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‘राव ने विहिप, आरएसएस और भाजपा नेताओं के साथ गोपनीय बैठकें की थीं’

बाबरी मस्जिद का ढांचा न टूटे, इसके लिए नवंबर 1992 में बैकचैनल वार्ता कर रहे थे पी.वी. नरसिंह राव
नरसिंह राव

उत्तर प्रदेश चुनाव मोड में दिख रहा है और भारतीय जनता पार्टी के लिए राम जन्मभूमि का मुद्दा भी अहम चुनावी हथियार माना जा रहा है। जोर पकड़ती राजनीतिक गतिविधियों के बीच युवा प्रोफेसर और पत्रकार विनय सीतापति की पुस्तक हॉफ लॉयन: हाऊ पी. वी. नरसिंह राव ट्रांसफॉर्म्ड इंडिया आई है, जो पूर्व प्रधानमंत्री के राजनीतिक जीवन और कार्यकाल पर आधारित है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर इस पुस्तक में 31 पेज का लंबा चैप्टर है, जिसमें लेखक ने आईबी की रिपोर्ट्स और राव की बैठकों के बारे में खुलासा किया है। विवादित ढांचा न टूटे, इसका वादा भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद और तमाम गुटों के नेताओं और धर्मगुरुओं ने राव से गोपनीय बैठकों में किया था। ढांचा टूट जाने के बाद राव बुरी तक बौखला गए थे। प्रस्तुत है पुस्तक के चैप्टर द फॉल ऑफ बाबरी मस्जिद से कुछ अंश :

छह दिसंबर, 1992। नरसिंह राव सुबह सात बजे जगे, आम दिनों से कुछ लेट, क्योंकि वह रविवार का दिन था। उन्होंने अखबार पढ़े। टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापा था कि ‘2.25 लाख से ज्यादा विश्व हिंदू परिषद के स्वयंसेवक’ बाबरी मस्जिद के पास पूजा करने के लिए जमा हुए हैं। उस रिपोर्ट में विहिप के प्रवक्ता का वादा भी छपा था कि ‘स्वयंसेवक अदालत के आदेश का उल्लंघन नहीं करेंगे।’

प्रधानमंत्री ने 30 मिनट अपने ट्रेडमिल पर बिताए। थोड़ी देर के बाद उनके निजी चिकित्सक के. श्रीकांत रेड्डी वहां पहुंचे। रेड्डी ने उनके खून और मूत्र के नमूने लिए। रविवार का दिन था, इसलिए एम्स के कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. रेड्डी अपने घर चले गए। दोपहर में उन्होंने टेलीविजन खोला। 12.20 बजे उन्होंने टीवी पर देखा कि पहले गुंबद को हिंदू कार्यकर्ताओं ने निशाना बनाना शुरू किया। 1.55 बजे पहला गुंबद ढहा दिया गया। तुरंत ही रेड्डी ने सोचा, प्रधानमंत्री दिल के मरीज हैं। 1990 में उनकी बाइपास सर्जरी हो चुकी है। रेड्डी तुरंत प्रधानमंत्री कार्यालय भागे। राव खड़े थे। आसपास अफसरों और राजनीतिज्ञों की भीड़ थी। तीसरा गुंबद गिर चुका था। राव ने रेड्डी को गुस्से में कहा, ‘आप यहां क्यों आए हैं?’ डॉक्टर ने अपने मरीज का चेकअप करने की जरूरत बताई। श्रीनाथ रेड्डी ने उनकी नाड़ी देखी और रक्तचाप मापा। धडक़नें तेज थीं, चेहरा लाल हो रहा था। तुरंत ही राव को डॉ. रेड्डी ने बीटा ब्लॉकर की एक्स्ट्रा डोज दी। तेईस साल बाद रेड्डी ने उस दिन राव की शारीरिक हालत को याद करते हुए कहा, ‘वे स्वाभाविक रूप से उत्तेजित थे। उनकी भंगिमा ऐसे व्यक्ति की नहीं थी, जो उस कांड की योजना का हिस्सा रहा हो। शरीर कभी झूठ नहीं बोलता।’

राव का जन्म एक कट्टर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदू महासभा, आर्य समाज और कम्युनिस्टों के साथ काम किया और हैदराबाद के मुस्लिम शासक के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ी। उनके गुरु रामानंद तीर्थ को कम्युनिस्ट और कांग्रेसी माना जाता था। राव की इस पहचान के चलते कांग्रेस में उन्हें मुस्लिम विरोधी माना जाता रहा। राव की हिंदू पहचान के चलते भाजपा के कई नेताओं से उनकी करीबी आसान रही। उनके निजी संबंध हावी रहे। वह भाजपा के कई नेताओं के करीबी थे- अटल बिहारी वाजपेयी और मुरली मनोहर जोशी से लेकर एल. के. आडवाणी तक। एक समय उन्होंने मणि शंकर अय्यर को समझाते हुए कहा था, ‘आपको समझना होगा कि यह एक हिंदू देश है।’

शृंगेरी के शंकराचार्य से लेकर पेजावर स्वामी तक- राव के कई स्वामियों के साथ घनिष्ठ संबंध रहे। तमिलनाडु के कांग्रेसी आर. कुमारमंगलम को उन्होंने दक्षिण भारत के गुरुओं के साथ संपर्क बनाए रखने को कह रखा था, जबकि उनके भविष्यवक्ता एन. के. शर्मा और चंद्रास्वामी उत्तर भारत के साधु-संन्यासियों के संपर्क में रहते थे। राव की अप्वाइंटमेंट डायरी से पता चलता है कि शर्मा और चंद्रास्वामी नवंबर में अक्सर मिलते रहे और कई लोगों को मिलाने ले गए। हर बैठक में राव इस बात पर जोर देते कि बाबरी मस्जिद को नुकसान न पहुंचे। राव की ड्यूटी में लगे खुफिया विभाग के एक अफसर ने उनसे कई बार कहा, ‘इनमें से कई लोग फ्रॉड हैं।’ राव ने हमेशा जवाब दिया, ‘मैं ब्राह्मण हूं। मुझे इन लोगों से निपटना आता है।’ राव नागपुर में पढ़े थे। इस नाते वे आरएसएस के कई नेताओं को जानते थे। आरएसएस के प्रमुख रहे मधुकर दत्तात्रेय बालासाहेब देवरस तो उनके पुराने दोस्त थे। नवंबर में राव ने उनसे फोन पर कई बार बात की। आरएसएस नेता राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया से भी मिले। एन. के. शर्मा के अनुसार, ‘राजेंद्र सिंह ठाकुर थे और इस कारण नरसिंह राव के विरोधी थे।’

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की तरह राव भी बैकचैनल वार्ता करने में माहिर थे। नवंबर 1992 में बाबरी मस्जिद बचाने के लिए राव ने यही रास्ता अपनाया। पी. वी. नरसिंह राव गोपनीय तौर पर विहिप के कई नेताओं से मिले। नरेश चंद्रा (राव सरकार में कैबिनेट सचिव और प्रधान सलाहकार रहे)याद करते हैं कि 7 रेस कोर्स रोड पर राव ने भाजपा नेता भैरों सिंह शेखावत को बुलवाया और विहिप के नेताओं को समझाने को कहा।

राव ने नवंबर 1992 में भाजपा के कई नेताओं के साथ गोपनीय बैठकें कीं। उन्होंने पार्टी संगठन के व्यक्ति एल. के. आडवाणी पर फोकस किया। रॉ के बी. रामन को कहा कि एक ‘सेफ हाउस’ में आडवाणी से गोपनीय मुलाकात कराएं। 18 नवंबर यह बैठक उस जगह हुई, जिसे ऑपरेशन ब्लूस्टार के पहले राजीव गांधी की अकाली नेताओं के साथ मुलाकात के लिए तैयार कराया गया था। राव उसी दिन और 19 नवंबर को भी कल्याण सिंह से मिले। पी. वी. आर. के. प्रसाद याद करते हैं, ‘25 नवंबर तक पांच रेस कोर्स रोड के उस बंगले में आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और कल्याण सिंह कई बार आए। सभी ने भरोसा दिया कि मस्जिद सुरक्षित रहेगी।’ इन बैठकों का ब्यौरा राव की अप्वाइंटमेंट डायरी में नहीं दर्ज होता था। नरेश चंद्रा के अनुसार, ‘राव यह अंदाजा नहीं लगा पाए कि वे उन लोगों से बात नहीं कर पा रहे, जो असल में योजना बना रहे हैं। असल में बजरंग दल और शिव सेना के लोग गड़बड़ी फैला रहे थे।’

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