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पाकिस्तान जासूसी कांड में मीडिया पर भी नजर

पत्रकारों के एक क्लब के कुछ सदस्यों की गतिविधियां संदिग्ध रही हैं
पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारी के जासूसी मामले से कई कड़ियां जुड़ी हुई हैं

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के यहां अपने उच्चायोग के जरिए जासूसी कांड में एक दिलचस्प मोड़ सामने आया है। भारतीय इंटेलीजेंस ब्यूरो तथा अन्य खुफिया एजेंसियों की तीखी नज़र मीडिया पर भी पड़ी है। फोकस में है-पत्रकारों का एक क्लब। कुछ पत्रकार, जो उर्दू मीडिया से जुड़े हैं, भी आईबी के राडार पर आ गए हैं।
पाकिस्तान उच्चायोग के वीजा विभाग के कर्मी महमूद अख्तर को 26 अक्टूबर को राजधानी में नागौर (राजस्थान) के दो भारतीय नागरिकों मौलाना रमजान और सुभाष जांगीड़ से फौज से संबंधित गोपनीय कागजात लेते हुए पकड़ा गया था। एक अन्य आरोपी शोएब को जोधपुर में पकड़ा गया। पाकिस्तानी कर्मी जासूस अख्तर से पूछताछ के बाद समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद मुनव्वर सलीम के निजी सहायक फरहत को भी दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया।
सांसद मुनव्वर सलीम ने कहा है कि उन्होंने अपने पीए फरहत को ‘काफी छानबीन’ के बाद रखा था। फरहत इससे पहले तीन अन्य सांसदों के साथ काम कर चुका था। आईबी न केवल फरहत, बल्कि सांसद के कई वर्षों के फोन, वाट्सएप, ई-मेल रिकार्ड्स को खंगाल रही है। एजेंसी पता कर रही है कि क्या वह दोनों पाकिस्तान यात्रा पर भी गए थे।
पाकिस्तान उच्चायोग कर्मी अख्तर ने अपने चार अफसरों के नाम पुलिस को वीडियोग्राफी पूछताछ के दौरान बताए। वे हैं- कमर्शियल काउंसलर सैयद फारूख हबीब और प्रथम सचिव खादिम हुसैन, मुदस्सिर चीमा और शाहिद इकबाल। अख्तर ने बताया कि ये अधिकारी आईएसआई के लिए जासूसी सामग्री एकत्र करते थे। अख्तर को डिप्लोमैटिक इक्वयूनिटी के कारण गिरफ्तार नहीं किया जा सका और वह पाकिस्तान वापस चला गया है। उसके द्वारा पाकिस्तान उच्चायोग के अधिकारियों के नाम लेने से ये भी पाकिस्तान वापस जाने की तैयारी में हैं। पाकिस्तान इसके बदले पहले ही भारतीय उच्चायोग के इस्लामाबाद स्थित एक अधिकारी को निष्कासित कर चुका है तथा कई अन्य को भी निकालने की तैयारी में है।
इस पूरे जासूसी कांड में सबसे दिलचस्प बात मीडिया का आईबी के राडार पर आना है। सूत्रों के अनुसार पत्रकारों के क्लब के कुछ सदस्यों पर कई वर्षों से भारतीय खुफिया तंत्र की नजर रही है। सबसे पहले नजर तब पड़ी जब कुछ वर्ष पहले एक ‘अनजान पत्रकार’, जो कहता था कि वह पाकिस्तान के एक टीवी चैनल का इंडिया ब्यूरो चीफ था, अचानक क्लब का एक उच्च अधिकारी बन गया। उसके लंबे समयकाल में पाकिस्तान उच्चायोग के साथ क्लब के घनिष्ठ संबंध बनने लगे। पाकिस्तान नेशनल दिवस पर गाड़ियां भर के पत्रकार उच्चायोग ले जाए जाने लगे। बहुत से लोग क्लब के साधारण या एसोसिएट सदस्य बनाए गए जिनके पत्रकार होने पर संदेह था। इन महाशय के हारने के बाद कुछ दूसरे लोग क्लब के चुनाव लड़ने लगे और इनके संबंध भी पाकिस्तान उच्चायोग में देखे गए। ‘पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली से बाहर के कुछ लोग क्लब के सदस्य बनाए गए। अब यह ‘माननीय सदस्य’ पूरे दिन क्लब में बैठे देखे जा सकते हैं। उनकी संदिग्ध गतिविधियों (जैसे कि कुरेदकर अन्य जाने-माने पत्रकारों से सामग्री इकट्ठी करना) पर हमारी नजर है।’ एक आईबी अधिकारी ने आउटलुक को बताया। ‘इनमें से कई संसद भवन के सामने वाली मस्जिद में हर नमाज में शरीक होते हैं। इस मस्जिद में कई वीआईपी राजनीतिज्ञ तथा अधिकारी भी आते हैं।’ अधिकारी ने जानकारी दी।
इस वर्ष भी चालीस से अधिक केवल एक वर्ग के क्लब के सदस्य बनाए गए हैं। हाल ही में हुए क्लब के चुनावों में एक चुनाव अधिकारी ने बताया, ‘बहुत से इसमें ऐसे थे जो पेशे से पत्रकार नजर ही नहीं आते थे। जब मैंने एक ऐसे व्यक्ति से बैलट पेपर देते समय पूछा कि आपके रिकार्ड में न ऑफिस का पता है न ई-मेल है, तो घबराहट में उसने कहा कि वह फ्रीलांस पत्रकार है।’
क्या कुछ पत्रकार आईएसआई के संपर्क में थे? इस सवाल के जवाब में आईबी के सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान उच्चायोग मीडिया पर विशेष ध्यान देता है और चुनिंदा पत्रकारों, विशेषकर जो रक्षा, गृह मंत्रालयों एवं राजनीति कवर करते हैं, से संबंध बनाने की पूरी कोशिश करता है। पत्रकारों के क्लब से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार से जब आउटलुक ने संपर्क कर आईबी की क्लब पर नजर होने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘हमें अभी किसी सरकारी एजेंसी ने संपर्क नहीं किया है। मगर हमें भी कुछ सदस्यों की गतिविधियां काफी समय से अखर रही हैं। हम एक स्क्रिीनिंग कमेटी का गठन करने जा रहे हैं। हम ऐसे तथा कुछ अवांछित सदस्यों को छांटेंगे।’