‘भ्रष्टाचार मुक्त हरियाणा’ के मनोहरलाल खट्टर के मंसूबे में कुछ वरिष्ठ अधिकारी पलीता लगाने पर आमादा हैं। पिछले दो वर्ष के उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में पंद्रह से अधिक बार अधिकारियों के तबादले करने के बावजूद उनमें से कई के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की शिकायतें निरंतर मिल रही हैं। ऐसे अधिकारियों की कारगुजारियों के कारण कई दफा मुख्यमंत्री को आलोचना झेलनी पड़ी। बावजूद इसके, इससे उबरने के उनके प्रयासों में कमी नहीं आई है। मुख्यमंत्री ने पंचकूला के सेक्टर 23 में हरियाणा राज्य विजिलेंस ब्यूरो के नवनिर्मित भवन के उद्घाटन के मौके पर विजिलेंस अधिकारियों को ‘कुछ बड़ा’ करने की हिदायत देते हुए कहा था, ‘सिर्फ कर्मचारियों के खिलाफ नहीं बड़े अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी चाहिए।’ मनोहरलाल खट्टर के कार्यकाल में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत कार्रवाई करते हुए अब तक 334 मामले दर्ज किए गए हैं।
ताजा मामला प्रदेश के कुछ शीर्ष अधिकारियों के सरकारी पैसे की बंदरबांट का है। यह प्रकाश में तब आया जब कार्मिक विभाग ने बेदाग छवि के माने-जाने वाले साइंस एवं टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रधान सचिव अशोक खेमका को पत्र जारी कर ‘लीव ट्रैवल कन्सेशन यानी एलटीसी के नाम पर सरकार से लिए गए 12,397 रुपये लौटाने को कहा। जवाब में खेमका ने पैसे तो नहीं लौटाए, उलटा, सूचना अधिकार के तहत निकाली गई 73 अधिकारियों की एक सूची मुख्य सचिव डीएस ढेसी को पकड़ा दी जिन पर एलटीसी के नाम पर 2009 से अब तक सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप है। ऐसे ही अधिकारियों में इस वर्ष मई में सेवानिवृत्त हुए कुरुक्षेत्र के एक सीनियर आईएएस अधिकारी भी शामिल हैं। कहते हैं, 2009 से अब तक वे एलटीसी के नाम पर सरकार को चार लाख से अधिक रुपये का चूना लगा चुके हैं। चंडीगढ़-कुरुक्षेत्र के बीच जितनी दूरी है, उस हिसाब से यात्रा भत्ता 500 रुपये से अधिक नहीं बनता। मगर उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति तक एलटीसी के नाम पर सरकारी पैसे से खूब मजे किए। खेमका के जुटाए आंकड़े बताते हैं, उक्त सीनियर आईएएस को सरकार ने एलटीसी के नाम पर वर्ष 2009-10 में 89,243, 2014-15 में 1,52,000 और 2015-16 में 1,75,000 रुपये का भुगतान किया। इसी तरह दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद दो आईएएस अधिकारियों को 2009 में एलटीसी के नाम पर एक महीने का वेतन अदा किया गया। खेमका ने मुख्य सचिव को जो फेहरिस्त सौंपी है, उसमें कई बड़े नाम शामिल हैं।
दूसरी तरफ, अशोक खेमका पर आरोप है कि उन्होंने 2013-14 में एलटीसी के नाम पर लिया गया पैसा मां के ‘इलाज’ पर खर्च कर दिया, जो नियम-विरुद्ध है। खेमका की वृद्धा मां सबिरी खेमका तब उनके साथ चंडीगढ़ में रहती थीं। इलाज के लिए 13 दिसंबर 2013 को वे अपनी मां को चंडीगढ़ से अपने गृह जिला कोलकाता ले गए थे। फिर 05 अप्रैल 2014 में वे उन्हें कोलकाता से चंडीगढ़ लेकर आए। इस दौरान उन्होंने अपनी मां का टिकट और वाउचर दिखाकर सरकार से एलटीसी के नाम पर 12,397 रुपये लिए। उन्होंने 2015 में भी ऐसा ही प्रयास किया था, पर सरकार ने उनकी छुट्टी मंजूर नहीं की। वैसे, खेमका से पैसे की ‘रिकवरी’ की कार्रवाई इस वर्ष जून से चल रही है। मुख्य सचिव डीएस ढेसी ने आल इंडिया सर्विस रूल 1975 और केंद्र सरकार के मई 2016 के कुछ नियमों एवं आदेशों का हवाला देते हुए उनसे मां के इलाज के नाम पर लिए गए एलटीसी के पैसे लौटाने को कहा है।
खेमका ने अपने खिलाफ पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि ‘कुछ लोगों को गलत तरीके से लाभ देने के लिए सिद्धांतों की बलि दी जा रही है, जबकि उनको प्रताड़ित करने का सिलसिला बंद नहीं हुआ है।’ उन्होंने एलटीसी के संदर्भ में दलील दी है कि मां को कोलकाता से लेकर लौटते समय उन्होंने हवाई जहाज की छह टिकटें बुक कराई थीं। उनमें अटेंडेंट का टिकट भी था। सारी टिकटों का पैसा उन्होंने अपनी जेब से अदा किया था। केवल मां की टिकट के पैसे सरकार से लिए थे। उन्होंने सीसीएस/एलटीसी रूल 1988-18 का हवाला देते हुए वसूली की कार्रवाई को गलत बताया है।
अशोक खेमका भाजपा सरकार के चहेते अधिकारियों में शुमार होते हैं, पर अपने खिलाफ होने वाली कार्रवाइयों से खफा होकर अब उन्होंने सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। इसके बावजूद स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज उनका समर्थन करते हुए कहते हैं, ‘सत्य की हमेशा जीत होती है और ईमानदारी कभी बेकार नहीं जाती। इसलिए खेमका भी तमाम विवादों से जल्द उबर आएंगे।’