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फैशन का संकट

इन दिनों पता नहीं क्यों लोग अंग-वस्त्रों को देखकर वैसे ही भड़कने लगे हैं जैसे लाल वस्त्र देखकर सांड भड़क जाया करते हैं। अभी तक क्या खाएं क्या पिएं और क्या कहें पर शुद्धतावादियों की वक्रदृष्टि थी, अब क्या पहनें पर भी उनकी कुदृष्टि पड़ने लगी है। हमारे महानायक अमिताभ जी को भी अपनी नातिन एवं पोती को पत्र लिखकर बताना पड़ा कि तुम्हारे स्कर्ट के एक इंच छोटे होने पर उंगलियां उठेंगी। तुम उन पर कतई ध्यान न देना और अपनी मर्जी से रहना। फिल्म-स्टारों की यह विडंबना है कि वे अपनी बात खुलकर नहीं कह सकते क्या पता कौन उनकी फिल्म पर अघोषित ‘बैन’ लगा दे।
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यह छोटे स्कर्ट की बात इसलिए सामने आई कि हमारे पर्यटन मंत्री ने विदेशी सैलानियों को सलाह जारी की कि वे छोटे-स्कर्ट पहनकर यहां न आएं। उनकी सुरक्षा एवं हमारे युवाओं के चरित्र पर खतरा है। उधर फ्रांस में बुर्किनी पहनने पर पाबंदी लगा दी है। वास्तव में यह बुर्किनी बुर्के का स्वीमिंग-सूट रूप है। लोग कम वस्त्र पहनकर नहाएं, न पहन कर नहाएं आपको क्या फर्क पड़ता है?

चौदहवीं के चांद फिल्म में तो हीरोइन बुर्के में भी इतनी हसीन लगती थी कि सिनेमा हॉल में लोग गाने-नाचने लगते थे। जैसे इन दिनों स्किनी-जींस का चलन है। जिसमें जंघाएं खुली दिखती हैं, प्राचीन काल में चूड़ीदार पाजामे होते थे जो टांगों से चिपके रहते थे। प्रश्न यह है कि लोग क्या पहनें, विशेष रूप से महिलाएं तो यह तो सीधे दादागीरी है। हर युग में वस्त्रों का फैशन बदलता रहता है। रामायण-काल में भी केवल अंग-वस्त्र ही होते थे। महाभारत काल में उनमें इजाफा हुआ। मुझे तो इन दिनों के वस्त्र कतई बुरे नहीं लगते, बशर्ते कोई अच्छे सौष्ठव वाली महिला स्कर्ट पहने या जींस पहने। हां, बेढंगे शरीर पर कितनी ही नई शैली की ड्रेस पहनी जाए, वह बुरी ही लगेगी।

बात स्कर्ट की चल रही थी, हमारे आदिवासी अंचलों में जाकर देखें तो वहां महिलाएं स्कर्ट जैसा ही घाघरा आज भी पहनती हैं और कोई उन पर उंगली नहीं उठाता। राजस्थान-मालवा में तो टॉप की तरह आज भी आपको ‘स्लीव-लेस’ कांचलीया ब्लाउज पहने महिलाएं दिख जाएंगी। उन्हें देखकर तो कोई बुरा नहीं कहता। फिर इन दिनों साड़ियां भी तो नाभि-दर्शना हो गई हैं।

वैसे खाकसार को भी भारतीय पहनावा खूब पसंद है। मैं स्वयं कुर्ता-पाजामा और नेहरू जैकेट पहनता हूं। महिलाओं पर भी साड़ियां खूब अच्छी लगती हैं। मगर आप विदेशी सैलानी महिलाओं से यह अपेक्षा तो नहीं कर सकते कि वे साड़ियां पहनकर ही हमारे देश आएं। ऐसे तो कोई विदेशी भारत आएगा ही नहीं। अब तो हमारे मॉडर्न-बाबा रामदेव भी भारतीय जींस बाजार में लाने वाले हैं। अब जींस धोती की तरह तो पहनी नहीं जा सकती, हो सकता है कि लुंगी स्टाइल में पहनने वाली हो। लुंगी से ध्यान आया कि शाहरुख ने अपनी हीरोइन के साथ शानदार लुंगी-डांस किया था एक हिंदी फिल्म में, वह आज इतना पापुलर हुआ कि शादियों में युवागण लुंगी पहनकर ही नहीं पूरी उठाकर नाचते-गाते हैं।

कुल मिलाकर इतना ही कहना है या प्रार्थना है हमारे शुद्धतावादी या पवित्रतावादियों से कि अपनी संस्कृति के नाम पर फैशन में अपनी कथित टांगें न अड़ाएं। आप चाहें तो धोती पहनें या पाजामा, बरमूडा भी पहन कर घूम सकते हैं, लेकिन दूसरों के अंग-वस्त्रों को न घूरें, पहनावे में एकात्मवाद नहीं चलेगा। 

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