजह से किसान के लिए खेती फायदेमंद नहीं रह गई है और वह कर्ज वापस करने में असफल रहा है। असर यह हो रहा है कि वह अगली फसल के लिए भी कर्ज नहीं ले पा रहा है। जिन किसानों ने कर्ज लिया भी है उन्हें ऊंची ब्याज दर पर कर्ज चुकाना पड़ रहा है। आज भी किसानों के लिए कर्ज के लिए जमानती संपत्ति दिखाना पड़ती है, जो आसान नहीं है। इस वजह से वह बैंक, को-ऑपरेटिव की जगह साहूकारों वगैरह से कर्ज ले रहा है, जिनकी ब्याज दरें बहुत ज्यादा हैं।
किसान एक और समस्या को लगातार झेलता है। वह है प्राकृतिक आपदा की। जब ऐसी कोई घटना होती है तो उसकी कमर बुरी तरह से टूट जाती है। इसका खामियाजा उसके पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। कई बार सारे संकट मिलकर ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देते हैं कि वह आत्महत्या करने जैसा कदम भी उठा लेता है। अभी ये सब घटनाएं हो रही हैं। किसानों की आत्महत्याएं लगातार बढ़ी हैं। मामला ज्यादा सामने नहीं आए, इसलिए केंद्र सरकार आंकड़े जारी नहीं कर रही है। स्थिति ऐसी गंभीर है तो किसी भी सरकार के लिए फौरन कदम उठाना बेहद जरूरी है। कर्जमाफी ऐसा ही एक रास्ता है जिसे कांग्रेस ने अपनी सरकारों के जरिए राज्यों में लागू किया है। कांग्रेस ने अभी जिन-जिन राज्यों में कर्जमाफी की है उनमें इस बात का भी ध्यान रखा है कि कर्जमाफी का फायदा वास्तव में जरूरतमंद किसान को ही मिले। इसी तरह का कदम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2008 में बड़े पैमाने पर कर्जमाफी कर उठाया था। यह पीड़ित किसान को तुरंत राहत देने का एक तरीका है, जिसकी इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है। हालांकि यह कोई स्थायी समाधान नहीं है।
हमें ऐसा समाधान ढूंढ़ना होगा जो लंबी अवधि के लिए हो। इसमें कुछ समाधान कृषि से संबंधित होंगे तो कुछ गैर-कृषि क्षेत्र से होंगे। कांग्रेस शासित राज्यों में इन्हीं चीजों को ध्यान में रखकर लंबी अवधि की योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिनमें बंटाईदार और भूमिहीन किसानों के हितों का भी ध्यान रखा जाएगा, साथ ही किसानों की फसल लागत कम हो इसके लिए भी काम किया जा रहा है।
कृषि संकट दूर करने के लिए कर्ज लेने की ऐसी प्रक्रिया बनानी होगी जिससे किसानों को आसानी से कर्ज मिल सके। साथ ही कर्ज भी सस्ता हो और समय से कर्ज की प्रक्रिया पूरी हो। इसके अलावा एक बेहतर बीमा योजना देनी होगी। अभी केंद्र सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चला रही है जिसमें कई सारी खामियां हैं। प्राइवेट कंपनियां मुआवजा देने में देरी कर रही हैं और किसानों के क्लेम खारिज कर रही हैं। कुल मिलाकर किसानों की कीमत पर प्राइवेट कंपनियों को फायदा हो रहा है। हमें ऐसा सिस्टम तैयार करना होगा जिससे किसान ज्यादा से ज्यादा संगठित क्षेत्र में आ सकें। वह उचित चैनल से सस्ता और सही समय पर कर्ज ले सके। इसके अलावा बेहतर फसल बीमा नीति, परिवहन और भंडारण का बेहतर नेटवर्क तैयार करने की जरूरत है, साथ ही फसलों के जरिए संवर्धित उत्पाद (प्रोसेस्ड) बनाना भी किसान के लिए आसान हो। ये सारे कदम उठाकर किसान के लिए कृषि फायदेमंद बनाई जा सकती है।
केंद्र की मौजूदा सरकार इन कदमों पर ध्यान देने की जगह अपने घनिष्ठ पूंजीपति मित्रों को खुश करने में लगी है। इसीलिए बैंकों के जरिए तो उन्हें राहत दी जा रही है लेकिन किसानों की बात आते ही मुंह फेर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यही असली चेहरा है। इसीलिए आप यह नारे सुनते हैं, “किसान विरोधी नरेंद्र मोदी।” हम कर्जमाफी कर किसानों के जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं, यह किसी भी तरह का राजनैतिक कदम नहीं है।
(लेखक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य हैं)