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झारखंड-बिहार आमने-सामने

बिहार और झारखंड पहली बार राजनीतिक मोर्चे पर टकराव के मूड में दिख रहे हैं। मुद्दा है शराबबंदी।
नीतीश कुमार से हाथ मिलाते रघुवर दास, बीच में हैं राजनाथ सिंह

झारखंड के बिहार से करीब 16 साल पहले अलग होने के बाद पहली बार ऐसी स्थिति बनी है कि दोनों राज्य आमने-सामने हैं। शराबबंदी के मसले पर यह स्थिति बनी है। अब तक लगभग झारखंड और बिहार में सगे भाइयों सा रिश्ता रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में एक अप्रैल से शराबबंदी लागू कर दी है। वह झारखंड और उत्तर प्रदेश में भी शराबबंदी लागू करने की जोरदार वकालत कर रहे हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उनके इस अभियान को नकारते हुए बिहार से सटे इलाकों में शराब का कोटा बढ़ा दिया है। झारखंड ही नहीं, बिहार से सटे उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी शराब की बिक्री बढ़ गई है। सीमावर्ती इलाकों से बिहार में शराब की तस्करी बढ़ गई है।

नीतीश कुमार ने बिहार के बाद झारखंड में शराबबंदी को लेकर अभियान छेड़ा है। धनबाद से शुरू कर उन्होंने कई रैलियां पलामू के प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर में और रांची में की। रांची में झारखंड विकास मोर्चा की जनसभा में नीतीश कुमार ने हिस्सा लिया था। इन रैलियों में नीतीश कुमार ने आंकड़े पेश किए कि बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से झारखंड सरकार ने सीमावर्ती जिलों में शराब का कोटा बढ़ा दिया है। इससे बिहार में शराबबंदी लागू करने में समस्या आ रही है। लिहाजा, झारखंड में भी शराबबंदी जरूरी है। 

मौजूदा वित्त वर्ष के पहले दिन से झारखंड के 16 जिलों में रघुवर दास सरकार ने शराब का कोटा बढ़ा दिया है। झारखंड सरकार के आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष के लिए पलामू जिले में देशी शराब का कोटा 50 प्रतिशत, गढ़वा में 45 प्रतिशत, चतरा में 25 प्रतिशत और गिरिडीह में 25 प्रतिशत बढ़ाया गया है। कोडरमा में अंग्रेजी शराब का कोटा 40 प्रतिशत, चतरा में 50 प्रतिशत, गोड्डा में 30 प्रतिशत और पलामू में 35 प्रतिशत से अधिक बढ़ा दिया गया है।

झारखंड में शराब का कारोबार करीब तीन हजार करोड़ रुपये का है। इसमें से 12 सौ करोड़ रुपये राज्य सरकार को उत्पाद कर के रूप में मिलते हैं। शराब के वैध कारोबार के अलावा झारखंड में जनजातीय परंपरा के हड़िया और महुआ शराब का भी बड़े पैमाने पर कारोबार होता है। उत्पाद विभाग के अधिकारी बताते हैं कि हड़िया और महुआ शराब का कारोबार राज्य में इतना व्यापक है कि इस पर नियंत्रण लगभग नामुमकिन है।

झारखंड जैसे छोटे राज्य के लिए शराबबंदी का मतलब है करीब 12 सौ करोड़ रुपये के राजस्व से हाथ धोना। झारखंड सरकार के उत्पाद विभाग के अधिकारी कहते हैं, ‘झारखंड के जनजातीय समाज में मद्यपान को बुराई नहीं समझा जाता। किसी भी सामाजिक-धार्मिक आयोजन में हड़िया अनिवार्य होता है। महिलाएं भी इस व्यवसाय से बड़ी संख्या में जुड़ी हुई हैं। सामाजिक जागरूकता अभियानों का भी इन पर खास असर नहीं पड़ता है। ऐसे में शराबबंदी नामुमकिन है।’

दूसरी ओर, नीतीश कुमार का तर्क है कि झारखंड में शराबबंदी लागू करने के लिए विजन वाले नेता की आवश्यकता है। यह राजस्व का मसला नहीं है बल्कि जनहित से जुड़ा मुद्दा है। खनिज संपदा से परिपूर्ण होने के बावजूद झारखंड में विकास की गति बाधित है। इसका मुख्य कारण यदि शराब नहीं है तो भी नशाखोरी एक प्रमुख कारण है। नीतीश कुमार का तर्क है कि भाजपा ने झारखंड को अपना उपनिवेश बना रखा है। यहां के लोगों को नशे की लत लगा कर वह अपना शासन कायम करना चाहती है। झारखंड में आने वाले पूंजीपति अपनी काली कमाई का एक हिस्सा भोले-भाले आदिवासियों को नशेड़ी बनाने में खर्च करते हैं ताकि इन आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा सके। इसके उलट रघुवर दास कहते हैं कि झारखंड सरकार नशा पान रोकने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है। सरकारी स्तर पर नशाबंदी लागू करना झारखंड जैसे राज्य के लिए संभव नहीं है। नीतीश कुमार शराबबंदी के फैसले का राजनीतीकरण कर रहे हैं जबकि यह पूरी तरह सामाजिक मुद्दा है।

नीतीश कुमार और रघुवर दास के बीच पिछले कुछ महीनों से जारी आरोप-प्रत्यारोप के बीच जब आउटलुक ने हकीकत की जांच की तो पाया कि बिहार से सटे झारखंड के जिलों में शराब की खपत अचानक कई गुणा बढ़ गई है। अब बिहार से लोग झारखंड आते हैं और शराब खरीद कर बिहार ले जाते हैं। तस्करी के अलावा झारखंड के सीमावर्ती जिलों के लाइन होटलों, रेस्टोरेंट और बार में खरीदारों की भीड़ कई गुना तक बढ़ गई है।

जनजातीय समाज में नशे की आदत के बारे में नीतीश कुमार कहते हैं कि भाजपा इन समाज को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। झारखंड के कई आदिवासी नेता कई साल पहले से यहां शराबबंदी का अभियान चलाते रहे हैं। दिशोम गुरु के नाम से मशहूर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने शराब और सूदखोरी के खिलाफ अभियान चला कर अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की। नीतीश कहते हैं, बिहार में शराबबंदी के पहले झारखंड के मुख्यमंत्री को उन्होंने पत्र लिखा, लेकिन यहां के मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि पत्र को उत्पाद विभाग के पास उचित कार्रवाई के लिए भेज दिया गया है। एक मुख्यमंत्री के अनुरोध पत्र को महज विभाग के पास भेज देना सरकार की नीयत दर्शाती है।

कहने का तात्पर्य यह है कि शराबबंदी को लेकर बिहार और झारखंड के बीच जो विवाद चल रहा है वह अभी और गहराएगा, क्योंकि रघुवर दास कह चुके हैं कि वह राज्य में शराबबंदी करने के पक्ष में नहीं हैं। वह कहते हैं, नीतीश कुमार ने पहले बिहार के लोगों को नशे का आदी बनाया और अब दिखावा कर रहे हैं। बिहार में शराबबंदी दूर की कौड़ी है। झारखंड किसी भी कीमत पर बिहार को अपना मॉडल नहीं बना सकता है।

इसके जवाब में नीतीश कुमार कहते हैं, भाजपा के लोगों को गरिमा का तनिक भी ध्यान नहीं है। वह झारखंड को अपनी जागीर मानते हैं। नीतीश तो यहां तक कहते हैं कि यदि बिहार को नहीं तो कम से कम गुजरात को ही रघुवर दास अपना मॉडल मान लें। उनके अनुसार गुजरात को छोड़ भाजपा शासित किसी भी राज्य में शराबबंदी लागू नहीं है क्योंकि भाजपा लोगों को बेवकूफ बना कर शासन करने की राजनीति करती है। उसका मकसद लोकहित नहीं है।

दोनों मुख्यमंत्रियों के इस वाक् युद्ध के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड में शराबबंदी लागू की जाती है अथवा नहीं। वैसे व्यापक पैमाने पर नशापान करनेवाले राज्य के रूप में पहचान बना चुके झारखंड के साथ सबसे खास बात यह है कि यहां जहरीली शराब से मौत की घटनाएं नहीं के बराबर होती हैं। 

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