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जेल की खुली पोल मुठभेड़ पर झोल

मध्य प्रदेश में सिमी के 8 आतंकियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत के बाद सियासत गर्म है, इससे राज्य की पुलिस-व्यवस्था पर सवाल उठे हैं
मुठभेड़ के बाद घटनास्‍थल पर पुलिस बल

भोपाल की जिस केंद्रीय जेल के बारे में कहा जाता था कि यहां पर कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता, उस आईएसओ सर्टिफाइड जेल से सिमी के आठ खूंखार आतंकी सबको धता बताकर भाग निकले। 10 किलोमीटर दूर ही जंगल में भटके इन आतंकियों को पुलिस ने जागरूक और साहसी ग्रामीणों की मदद से ढेर कर दिया, लेकिन देश को हिला देने वाली इस घटना ने जेल महकमे की पोल खोल दी है तो कांग्रेसी चंद घंटों में हुई मुठभेड़ की कहानी में झोल ढूंढते फिर रहे हैं।
भोपाल से बैरसिया रोड पर मुख्य सड़क से हटकर चांदपुरा होते हुए यह आतंकी मणिखेड़ी के पठार पर घेरे गए। ग्रामीणों ने उन्हें कहीं और नहीं जाने दिया। इसके बाद पहुंचे पुलिस दस्ते ने उन सभी को धराशायी कर दिया। इन मारे गए आतंकियों में महिदपुर उज्जैन का अब्दुल माजिद, सोलापुर महाराष्ट्र का मोहम्मद खालिद अहमद, अहमदाबाद का मुजीब शेख उर्फ अकरम के साथ ही पांच आतंकी खंडवा के थे। जाकिर हुसैन साबिद, शेख मेहमूद, अमजद, मोहम्मद सलीम उर्फ सल्लू तथा मोहम्मद अकील खिलजी। इनमें से शेख मेहमूद, जाकिर हुसैन और अमजद वो हैं जो एक अक्टूबर, 2013 को खंडवा जेल से भागे सात सिमी आतंकवादियों में शुमार थे।
मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में कत्ल, लूट, बैंक डकैती जैसे अपराधों को अंजाम देने के आरोप में पकड़े गए सभी 29 आतंकवादियों को सुरक्षा के लिहाज से भोपाल केंद्रीय जेल में रखा गया था। एक अक्टूबर, 2013 को खंडवा जेल से सात सिमी आतंकवादियों के भागने के बाद यह व्यवस्था की गई थी। अदालतों में वह सरकारी वकील और न्यायाधीश को सरेआम धमकाते थे। इसके चलते उन्हें पेशी के लिए अदालत लाना भी बंद कर दिया गया था। जेल के भीतर से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई होती थी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जेल में इस तरह की घटना का अंदेशा पहले ही हो गया था। उन्होंने 26 अक्टूबर को ही विभागों के अफसरों के साथ अपनी बैठक में इस बात को साझा किया था। उन्होंने कहा था कि जेल में कुछ ठीक-ठाक नहीं है। चूंकि जेल महानिदेशक संजय चौधरी पेट की बड़ी सर्जरी के कारण बैठक में नहीं आ सके थे इसलिए मुख्यमंत्री ने जेल विभाग पर अलग से बैठक करने का निर्देश दिया था। दीपावली के बाद बैठक होनी थी, लेकिन सिमी के 29 में से आठ आतंकवादियों ने इस बीच अपना कारनामा दिखा दिया।
इसके पहले एक अक्टूबर, 2013 को जेल ब्रेक की घटना के बाद तत्कालीन जेल महानिदेशक सुरेंद्र सिंह ने सरकार को एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें जेल विभाग में अमला बढ़ाने, 4 डीआई पोस्ट करने तथा सीसीटीवी कैमरे लगाने की सिफारिश की थी। शासन ने इसके बाद कुछ पद बढ़ाए और भर्ती भी की। बावजूद इसके जेल महकमे में अब भी 1000 से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। जेलों की क्षमता के मुकाबले औसतन 2.3 गुना कैदी भरे हुए हैं। मध्य प्रदेश की जेलों में 40 हजार से ज्यादा कैदी हैं। जेलों की दीवारों की ऊंचाई बढ़ाने फ्लैश लाइट लगाने, मोबाइल जैमर लगाने जैसे 13 करोड़ के प्रस्ताव अब भी वित्त विभाग के सामने पड़े हैं। इन्हें मंजूरी नहीं मिल रही है। हर दो महीने में बैरकों के ताले बदलने का प्रावधान है, लेकिन धनराशि की कमी के चलते यह नहीं हो पा रहा था। जेल की संवेदनशील बैरक में पहरे के लिए मात्र दो प्रहरी ही रात में रहते हैं।

भोपाल जेल ब्रेक की घटना के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे की अगुआई में फिर एक जांच समिति गठित की है। मुठभेड़ में धराशायी होने के बाद आतंक का एक बड़ा खतरा तो टल गया है, लेकिन जेल की सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवाल यक्ष प्रश्न बनकर सरकार के सामने खड़े हैं। सिमी आतंकियों ने ओढ़ने-बिछाने के लिए मिले चादरों की सीढ़ी बनाई। जेल परिसर में मौजूद पेड़ों की लकड़ियों को चादरों में बांधकर चढ़ने के लिए इस्तेमाल की। उन्हें तीन स्तरीय सुरक्षा के बीच जिस बैरक में रखा गया था उसकी उन्होंने टूथब्रश की चाबी बनाई। जांच पड़ताल में मिली इन चाबियों से बैरक के ताले अफसरों ने भी खोल कर देखे। जिस जगह उन्होंने जेल के मुख्य प्रहरी रमाशंकर का गला रेता वहां का सीसीटीवी कैमरा दिवाली के 3 दिन पहले से ही बंद था। इसके मेंटीनेंस का काम जिस कंपनी को दे रखा है उसने शिकायत के बावजूद भी उसे नहीं सुधारा। सवाल सारे कुख्यात आतंकियों को एक ही जेल में रखने को लेकर भी उठ रहे हैं। 29 आतंकवादियों को जब एक साथ रखने का फैसला हुआ था तो उनके लिहाज से सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। पाक आतंकी कसाब को जिस जेल में रखा गया था वहां जेल के स्टाफ के साथ आईटीबीपी के हथियार बंद दस्ते तैनात किए गए थे। जेल के बाहर भी वॉच टॉवर पर सशस्त्र पहरा होना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
जेल विभाग के प्रमुख सचिव विनोद सेमवाल ने माना है कि आतंकी जेल के मुलाजिमों की मदद से ही भागे हैं। जेल महानिदेशक संजय चौधरी कहते हैं कि इन आतंकियों के भागने में जेल के भीतर से मदद की जांच होगी। रमाशंकर का गला रेतने के बाद उनकी मदद के लिए पहुंचे प्रहरी चंदन को उन्होंने बख्श दिया। हाथ-पैर बांधकर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। उसने उनके भागने तक कोई प्रतिकार नहीं किया। चंदन के साथ ही सहायक जेलर विवेक परस्ते भी शक के दायरे में हैं। जांच इस बात की भी होगी कि उन सब आतंकियों के पास नए कपड़े और जूते कहां से आए। चूंकि यह विचाराधीन कैदी थे इसलिए उन्हें जेल का लिबास नहीं पहनाया जाता था। चौधरी ने कहा कि 19 सितंबर को कश्मीर के उड़ी में आतंकी हमले के बाद मिले अलर्ट के आधार पर उन्हें अपने परिजनों से मिलने पर पाबंदी लगा दी गई। लेकिन सवाल यह है कि रात 8 बजे तक बड़ी दाढ़ी वाले इन आतंकियों को शेविंग करने का वक्त कब और कहां मिल गया?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस घटना की जानकारी मिलने के बाद सुबह से ही आपात बैठक कर डाली थी। जेल महकमे के एडीजी सुशोभन बनर्जी को हटाने के साथ ही जेल डीआईजी एमआर पटेल, जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर, उप अधीक्षक आलोक वाजपेयी, सहायक जेल अधीक्षक विवेक परस्ते और रमाशंकर के पहले ड्यूटी करने वाले मुख्य प्रहरी अनंदीलाल को निलंबित कर दिया है। विवेक परस्ते को जेल मैनुअल के मुताबिक शाम को बैरकों की तलाशी करनी थी जो नहीं हुई। यदि होती तो चाबियां और चादरें मिल जातीं। अनंदीलाल रात 10 से 2 बजे तक ड्यूटी पर था। उसने उनकी गतिविधियों पर निगरानी नहीं रखी। उसी की ड्यूटी के दौरान भागने की पूरी तैयारी हुई। अनंदीलाल के जाते ही रामशंकर यादव आए और आतंकियों ने उन्हें मार डाला।
चूंकि आतंकियों ने आठ और दस फीट की दीवारों को लांघने के बाद 26 फुट ऊंची दीवार को लांघा। उन्हें भागते हुए जेल के बाहर तैनात प्रहरियों ने देखा तो सायरन बजा। लेकिन तब तक अंधेरे का फायदा उठाते हुए आतंकी चंपत हो गए। उन्होंने रास्ते में ढाबे पर एक युवक से रुपये छीने लेकिन चांदपुरा में जब तड़के उन्हें सरपंच मोहन मीणा ने देखा तो उन्हें शक हो गया। मोहन ने पुलिस को इत्तला की और खेतों में काम कर रहे लोगों से गांव वालों को खबर करने को कहा। इसके बाद गांव वालों ने आतंकियों का पीछा किया और पुलिस के आने तक मोर्चा नहीं छोड़ा और जेल ब्रेक से लेकर आतंकियों के खात्मे तक की कहानी नौ घंटे में ही सिमट गई। आतंकवादी निरोधक दस्ते (एटीएस) के प्रभारी संजीव शमी जेल ब्रेक की जांच कर रहे हैं, तो एनआईए का जांच दल भी आएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आतंक की बलि चढ़े मुख्य प्रहरी रमाशंकर यादव के परिवार को दस लाख रुपये की आर्थिक मदद के साथ ही उसकी बेटी को पांच लाख रुपये अलग से दिए। मुख्यमंत्री ने तुरंत घेराबंदी करने वाली पुलिस की पीठ भी थपथपाई है। गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ठाकुर ने इस पूरे मामले को राजनीति से परे रखने की बात भी कही है। लेकिन कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सरकार व पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा था कि यह कैदी खुद भागे थे या उन्हें योजनाबद्ध तरीके से भगाया गया था? कमलनाथ ने भी फरारी की न्यायिक जांच की बात कही है, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पुलिस की तारीफ की है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि जो सवाल उठ रहे हैं उनका समाधान जांच पड़ताल में हो जाएगा। कांग्रेस के नेताओं को जांच पूरी होने तक सब्र करना चाहिए। वित्त मंत्री जयंत मलैया ने दिग्विजय के बयान पर कहा कि देशद्रोहियों की वकालत करने वाले देशभक्त नहीं हैं।

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