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दोनों तरफ सियासी बाजी

चुनावों से ऐन पहले सीबीआइ की कार्रवाई संदेह के घेरे में, लग रहा राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप
पुलिस हिरासत मेराजीव कुमार के घर पहुंचे सीबीआई अधिकारी

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और सीबीआइ आमने-सामने हैं। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश से विराम-सा लग गया है। लेकिन, जंग की यह बाजी किसी के हाथ नहीं लगने वाली है। दोनों पक्षों पर चिटफंड घोटाले को लेकर ओछी राजनीति करने का आरोप है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह ड्रामा कब तक चलता है और इसका अंतिम नतीजा क्या निकलेगा, लेकिन बंगाल की ताकतवर मुख्यमंत्री और एक बदनाम केंद्रीय जांच एजेंसी दोनों को कई बातों के जवाब देने होंगे। शारदा और रोज वैली जैसी पोंजी फर्मों से जुड़े घोटालों ने लाखों छोटे निवेशकों के करोड़ों रुपये के साथ फर्जीवाड़ा किया। फर्म चलाने वालों के नेताओं के साथ करीबी संबंध थे और ममता के कई अपने लोग कठघरे में हैं। उनसे कथित संबंधों की वजह से उनमें कुछ, जैसे पूर्व मंत्री मदन मित्रा और संसद सदस्य तपस पॉल, ने काफी समय जेल में गुजारा। सीबीआइ को भी काफी कुछ जवाब देने हैं। आम चुनावों से पहले चिटफंड की जांच से जुड़ी कुछ कथित फाइलों के गुम होने के कई महीने बाद कोलकाता पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने का फैसला कई सवाल खड़े करता है। चुनावों से ऐन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती देने के लिए ममता बनर्जी ने कोलकाता में विपक्ष की रैली की मेजबानी की। इसके बाद सीबीआइ ने पुलिस कमिश्नर के घर अपनी टीम भेजकर जिस तरह की तेजी दिखाई, वह सवालों के घेरे में है।

इसके अलावा, सिर्फ पश्चिम बंगाल से ही चिटफंड का कारोबार नहीं चलता है। उसके पड़ोसी राज्य ओडिशा में भी इसी तरह के घोटालों की गूंज उठी थी, लेकिन वहां सीबीआइ ने बहुत कम सक्रियता दिखाई। हालांकि, सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के सदस्यों के तार इससे जुड़े हैं। फिर भी ओडिशा में जांच में बहुत कम प्रगति हुई है। वहां भाजपा अपने पैर पीछे खींच रही है, क्योंकि वह चुनावों के बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से गठबंधन पर नजर बनाए हुए है। सीबीआइ की इस मंशा के पीछे कई और वजहें हैं। ममता बनर्जी के करीबी और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल रॉय भी शारदा चिटफंड मामले में संदेह के घेरे में थे। उनकी गिरफ्तारी की भी बहुत चर्चा थी। लेकिन, वे पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए और अब तक आजाद हैं। अब वे बंगाल में भाजपा के शीर्ष नेता हैं और उन्हें ममता बनर्जी को सत्ता से बाहर करने के लिए आक्रामक नेतृत्व का जिम्मा सौंपा गया है। इसलिए जब सीबीआइ मुकुल रॉय जैसे को छोड़ देती है और ममता के करीबियों पर शिकंजा कसने की कोशिश करती है, तो बंगाल की मुख्यमंत्री उसे चुनौती देती हैं, ऐसे में उन्हें पूरी तरह से गलत नहीं कहा जा सकता है।

बयानबाजी से कभी पीछे नहीं हटने वालीं ममता ने प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलने के मौके को लपक लिया। कोलकाता में धरना स्थल से पार्टी के वफादार लोगों के बीच उन्होंने कहा, “मोदी पगला गए हैं।” पुलिस कमिश्नर से सीबीआइ की पूछताछ के कदम के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन में धरने पर जाकर, उन्होंने अपना सबसे अचूक हथियार चला। उन्होंने अपने शुरुआती वर्षों में तत्कालीन वामपंथी सत्ता के खिलाफ सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन से राजनीतिक आधार बढ़ाया और एक बार फिर सड़कों पर उतरकर मोदी के खिलाफ अपने लिए समर्थन की व्यूह रचना की है। यह कई तरह से उनके लिए मददगार हो सकता है। एक, वे खुद को मोदी के प्रमुख विरोधी के रूप में पेश कर सकती हैं और प्रधानमंत्री पद के एक महत्वाकांक्षी उम्मीदवार के रूप में अपनी साख को बेहतर कर सकती हैं। दूसरे, सीबीआइ को अपने खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के तौर पर पेश करके चिटफंड की जांच में अपने सहयोगियों को बचा सकती हैं। उनके लिए यह बताना आसान होगा कि उनकी कथित भागीदारी राजनीतिक बदले से प्रेरित थी।

हालांकि, 4 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना धरना समाप्त कर दिया और दोनों ही पक्षों ने इस आदेश को अपनी 'नैतिक जीत' करार दिया। उधर, सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआइ की जांच में हर संभव सहयोग करने को कहा और पूछताछ के लिए एक तटस्थ जगह शिलांग तय कर दी। इससे पहले सीबीआइ की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर सबूत मिलता है, तो कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर सख्त कार्रवाई होगी।

लेकिन 4 फरवरी को दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने राजीव कुमार को सिर्फ सीबीआइ के सामने पेश होने का आदेश दिया और गिरफ्तारी से भी छूट दे दी। वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने धरना खत्म करते ही दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ अगले हफ्ते हल्लाबोल की भी घोषणा कर दी। ऐसे में शारदा घोटाले की जांच के नाम पर सीबीआइ से शुरू होने वाली यह लड़ाई बाद में केंद्र बनाम ममता सरकार हो गई। बता दें कि सबसे पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु ने सीबीआइ को अपने राज्य में बिना इजाजत घुसने से मना कर दिया था। उसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इसे आगे बढ़ाया और अपने राज्य में सीबीआइ के सीधे हस्तक्षेप पर पाबंदी लगा दी।

अगर भाजपा की योजना चुनावों से पहले ममता पर दबाव बनाने और उनकी घेराबंदी के लिए सीबीआइ का इस्तेमाल करने की थी, तो यह सही नहीं बैठी। ममता ने खुशी-खुशी चुनौती स्वीकार कर ली। बेशक, मुख्यमंत्री इस बारे में बात करेंगी कि भाजपा की अगुआई में निरंकुश केंद्र सरकार संघीय ढांचों को नष्ट करके राज्यों को उपनिवेश बनाना चाहती है। वे खुद को पीड़ित के रूप में पेश कर निस्संदेह बंगाली गौरव का भी आह्वान करेंगी। लेकिन यह समझने में कोई गलती न करें कि कोलकाता में हाइ वोल्टेज ड्रामेबाजी चल रही है, जिसका राजनीतिक पैंतरेबाजी से अधिक और नैतिकता से कम लेना-देना है। दोनों पक्ष राजनीतिक लाभ लेने की जुगत में हैं और इससे अगर संवैधानिक संकट भी पैदा होता है, तो हो।

(लेखक आउटलुक अंग्रेजी के संपादक हैं)

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