शिवसेना के उद्धव ठाकरे भले ही अपने हाथ में गुलाब का फूल लेकर उसकी पंखुड़ियां नोचते हुए, ‘लव मी लव मी नॉट’ (प्रेम और रिश्ते को परखने के लिए खेले जाने वाला बचकाना खेल) न करते हों लेकिन यह वह भी जानते हैं कि उष्मा और प्रेम का यह 25 साल पुराना गठबंधन लगभग टूटने की कगार पर है। यह खटास समय-समय पर जाहिर भी हो रही है। अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न सिंह की तरह उद्धव दहाड़ने लगे हैं और स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि अगले साल फरवरी की शुरुआत में होने वाले मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में शिवसेना भाजपा के साथ चुनाव नहीं लड़ना चाहती है। भाजपा के दो महत्वपूर्ण ‘गठबंधन दोस्त’ दो राज्यों में उनकी स्थिति को सी-सॉ की तरह ऊंचा-नीचा कर रहे हैं। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। सर्वेक्षण बता रहे हैं कि इस बार अकाली-भाजपा गठबंधन का सूपड़ा साफ हो जाएगा। इसकी वजह अकाली सरकार के भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी वह जनता है जिसने दस साल इस सरकार को सिर आंखों पर बिठाया था। अकाली राज में ड्रग्स, कारखानों का बंद होना, उद्योगों की खराब स्थिति, किसानों की बदहाली इसका बड़ा कारण है। इसके अलावा अप्रवासी भारतीय निवेश संबंधी नियमों में बदलाव चाहते हैं। जिसके न होने से यह तबका नाराज है। इस तबके ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। भाजपा दृढ़ प्रतिज्ञ है कि वह अपने गठबंधन को कायम रखेगी और शिरोमणि अकाली दल के साथ ही चुनाव लड़ेगी। आखिर इस दोस्ती का राज क्या है। भाजपा का पंजाब में जनाधार दोआबा क्षेत्र तक सीमित है। पंजाब में असली राजनैतिक परीक्षा मालवा क्षेत्र में होती है जहां उसे पूछने वाला कोई नहीं है। मालवा अकालियों का गढ़ है। इस बीच पंजाब में केजरीवाल ने बहुत साहस के साथ खेल बिगाड़ना शुरू कर दिया था लेकिन बीच में भाजपा के निवर्तमान राज्यसभा सांसद नवजोत सिंह सिद्धू ने ‘कभी हां कभी ना’ स्टाइल में झटका देकर चुनावी बिसात को रोचक कर दिया है। आप पार्टी की रही सही कसर सुच्चासिंह छोटेपुर ने निकाल दी।
अगर अकाली-भाजपा गठबंधन सत्ता से बाहर होता है तो यह हार पार्टी से ज्यादा पंजाब की होगी। शिरोमणि अकाली दल जब भी सत्ता से बाहर रहा है, वह चरमपंथियों के साथ खड़ा दिखा है। पंजाब के हालात फिर पुराने हो जाएंगे इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। खालिस्तान की मांग वैसे भी रह-रह कर उठती रही है। नशे के कारोबार ने पंजाब की स्थिति बहुत खराब कर दी है। सीमा पार से आने वाली नशे और आतंक की खेप ने युवाओं को गर्त में धकेल दिया है। पंजाब में खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है और रोजगार नहीं है। ऐसे में अकाली-भाजपा गठबंधन को दोबारा लौटना लोहे के चने चबाने जैसा साबित होगा।
पंजाब में गठबंधन और महाराष्ट्र में दोस्ती के बारे में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव श्रीकांत शर्मा कहते हैं, ‘दोनों ही हमारे सहयोगी हैं और उनका साथ लंबे समय से रहा है। पंजाब में हम गठबंधन को लेकर पूरी तरह से कृतबद्ध हैं। हम सहयोगियों का पूरा सम्मान करते हैं और यह कोई भी देख सकता है कि स्पष्ट बहुमत के बाद भी केंद्र में हमारे सहयोगी दलों के नेता मंत्री पद पर हैं।’ वह इस बात से बहुत सहमत नहीं हैं कि गठबंधन की पुर्नसमीक्षा होनी चाहिए। श्रीकांत शर्मा कहते हैं, ‘पूर्ण आश्वस्ति हो तो समीक्षा या पुर्नसमीक्षा की जरूरत नहीं रह जाती।’ महाराष्ट्र में स्थिति थोड़ी-सी अलग हो गई है। बंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के चुनाव जैसे-जैसे पास आ रहे हैं, भाजपा और शिवसेना के बीच खाई बढ़ रही है। लगभग दो दशकों से शिवसेना बंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन पर राज कर रही है। बीएमसी का बजट भी इस लड़ाई का मुख्य कारण है। यह देश का सबसे अमीर स्थानीय निकाय है। सन 2016-17 के लिए इसका बजट 37052 करोड़ रुपये है। इसलिए बीएमसी चुनाव में वर्चस्व से ज्यादा पैसे की लड़ाई है। यदि शिवसेना अकेले यह चुनाव लड़ती है तो भाजपा के लिए राज्य में दिक्कत तो पैदा हो ही जाएगी। स्थानीय स्तर पर ऐसे नुकसान से भाजपा को केंद्र में बड़ी दिक्कत नहीं होगी लेकिन समय-समय पर शिवसेना के नेताओं की बयानबाजी से केंद्र सरकार के सिर में दर्द जरूर हो जाता है। भाजपा के खिलाफ बोलने में मुखर शिवसेना के नेता, संजय राउत कहते हैं, ‘हमने 25 सालों से दोस्ती निभाई है। केंद्र में जब एनडीए की सरकार थी तब हम सत्ता की चाह की पहवाह किए बिना उनके साथ रहे। सब उन्हें छोड़ कर चले गए पर हमने साथ नहीं छोड़ा।’ संजय राउत मानते हैं कि भाजपा के साथ अब उन लोगों का भावनात्मक रिश्ता नहीं रहा है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जल्द ही उद्धव ठाकरे बनारस में गंगा आरती भी करेंगे।
शिवसेना की जुबानी जंग हमेशा से ही जारी रहती है। भाजपा नेता किरीट सोमैया जब इस जुबानी जंग में कूदे तो उद्धव ने दशहरा रैली में मुंबई शिवसेना की ताकत दिखा दिया। साथ ही यह भी कहा कि शिवसेना मुंबईकरों की है। यदि भाजपा में दम है तो वह गठबंधन तोड़ कर दिखाए। भाजपा में तो कोई भी नेता कुछ भी बोलता रहता है। यदि भाजपा गठबंधन तोड़ती है तो वह अपना ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ दिखाएंगे। शिवसेना से जुड़े सूत्र कहते हैं, ‘जुबानी जंग से दोनों ही पार्टियों को नुकसान हो रहा है। किसी को कम किसी को ज्यादा। भाजपा-शिवसेना गठबंधन पुराना है। दोनों विचारधारा के स्तर पर भी सहज महसूस करते हैं, इसलिए भाजपा को शिवसेना के साथ नरमी बरतनी चाहिए।’ यह दोस्ती की वजह से ही महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना की सरकार है। इसमें कोई शक नहीं है कि सीटों के लिहाज से पार्टी का दबदबा है लेकिन देवेंद्र फड़नवीस तमाम आपसी तकरार और वाक युद्ध के बावजूद सरकार चला रहे हैं। भाजपा पर शिवसेना लाख तोहमतें लगाती रहे लेकिन भाजपा ने अभी तक सीधे-सीधे शिवसेना के खिलाफ फ्रंट नहीं खोला है। राउत ने कहा, ‘हम विधानसभा में भी गठबंधन चाहते थे। लेकिन उन लोगों ने अकेले लड़ने का निर्णय लिया। उन्हें लगा कि मोदी जी की हवा चल रही है पर वे लोग भूल गए हैं कि हवा हमेशा नहीं चलती।’
पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा सीटों की अदला-बदली चाहती है। न चाहने के बावजूद शिरोमणि अकाली दल इस पर गौर कर रहा है क्योंकि पंजाब में एक-दूसरे के साथ रहना दोनों की मजबूरी है। भाजपा ने अकाली दल से 5 सीटें बदलने के लिए कहा है। हालांकि अकाली-भाजपा गठजोड़ इस पर सर्वे करा रहा है। परिणाम आने के बाद दोनों पार्टियां सीटों की अदला-बदली पर फैसला ले सकती हैं। भाजपा ने जिन 5 सीटों को बदलने के लिए कहा है उनमें बरनाला, मानसा, बठिंडा, बटाला और गढ़शंकर शामिल हैं। मुकेरियां और शामचौरासी पर भी चर्चा हो रही है। भाजपा के सूत्रों के अनुसार बरनाला से भाजपा नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल, मानसा से नीरज तयाल, बठिंडा से हाल ही में भाजपा में शामिल हुए पंजाब पुलिस के रिटायर्ड एडीजीपी आरपी मित्तल और गढ़शंकर से अविनाश राय खन्ना चुनाव लड़ना चाहते हैं। वहीं बटाला सीट भाजपा इसलिए चाहती है क्योंकि वह उसे हिंदू सीट मान रही है। इस अदला-बदली में होशियारपुर जिले की मुकेरियां सीट को बदले जाने की चर्चा है। शामचौरासी पर भी अकाली दल अपना हक छोड़ सकता है क्योंकि वहां पर बीबी महिंदर कौर जोश ने अकाली दल को बैकफुट पर ला दिया है। वहां पर अकाली दल को कोई भी उम्मीदवार नहीं दिख रहा जिसे वह जोश के विकल्प के तौर पर उतार सके। कुछ दिन पहले जालंधर में भाजपा की पंजाब चुनाव को लेकर अहम मीटिंग हुई जिसमें राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल और पंजाब के संगठन महामंत्री दिनेश कुमार शामिल थे। गठबंधन में इस दफा सीटों की अदला-बदली से पहले पार्टी हाईकमान की कोशिश है कि पार्टी को आपसी फूट से उबारा जाए।