सर्जिकल स्ट्राइक की घटना के बाद चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की खबर ने एक और मुद्दे को विवादित कर दिया। देश में कुछ लोगों द्वारा यह अपील की जाने लगी कि चीन ने हमारा पानी रोका है हम चीनी सामान का बहिष्कार करेंगे। लेकिन इस तरह की घोषणा करने वाले किसी भी व्यक्ति ने यह सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर पूरा मामला क्या है। सोशल मीडिया पर चीन के सामान को लेकर बढ़ते विरोध को देखते हुए चीन को सफाई भी देनी पड़ी।
चीन ने इस प्रकरण में सफाई दी कि बांध बनाने के फैसले से भारत के निचले इलाके में किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा। वहीं भारत में भी विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि चीन अगर ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है तो इसका भारत पर बहुत असर पड़ने वाला नहीं है। यह केवल एक सियासी मसला है और इस मसले की आड़ में चीन के खिलाफ लोगों को भड़काने का काम हो रहा है। इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में सीनियर फेलो और सेवानिवृत्त कूटनीतिज्ञ पी. स्टोबडन ने आउटलुक को बताया कि अगर चीन अपने क्षेत्र में बहाव वाली नदियों पर बांध बनाता है तो इससे भारत को क्यों नुकसान होगा। स्टोबडन ने कहा कि जिस तरह से भारतीय मीडिया में यह बताया जा रहा है कि ब्रह्मपुत्र के पानी को चीन ने रोक दिया है, यह गलत है। दरअसल चीन पहले से ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी पर बांध बना रहा है। उसमें से कई ऐसी परियोजनाएं हैं जो पहले से ही चली आ रही हैं उनमें कुछ पूरी हो गईं और कुछ पर काम चल रहा है। स्टोबडन के मुताबिक चीन अगर अपने अधीन आने वाले क्षेत्र में कोई भी गतिविधि करता है, खासकर विकास के मामले में, तो उससे भारत को कोई नुकसान होने वाला नहीं है। ब्रह्मपुत्र नदी में जो पानी आता है वह हिमालय के क्षेत्र से आता है और भारत में आने वाले पानी से चीन का कोई वास्ता नहीं है।
जबकि भारतीय मीडिया इसे इस रूप में दिखा रहा है कि अगर बांध टूटता है तो अरुणाचल प्रदेश, असम में बाढ़ की स्थिति हो जाएगी, जो बड़ा खतरा है। स्टोबडन कहते हैं कि अगर बांध नहीं बनेगा तो भी बाढ़ की स्थिति आ सकती है। इसलिए इन खतरों से निपटने के लिए भारत को ही उपाय करना होगा। इसमें चीन की कोई बड़ी भूमिका नहीं है। दूसरी ओर चीन भारत को परेशान करने के लिए दूसरे तरह का भी आरोप लगाता रहा है। चीन का आरोप है कि भारत ब्रह्मपुत्र का दोहन कर बांग्लादेश को नुकसान पहुंचा रहा है। चीन के इस तरह के पैतरों को भारत को समझना होगा। चीन मामलों के विशेषज्ञ स्टोबडन कहते हैं कि बड़ी समस्या राजनीतिक है। कुछ लोग इसे उड़ी हमले से भी जोड़कर देख रहे हैं जो कि गलत है।
क्योंकि चीन का बांध बनाना और पानी रोकना उसकी रणनीति का एक हिस्सा है, इसे लेकर सियासत नहीं करना चाहिए। स्टोबडन के मुताबिक इस मुद्दे को बिना वजह तूल देकर ध्यान भटकाने की भी कोशिश हो सकती है। क्योंकि ब्रह्मपुत्र का जो जल-प्रवाह भारत की ओर है उससे कोई बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं है। ब्रह्मपुत्र तिब्बत के अलावा अरुणाचल प्रदेश, असम में बहते हुए बाद में बांग्लादेश चली जाती है। दरअसल ब्रह्मपुत्र नदी पर बांधों के बनाए जाने के संबंध में भारत के साथ द्विपक्षीय समझौता नहीं है, जिसकी वजह से भारत प्रभावी तौर से अपनी बात नहीं रख सकता है। साथ ही भारत को डर है कि तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनने से पानी की मात्रा में कमी आएगी। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि हाइड्रोलॉजिकल आंकड़ों के उपलब्ध नहीं होने पर ये पता नहीं चल पाएगा कि ब्रह्मपुत्र नदी से कितनी मात्रा में पानी छोड़ा जा रहा है। इसका असर ये होगा कि ब्रह्मपुत्र के निचले इलाकों में बाढ़ और सूखे की समस्या हमेशा बनी रहेगी। दूसरी ओर चीन ब्रह्मपुत्र नदी को उत्तर दिशा की तरफ मोड़ने की कोशिश में लगा है। चीन के कई तरह के फैसलों से भारत नाखुश है लेकिन चीन की कूटनीति का जवाब सही तरीके से भारत नहीं दे पा रहा।