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कांग्रेस के बिखराव से उम्मीद संजोती भाजपा

यदि चुनाव में दो ही दल हों और एक में कलह हो तो दूसरे दल को इसी असंतोष से आस बंधती है, मध्य प्रदेश में भी यही हालात हैं मध्य प्रदेश में तेरह साल से सत्ता की चाशनी में डूबी भाजपा पर 2018 के विधानसभा चुनावों की चिंता हावी होने लगी है। शिवराज को वहम हो गया है कि प्रदेश में भाजपा का जादू उन्हीं के बूते चल रहा है।
राज्य में निवेश के जरिये ‌फिर सत्‍ता के ख्वाब देख रहे हैं शिवराज सिंह चौहान

वह और उनके चहेते अफसरों का टोला उन्हें फिर सत्ता की मिठास दिलाएगा। उनके भरोसे सत्ता का सुख भोगते भाजपाइयों को भी लगता है कि दो दलीय व्यवस्था वाले मध्य प्रदेश में कांग्रेस खुद ही भाजपा को चुनाव जिताएगी। भाजपा में शिवराज बनाम सब, वाले हालात बनते जा रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं का बड़ा समूह खुद भाजपा को सत्ता के बाहर बैठाने वाली मुद्रा में आ रहा है। शिवराज की ‘वन मैन आर्मी’ को चौतरफा चुनौतियां मिलने वाली हैं। सूबे में कांग्रेस का कुनबा बिखरा दिख रहा है लेकिन गुटबाजी पार्टी के बड़े नेताओं में है, कार्यकर्ता पूरे जोश के साथ भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाने को बेताब हैं, लेकिन फिलवक्त कांग्रेस चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है तो ऐसे में जंग कौन जीतेगा? शिवराज कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री और सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा का कहना है, ‘शिवराज आज भी चुनौती विहीन हैं। सन 2018 में भी कांग्रेस उनको चुनौती नहीं दे सकती।’ यह अलग बात है कि जनता का भाजपा से मोहभंग हो रहा है। भाजपा कार्यकर्ताओं के बड़े वर्ग में मायूसी छाई हुई है। पहले भी कार्यकर्ताओं में सन 2013 में हताशा थी। लेकिन तब देश में केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ जनमानस बन चुका था। गुजरात का चुनाव जीतने के बाद एनडीए का चेहरा बने नरेंद्र भाई मोदी में लोग उम्मीदों का उजास देखने लगे थे। शिवराज सिंह चौहान की जनप्रिय छवि और उनकी लोक हितैषी योजनाओं, मजबूत चुनावी रणनीति ने बात संभाल ली थी। इस बार कार्यकर्ताओं के साथ जनमानस की राय भी बदल रही है।
भाजपा समर्थित कारोबारी केंद्र की वित्तीय नीतियों से चौपट होते धंधे से खफा हैं। सोने के कारोबारी, कारीगर, रियल एस्टेट, बिल्डर सबका धंधा चौपट हुआ है। निर्माण कार्यों में प्रयुक्त सामग्री के विक्रेता भी हैरान हैं। सीमेंट, लोहा, टाइल्स, ईंट निर्माता आदि सभी का धंधा मंदा पड़ गया है। बीते 13 साल से भाजपा के साथ खड़े शिक्षकों से लेकर पटवारी तक हैरान हैं। ऊंचे ओहदों पर बैठे कुछ अफसरों की रीति-नीति उन्हें परेशान कर रही है। सरकारी अमले के ये दोनों वर्ग जनता से सीधे सरोकार रखते हैं। भाजपा के बड़े नेताओं से लेकर संघ के पदाधिकारी भी मानते हैं कि सरकारों के कामकाज से भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाताओं का दिल टूट रहा है। नौकरशाहों के रवैये ने आग में घी का काम किया है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मध्य प्रदेश के प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे खुद कह चुके हैं, ‘जब तंत्र हावी होने लगता है तो पार्टी का मंत्र पीछे छूट जाता है।’ मंत्री इस बात की कई बार शिकायत कर चुके हैं कि प्रदेश के कई निरंकुश अफसर उनको तवज्जो नहीं देते। नौकरशाहों का बड़ा वर्ग शिवराज के चहेते अफसरों से त्रस्त है। शिवराज सिंह चौहान यह मानने को तैयार नहीं हैं कि नौकरशाही बेकाबू है। वह बार-बार नौकरशाहों की बैठकें बुला रहे हैं। कई कलेक्टर हवा-हवाई आंकड़े परोसकर उन्हें स्वर्णिम मध्यप्रदेश का अहसास करा रहे हैं। सरकारी जमीनों पर बेजा कब्जे के कलेक्टरों ने हाल ही में जो आंकड़े पेश किए, उससे यह साबित हो जाता है। कौन भरोसा करेगा कि इंदौर जिले में सरकारी जमीन पर बेजा कब्जे के 50 ही मामले पेंडिंग हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में मेट्रो ट्रेन की सुस्त रफ्तारी पर सवाल उठाया तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नौकरशाहों के बचाव में उतर आए और कैलाश की समझ पर ही सवाल उठा दिया। शिवराज ही नहीं पार्टी प्रदेश अध्यक्ष भी अफसरों के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं। शिवराज नौकरशाहों को पूरी स्वतंत्रता देने के साथ यह हिदायत भी देते हैं कि वे किसी का दखल बर्दाश्त न करें।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि लोकशाही के दौर में प्रदेश राजशाही के रास्ते पर चल पड़ा है। यादव कहते हैं, ‘हमसे भी 2003 में ऐसी गलती हुई थी, जिसका खामियाजा कांग्रेस ने भुगता।’ अब तो भाजपा के नेता भी मानने लगे हैं कि दिग्विजय सिंह के सात साल के मुख्यमंत्रित्व काल के बाद कांग्रेस की गाड़ी पटरी से उतरना शुरू हुई थी। दस साल बाद भाजपा में भी यह हालात पैदा हुए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंतरिक सर्वे में भी प्रदेश में भाजपा की हालत पतली होती दिख रही है। संघ को आशंका है कि यदि नए मतदाताओं का वर्ग भाजपा के साथ नहीं आया तो आने वाले चुनावों में शिवराज सरकार को लेने के देने पड़ सकते हैं। लेकिन भाजपा को सतही तौर पर देखने वालों को लगता है कि शिवराज अकेले कांग्रेस को शिकस्त देने में सक्षम हैं। कांग्रेस के पास शिवराज का मुकाबला करने वाला कोई चेहरा नहीं है। आपस में लड़ते कांग्रेसियों को भला वोट कौन देगा? भाजपा का कुनबा भी ऊपर से भले ही एकजुट दिखता हो पर उसमें भी बिखराव छोटा-मोटा नहीं है। शिवराज के आभामंडल को छोड़ दें तो पार्टी के कई बड़े नेता प्रदेश सरकार के कामकाज को लेकर खासे खफा हैं। कैलाश विजयवर्गीय को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अपनी टीम में शामिल कर तवज्जो भले दी है लेकिन प्रदेश में उनको बेहद चतुराई के साथ दरकिनार कर दिया गया है। किसी वक्त शिवराज के सबसे बड़े संकटमोचन रहे कैलाश विजयवर्गीय की प्रदेश तो छोड़िए उनके गृहनगर इंदौर में नहीं चल रही। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा और उनसे जुड़े लोगों के भी यही हाल हैं। शिवराज को घोषणावीर कहने का खामियाजा भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा अब तक भुगत रहे हैं। विरोधियों की तो छोड़िए लोक निर्माण मंत्री रामपाल सिंह सरीखे शिवराज के खास लोग नौकरशाही का दंश झेल रहे हैं। उनके खास सहयोगी और गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह को अपनी हैसियत का अहसास कराने के लिए नौकरशाहों के सामने मशक्कत करनी पड़ रही है। बालाघाट में संघ के जिला प्रचारक के साथ पुलिस की मारपीट के मामले में शिवराज ने कड़ा निर्णय लिया लेकिन इस सख्ती से पुलिस की निगाह में आरएसएस खलनायक बन गया।
संघ और भाजपा ने पांच महीने पहले प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को विदा किया। मेनन शिवराज के अति प्रिय थे। लेकिन उनकी जगह जिन सुहास भगत को संगठन महामंत्री बनाया उनका प्रदेश भाजपा और सरकार के साथ तालमेल नहीं बैठा। यही वजह है कि शिवराज अभी भी मेनन से पूछकर ही संगठन के फैसले कर रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान मुख्यमंत्री की रबर स्टाम्प से ज्यादा कुछ नहीं। भाजपा के वरिष्ठ नेता इस पूरे हालात पर ऑन रिकार्ड बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि पार्टी को आइना दिखाने का मतलब खुदकुशी करना है।

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