सत्ता के साथ नेता और अधिकारी किस तरह रंग बदलते हैं, इसका ताजा उदाहरण छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। मुख्यमंत्री बनने से पहले भूपेश बघेल को आइपीएस अधिकारी शिवराम प्रसाद कल्लूरी फूटी आंख नहीं सुहाते थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाते बघेल ने कल्लूरी पर बस्तर के आइजी रहते कई आरोप जड़े थे और यहां तक कि उन्हें जेल में डालने की भी बात की थी। वही कल्लूरी अब कांग्रेस और भूपेश बघेल के चहेते बन गए हैं। कल्लूरी को आर्थिक अपराध अनुसंधान और एसीबी का मुखिया बनाने से राष्ट्रीय स्तर पर बखेड़ा होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सफाई देनी पड़ी कि कल्लूरी एसीबी के मुखिया नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि इसके मुखिया तो डीएम अवस्थी ही रहेंगे। कल्लूरी उनके अधीन काम करेंगे। बता दें कि डीएम अवस्थी फिलहाल राज्य के डीजीपी हैं और उनके पास अब तक राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक विभाग का प्रभार भी था।
आर्थिक अपराध अनुसंधान और भ्रष्टाचार निरोधक विभाग राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के अधीन आता है, जिसकी कमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथों में है। पिछली सरकार ने बघेल पर आर्थिक अनियमितता का आरोप लगाकर भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में केस दर्ज करवाया था। यहां तक कि उन्हें परिवार सहित दफ्तर में तलब करवा लिया था। अब शायद उनका लक्ष्य यह है कि इस आरोप से पीछा छुड़ाया जाए और राजनीतिक विरोधियों पर भी निशाना साधा जाए। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कल्लूरी उपयुक्त लगे।
भाजपा के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव का कहना है कि मुख्यमंत्री को लगा कि कल्लूरी काबिल अफसर हैं, इस कारण उन पर भरोसा किया गया। उनका विरोध गलत था। लेकिन बस्तर आइजी रहते कल्लूरी के जिस तरह के कारनामे रहे और वे कांग्रेस ही नहीं, मानवाधिकार संगठन और देश के सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर भी रहे और उसकी चौतरफा आलोचना होने लगी है। इससे मुख्यमंत्री बघेल के फैसले पर सवाल खड़े होने लगे हैं। कल्लूरी बस्तर में आइजी रहे तो उन पर फर्जी मुठभेड़, हत्या, आगजनी, बलात्कार, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों को जेल भेजने वगैरह के आरोप लगते रहे। सरकार बनने के बाद किसानों और समाज के अन्य वर्ग के लिए निर्णय से जहां भूपेश बघेल की छवि निखरी थी, वहीं कल्लूरी मामले से उस पर बट्टा लगता दिख रहा है। कल्लूरी, खासकर नक्सल समस्या को हल करने के उनके तरीके से पुलिस के आला अधिकारी खुश नहीं थे। निजी चर्चाओं में आला अफसर इसका जिक्र भी किया करते हैं।
चर्चा तो यह भी है कि कल्लूरी ने राज्य के मुखिया रहे और भाजपा शासन में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को सलाखों के पीछे भेजने की बात करके सुर्खियों में रहने वाला पद हथिया लिया। यही वजह है कि सीनियर अफसरों के विरोध के बावजूद कल्लूरी आइजी ट्रेनिंग से एसीबी के आइजी बन गए। कल्लूरी पहली बार सुर्खियों में नहीं आए हैं। बिलासपुर के एसपी रहते 2003 के विधानसभा चुनाव में उनकी गतिविधियों से नाराज होकर तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह ने उन्हें हटा दिया था। अजीत जोगी जब मुख्यमंत्री थे, तब वे जोगी के आंख-कान थे। तब जोगी को डैडी कहने वाले कल्लूरी भाजपा के निशाने पर रहे। सत्ता में आने के बाद भाजपा ने उन्हें कुछ दिनों तक लूप लाइन में रखा, फिर उन्हें दंतेवाड़ा का एसपी बना दिया। कई विवादों के सामने आने और उन पर सीधे आरोप लगने के बाद उन्हें हटा दिया गया। सरगुजा क्षेत्र के छोटे से जिले बलरामपुर के एसपी रहे कल्लूरी उत्तर प्रदेश और झारखंड से सटे इस जिले से नक्सलियों के सफाये का श्रेय लेते हैं, लेकिन कल्लूरी की रणनीति से सरकार के आला अधिकारी सहमत नहीं रहे, जिसके चलते वहां से भी उन्हें हटाया गया।
बस्तर में नक्सल समस्या िसर चढ़कर बोलने लगी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें 2014 में बस्तर आइजी बना दिया। नक्सल मामले में वे अपनी अलग छवि बनाने में लगे रहे, पर उनके कुछ कारनामों से रमन सरकार की राष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हो गई और उन्हें जबरिया छुट्टी पर भेजना पड़ा। लेकिन कल्लूरी के पुराने रिकॉर्ड को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके इस्तेमाल की रणनीति बनाई, लेकिन कल्लूरी की नियुक्ति तो उनके लिए सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसा हो गई।