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अब सुलगी धर्मांतरण की चिंगारी

यह संवेदनशील मुद्दा भाजपा के जनाधार को प्रभावित करेगा
ईसाई सम्मेलन में सुबोधकांत सहाय

कुछ साल पहले तक सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील और राजनीतिक रूप से अस्थिर झारखंड में कभी इतनी बेचैनी नहीं दिखी, जितनी आज धर्मांतरण का मुद्दा गरमाने के बाद दिखने लगी है। उप राजधानी दुमका के हंसडीहा में सड़क किनारे स्थित एक झोपड़ीनुमा होटल में बैठे साधु हांसदा कहते हैं, ‘भाजपा ने यह मुद्दा उठा कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। धर्मांतरण पर बयानबाजी से आदिवासी समाज आहत हो रहा है। सरकार के लोग बेवजह झारखंड को इस आग में झोंकने की कोशिश कर रहे हैं।’
झारखंड में शुरू से ही धर्मांतरण एक मुद्दा रहा है, लेकिन धीरे-धीरे यह नेपथ्य में चला गया था। राज्य के आदिवासी इलाकों में काम करनेवाली ईसाई मिशनरियों पर प्रलोभन देकर भोले-भाले आदिवासियों का धर्मांतरण करने का आरोप हमेशा से लगता रहा। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह कभी सामने नहीं आया। अब जबकि राज्य में एक किस्म की राजनीतिक स्थिरता है, खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस मुद्दे को उछाला है। उनसे पहले संघ के नेताओं ने झारखंड में लगातार धर्मांतरण का मुद्दा उठाया, लेकिन जब खुद मुख्यमंत्री ने इसके बारे में सार्वजनिक मंचों से बोलना शुरू किया, तो यह गंभीर हो गया। इतना गंभीर कि राज्य की नौकरशाही में भी इसकी चर्चा होने लगी।
झारखंड में ईसाई मिशनरियों पर धर्मांतरण का आरोप पूरी तरह गलत नहीं है, लेकिन इसकी पुष्टि भी नहीं होती है। चुनाव से पहले भाजपा को छोड़ विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता ईसाई धर्मगुरुओं से मिल कर समर्थन मांगते हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। जाहिर तौर पर झारखंड का ईसाई समुदाय भाजपा को वोट नहीं देता है, क्योंकि उसका मानना है कि भाजपा अल्पसंख्यकों के हितों का समर्थन नहीं करती है।
यह भी सच है कि पिछले कुछ साल से शांत पड़े इस संवेदनशील मुद्दे को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कुरेद दिया है। दुमका में जनसभा में उन्होंने कहा कि जबरन धर्मांतरण करानेवालों को जेल भेजा जाएगा। इससे पहले रांची में भी उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर अपने कड़े रवैये का इजहार किया था। इसके बाद तो यह मुद्दा लगातार बड़ा होता चला गया। आदिवासियों के वैसे नेता, जो ईसाई धर्मावलंबी हैं, मुख्यमंत्री का विरोध करने लगे हैं। राज्य की नौकरशाही भी इस मुद्दे पर दो भागों में विभाजित होती नजर आ रही है।
जब मुख्यमंत्री ने धर्मांतरण के मुद्दे को उछाला, राज्य की एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने सोशल मीडिया पर इसका विरोध कर दिया। उन्होंने आदिवासियों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की बात उठा कर संकेत दिया कि झारखंड का आदिवासी समुदाय मुख्यमंत्री के बयान से खुश नहीं हुआ है। उक्त अधिकारी पंचायती राज विभाग की प्रधान सचिव होने के साथ-साथ राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (सर्ड) की निदेशक भी हैं। राज्य सरकार ने वंदना डाडेल नामक उक्त अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी कर आग में घी डालने का काम किया। अब सवाल उठने लगा है कि केवल वंदना डाडेल को ही नोटिस क्यों दिया गया। उनसे पहले एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अनुराग गुप्ता के खिलाफ भी धर्मांतरण पर बयान देने का आरोप लगा था। उन्हें क्यों बख्श दिया गया। आदिवासी नेताओं का आरोप है कि राज्य सरकार आदिवासी अधिकारियों को प्रताड़ित करने में लग गई है।
राजनीतिक रूप से भी धर्मांतरण का मुद्दा उछालना भाजपा की सेहत के लिए ठीक नहीं है। झारखंड हमेशा से भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है ऐसे में ईसाइयों का वोट हासिल करने के लिए उसे अपनी रणनीति में बदलाव करना चाहिए था। लेकिन मुख्यमंत्री ने यह मुद्दा उठा कर न केवल ईसाइयों को, बल्कि आदिवासियों को भी भाजपा से दूर कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे। झारखंड में उठाया गया मुद्दा पूरे देश की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।
स्वाभाविक तौर पर राजनीतिक हलकों में रघुवर दास के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय, विधानसभा में झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव और पूर्व विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री के बयान और वंदना डाडेल के खिलाफ की गई कार्रवाई को अनुचित और आदिवासी विरोधी करार दिया है। उधर रांची के विधायक और राज्य के शहरी विकास मंत्री सीपी सिंह ने रघुवर दास का समर्थन किया है। पहले से ही बाहरी-भीतरी और आदिवासी-गैर आदिवासी का मुद्दा राज्य की सामाजिक समरसता पर असर डाल रहा था। अब धर्मांतरण का मुद्दा सुलगने से इसका असर तो पड़ेगा ही।

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