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स्वामी जेटली टकराव से उपजे सियासी सवाल

कड़क शासन-प्रशासन और भीषण केंद्रीकृत रूप से चलाने के लिए ख्यात केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इन दिनों दो शक्ति केंद्रकों में तीखे-अभद्र टकरावों से घिरी हुई है। एक तरफ हैं अरुण जेटली जैसे भाजपा के शक्तिशाली नेता जिनके कंधोंपर वित्त मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण जैसे अहम विभागों का जिम्मा है और जिनकी पकड़ लुटियंस दिल्ली में गहरी जमी है और दूसरी तरफ हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पसंदीदा और गांधी परिवार पर तीखे प्रहार करने के लिए कुख्यात राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी। इस पूरे प्रसंग से मोदी सरकार में हो रही टकराहटों का भान मिलता है
भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी

क्योंकि स्वामी के अरुण जेटली पर तीखे, निचले स्तर के निजी हमलों के बाद भी भाजपा का कोई भी दिग्गज नेता उनके बचाव में खुलकर सामने नहीं आया। सवाल यह भी अहम है कि क्या सुब्रह्मण्यम स्वामी यह सब सिर्फ अपने दिमाग से कर रहे हैं या उनके इन हमलों के पीछे संघ का एक शक्तिशाली खेमा काम कर रहा है। सवाल यह भी है कि सुब्रह्मण्यम स्वामी के जरिये छेड़े गए इस टकराव से अंतत: लाभ किसको होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक टीवी चैनल को दिए लंबे इंटरव्यू में भी अनुशासन जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया और न ही खुलकर स्वामी के ट्वीट से हुए हमलों की आलोचना की। जबकि स्वामी के हमलों से आहत अरुण जेटली के खेमे को यह उम्मीद थी कि उनके बचाव में मोदी समेत बड़े नेता उतरेंगे, ठीक वैसे ही जैसे गृहमंत्री राजनाथ सिंह पर हुए हमलों के बचाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कूदे थे। भाजपा के भीतर इस टकराव को, जिसमें अभी स्वामी ही ज्यादा हमलावर नजर आ रहे हैं, बेहद गंभीर माना जा रहा है। इसे जिस तरह संघ और भाजपा का परोक्ष समर्थन मिला हुआ दिख रहा है उससे इसे जेटली का कद छोटा करने और उन्हें नियंत्रण में रखने वाला दांव बताया जा रहा है।

सुब्रह्मण्यम स्वामी संघ के पसंदीदा नेता माने जाते हैं और यह सुख अरुण जेटली को हासिल नहीं रहा है। अरुण जेटली का संघ से कोई टकराव नहीं रहा है लेकिन वह संघ के कभी भी विश्वासपात्र नहीं माने जाते। सुब्रह्मण्यम स्वामी की भाजपा और संघ में गतिविधियां निर्बाध रूप से जारी हैं। राम मंदिर निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने के लिए हो रही छोटी-बड़ी बैठकों में उनकी उपस्थिति बनी हुई है। साथ ही, इमर्जेंसी दिवस पर 25 जून को वह केरल में भाजपा के कार्यक्रम में थे तो 26 जून को मुंबई में।

वहीं दूसरी तरफ बताया जाता है कि अरुण जेटली को अकारण और असमय हमलों और ट्वीट की वजह से अपनी चीन यात्रा को छोटा करना पड़ा। जिस समय अरुण जेटली चीन की यात्रा पर थे उस समय स्वामी ने आपत्तिजनक ट्वीट किया था। इसकी तीखी आलोचना भी हुई लेकिन इसके बाद भी पार्टी या सरकार के दिग्गजों ने चुप ही रहना पसंद किया। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपनी ही सरकार के सिर्फ एक ही मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला है और वह हैं अरुण जेटली। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले अधिकारियों और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन के खिलाफ तीखा-उग्र अभियान छेडक़र सुब्रह्मण्यम स्वामी दरअसल, अरुण जेटली के चुनाव के अधिकार पर हमला बोलने में सफल हुए। इसमें से रघुराम राजन ने कदम पीछे खींच लिए और इससे संघ भी खुश बताया जाता है। संघ से जुड़े विचारक का मानना है कि अगले दो सालों में केंद्र सरकार में उनका एजेंडा खुलकर चलेगा और ऐसे तमाम लोगों को किनारे किया जाएगा जो संघ के पसंदीदा नहीं हैं। इस क्रम में अगर सुब्रह्मण्यम स्वामी के वारों को देखा जाए तो उनमें एक राजनीतिक क्रम नजर आता है। खुद भाजपा नेताओं का मानना है कि गांधी परिवार, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर हमला, हेरॉल्ड मामले में उन्हें पटियाला कोर्ट तक घसीटना, रॉबर्ट वाडरा को घेरना, यह सब सुब्रह्मण्यम स्वामी के ही बस की बात थी। पार्टी में उनका स्थान भी लगातार इसी वजह से बढ़ा। संसद के सत्र के बाद भाजपा संसदीय दल की बैठक में उन्हें लालकृष्ण आडवाणी के बगल में जगह मिलना इस बात का संकेत समझा जा सकता है। 

 

स्वामी के कुछ आपत्तिजनक ट्वीट :-

जब अरुण जेटली ने अरविंद सुब्रह्मण्यम और शशिकांत दास पर सुब्रह्मण्यम स्वामी के ट्वीट्स का विरोध करते हुए कहा कि अनुशासन की जरूरत है तो सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जो ट्वीट किया वह लंबी लड़ाई का संकेत देता है

लोग मुझे अनुशासन की बिन मांगी सलाह दे रहे हैं, उन्हें यह नहीं पता कि अगर

मैं अनुशासन छोड़ दूं तो यहां खून-खच्चर हो जाएगा।

 

भाजपा को अपने मंत्रियों को निर्देश देना चाहिए कि वह विदेश में पारंपरिक और आधुनिक भारतीय कपड़े पहना करें। कोट और टाई में वे वेटर लगते हैं।

(यह ट्वीट सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जेटली की चीन यात्रा के दौरान उस समय किया जब उनके कोट-टाई पहने फोटो छपी।)

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