ते रह साल के लंबे समय से राजनीतिक वनवास झेल रही कांग्रेस को दो साल बाद संभावित जीत की गंध से एक बार फिर कलह के कर्कश विवादों ने घेर लिया है। कांग्रेस के क्षत्रप एक तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को चलता करने की साजिशों में जुट गए हैं, तो चुनाव प्रचार की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों में आने से रोकने की भी जी-तोड़ कोशिशें चल रही हैं। जीत का सिरमौर बनने की होड़ में जंग के मैदान में भाजपा के सामने खड़े कांग्रेसी आपस में लडक़र खुद को ही लहूलुहान कर रहे हैं।
2003 में प्रदेश के इतिहास की सबसे शर्मनाक हार झेलने वाली कांग्रेस के सबसे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने 10 साल के राजनीतिक वनवास को धारण करने का ऐलान किया था। प्रत्यक्ष रूप से मध्य प्रदेश की राजनीति से खुद को दूर करने वाले दिग्विजय सिंह राष्ट्रीय महासचिव बनकर केंद्रीय फलक पर सक्रिय रहे। लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस का वनवास खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। 2013 में ‘कांग्रेस का चेहरा कौन’ की जद्दोजहद के चलते उसने मुंह की खाई। चुनाव के तीन महीने पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का मुखिया बनाया गया तो आठ और समितियों में दूसरे क्षत्रपों को ‘एडजस्ट’ करने के नाम पर कांगेस का सत्ता वापसी का अभियान चूं-चूं का मुरब्बा बनकर रह गया। चुनाव हारने के बाद सारे क्षत्रपों ने मध्य प्रदेश से तौबा कर ली। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद तो किसी ने मध्य प्रदेश की तरफ झांकने की जहमत भी नहीं उठाई। राहुल गांधी ने तब युवा चेहरे पर दांव लगाने के नाम पर अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। यादव पिछले साल भर से जमीनी जुड़ाव को वापस लौटाने के प्रयास कर रहे हैं। वह चरणबद्ध तरीके से पदयात्रा के जरिए कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन आंतरिक सर्वेक्षणों के आकलन और जमीनी फीडबैक के आधार पर कांग्रेस हाईकमान को लगता है कि यादव के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे चमकदार चेहरे को भी मैदान में उतारा जाए। उनके साथ सुरेश पचौरी जैसे खांटी ब्राह्मण नेता की भी जुगलबंदी हो। इस काम में महाकौशल के कद्दावर कांग्रेस नेता कमलनाथ भी जी-जान से जुटें। राहुल गांधी चाहते हैं कि इस टीम के साथ जीतू पटवारी, कुणाल चौधरी और दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह जैसे नए चेहरे काम करें। लेकिन दिग्विजय गुट अरुण यादव को हटाने और ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोकने की मुहिम में लगा है। इस गुट को अंदाजा है कि राहुल गांधी दिग्विजय पर दांव नहीं खेलेंगे। इसी के चलते दिग्गी कैंप ने कमलनाथ की, मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की पुरानी और अधूरी हसरतों को हवा देना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि 1993 में कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के जतन किए थे। लेकिन तब कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह ने पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री के नाम पर सुभाष यादव का नाम आगे बढ़ाया था। उन्होंने कमलनाथ की हसरतों पर यह कहकर पानी उड़ेल दिया था कि प्रदेश की जनता उन्हें स्वीकार नहीं कर सकती। इससे खीझे कमलनाथ ने यादव के खिलाफ दिग्गीराजा से हाथ मिलाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया था। अब दिग्गीराजा कमलनाथ की अगुआई में प्रदेश में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं। जीतू पटवारी और बाला बच्चन सरीखे कमलनाथ समर्थकों ने यादव को हटाने और कमलनाथ को कमान सौंपने की मुहिम छेड़ रखी है। दिग्विजय कैंप के डॉ. गोविन्द सिंह ने सिंधिया के खिलाफ अभियान चला रखा है।
अरुण यादव तो मौजूदा राजनीतिक हालात में असहाय मुद्रा में नजर आ रहे हैं, तो सिंधिया कैंप ने दिग्गी खेमे पर जमकर पलटवार किया है। सामंती पृष्ठभूमि को लेकर निशाना बनाने वाले कांग्रेसियों को जवाब देने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी कार्यशैली में काफी बदलाव किया है। श्योपुर में कुपोषण से मौतों के मामलों को लेकर वो कुपोषित इलाकों में घूमे। कुपोषित बच्चों को गोद में लेकर दुलारा। जिला प्रशासन से लेकर केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी तक उन्होंने इस मुद्दे पर दस्तक दी। डॉ. गोविन्द सिंह के गढ़ भिंड में जाकर ललकारा। वहां इतनी बड़ी रैली की कि दिग्गी कैंप के साथ-साथ राज्य की भाजपा सरकार के भी कान खड़े हो गए। सिंधिया ने इस रैली में आए कांग्रेसियों को अपने हाथों से नाश्ता बांटकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे ग्वालियर घराने के महाराज के आभा मंडल से बाहर निकल रहे हैं। यह जवाब कांग्रेस के अपने आलोचकों के लिए भी है और भाजपा के उन पैरोकारों के लिए भी संदेश है जो शिवराज को पांव-पांव वाले भैया, गरीबों के मसीहा और प्रदेश के बच्चों के मामा के रूप में प्रचारित करते हैं।
यादव को हटाने की मुहिम में लगे कांग्रेसी इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि ब्राह्मण, बनियों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा ने 13 साल से पिछड़ों की राजनीति पर दांव खेल रखा है। लोधी समाज की उमा भारती, यादव बिरादरी के बाबूलाल गौर और उसके बाद किरार समाज से ताल्लुक रखने वाले शिवराज सिंह चौहान। यानी तीन मुख्यमंत्री और तीनों ही पिछड़े वर्ग से। ऐसे में अरुण यादव को चुनाव के पहले हटाने का प्रदेश के पिछड़े वर्गों में क्या संदेश जाएगा, यह आसानी से समझा जा सकता है। हालांकि कमलनाथ के खास समर्थक रहे पूर्व विधायक सुखदेव पांसे कहते हैं कि कमलनाथ भी पिछड़े वर्ग के ही हैं। उनकी शादी भले ही अलका शर्मा से हुई हो लेकिन कमलनाथ खुद खत्री हैं। खत्री पंजाबी हैं, जो पिछड़े वर्ग से ही आते हैं। पांसे की माने तो सिंधिया भी पिछड़े वर्ग से हैं। पांसे की यह दलील पिछड़े वर्गों में कितना असर डालेगी यह तो चुनाव नतीजे ही बता सकते हैं।
बहरहाल नेताओं के बीच में मची इस कलह के चलते प्रदेश कांग्रेस में भारी पसोपेश के हालात हैं। अरुण यादव असहज हैं, तो सिंधिया चाहकर भी प्रदेश की भाजपा सरकार के प्रति उपजते असंतोष को भुना नहीं पा रहे। सिंधिया-यादव कैंप चाहता है कि हाईकमान 2018 विधानसभा चुनाव के लिए अभी से स्थिति साफ करे। ताकि बाकी बचे दो सालों में मेहनत करके कांग्रेस के लिए सत्ता की फसल उगाई जा सके। कमलनाथ की पैरोकारी करने वाले कांग्रेसी आर्थिक संसाधनों की दुहाई दे रहे हैं। उनकी दलील है कि 2018 के चुनाव की तैयारियों में जितना पैसा खर्च होना है उसका इंतजाम कमलनाथ जैसे कारोबारी पृष्ठभूमि के दरियादिल नेता ही कर सकते हैं। सोनिया और राहुल मध्य प्रदेश में कांग्रेस के भविष्य को लेकर क्या फैसला करते हैं और कब करते हैं इसका अंदाजा लगाना कठिन है। लेकिन एक बात तय है कि भाजपा नेता कांग्रेस के यादवी संग्राम से बेहद खुश हैं। कांग्रेसियों के झगड़ों की आड़ में भाजपा में उपजता असंतोष वो दबा रहे हैं। भाजपाई रणनीतिकारों को लगता है कि यदि ज्योतिरादित्य को कांग्रेस आगे करेगी तो उनका विरोधी खेमा चुनाव में भाजपा की मदद करेगा। यदि कांग्रेस ने कमलनाथ पर दांव खेला तो भाजपा पूरे चुनाव को धरती पुत्र बनाम बाहरी के मुद्दे की तरफ मोड़ देगी। भाजपा गरीबों और किसानों के मसीहा बनाम व्यापारी का चुनाव बना देगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि उन्हें भरोसा है कि कांग्रेस हाईकमान भाजपा के मंसूबों को पूरा नहीं होने देगा। यादव ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि उनके खिलाफ कौन लोग और क्यों मुहिम चला रहे हैं। लेकिन जहां तक मेरा सवाल है तो प्रदेश के तमाम वरिष्ठ नेता मेरे लिए सम्माननीय और आदरणीय हैं। कांग्रेस आलाकमान जो भी दिशा-निर्देश देगा वह उनके लिए शिरोधार्य होगा।
दूसरी ओर सिंधिया मानते हैं कि 11 साल से मुख्यमंत्री के रूप में डटे शिवराज सिंह चौहान से कांग्रेस को मुकाबला करना है, तो उसे जनता के सामने कांग्रेस का चेहरा बनाकर किसी न किसी को जिम्मेदारी देनी होगी। यह बदलते वक्त की जरूरतों के मुताबिक है। जनता जब शिवराज से निजात पाने का फैसला करेगी तो उसके सामने कांग्रेसी नेता के रूप में वैकल्पिक चेहरा होना ही चाहिए। सिंधिया मानते हैं कि यह काम जितना जल्दी होगा, भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का उतना अधिक मौका रहेगा। वैसे भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को लगता है कि कांग्रेस चाहे जितने जतन कर ले वो शिवराज सिंह चौहान और भाजपा को चौथी बार सरकार बनाने से नहीं रोक सकती।