बहुत कम लोग जानते हैं कि नब्बे के दशक में कांग्रेसी प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के कार्यकाल में दुनिया की करंसी नोट छापने की मशीन बनाने वाली स्विटजरलैंड की एकाधिकार प्राप्त कंपनी डी ला रू जियोरी ने चेतावनी दी कि भारत अपनी सिक्यूरिटी प्रिंटिंग प्रेसों के आधुनिकीकरण को दो हिस्सों में बांटकर जापान को न दें क्योंकि इससे इंडियन करंसी के जाली बनने की संभावना बढ़ जाएगी। जियोरी ने चेताया कि अमेरिकन डॉलर्स सबसे ज्यादा जाली बनते हैं। दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने सबसे ज्यादा डॉलर जाली छापे थे।
आज 20 वर्ष बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 500 और 1000 रुपयों की नोटबंदी पर कहा कि अरबों रुपयों के जाली नोटों का प्रचलन रोकने की यह कोशिश है। विदेश से 'ब्लैक मनी’ कब आएगा, इसकी कोई बात नहीं कर रही सरकार। दिलचस्प सवाल यह है कि प्रधानमंत्री पुराने नोटों को बंद करने और नए नोटों को उतारने की घोषणा के तुरंत बाद जापान यात्रा पर क्यों चले गए? प्रश्न अब यह है कि क्या 2000 रुपये के नोटों का कागज उन्हीं विदेशी कंपनियों से आया जिन्हें कुछ समय पहले ब्लैकलिस्ट किया गया और बाद में यह बैन हटा दिया गया। सबसे गौर करने और पूछने की बात यह है कि क्या यह वही ब्लैकलिस्टेड विदेशी कंपनियां तो नहीं हैं जो पाकिस्तान को भी नोट बनाने का कागज, स्याही और प्रिटिंग प्रेस सप्लाई करती हैं।
भाजपा नेता डॉ. सुब्रह्मïण्यम स्वामी ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को वह जेल भिजवाएंगे क्योंकि उन्होंने यूरोप की उसी कंपनी को नोटों के कागज सप्लाई करने का आर्डर दिया था जो पाकिस्तान को भी यह सामग्री देती है। पाकिस्तान ही भारत में जाली नोटों को छापकर मार्केट में डालने का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। यही जाली नोट कश्मीर में तथा अन्य राज्यों में उग्रवाद की जीवनरेखा हैं। नोट बनाने की एक विधा है। इसके डिजाइन बनाने वाले कुछ ही चुनिंदा लोग और समूह हैं। जियोरी विश्व के 150 देशों से ज्यादा को नोटों का कागज, स्याही और प्रिटिंग प्रेस मुहैया कराती रही है।
नब्बे के दशक में जियोरी ने दिल्ली हाई कोर्ट में पेंटेंट के उल्लंघन से जुड़ी एक याचिका दायर की थी। भारत जापान की कुमोरी प्रिंटिंग प्रेस को कुछ
सिक्यूरिटी प्रेसों के नवीनीकरण का ठेका दे रहा था। जियोरी ने कहा था कि कुमोरी ने उससे दो प्रिंटिंग प्रेस खरीदकर अपनी प्रेस बनाई और रूस और दक्षिण कोरिया को सप्लाई की। जियोरी के अनुसार रूस और कोरिया में यह जापानी प्रिटिंग प्रेस फेल हो गई और अब वह इन्हें पासपोर्ट और स्टांप छापने के लिए इस्तेमाल करता है। नरसिंह राव सरकार में वित्त मंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने, जियोरी के तीन मुख्य शेयरधारकों स्विटजरलैंड, जर्मनी और बैंक ऑफ इंग्लैंड की नहीं सुनी और नामालूम कारणों से जापान को कुछ प्रिंटिंग पे्रसों के नवीनीकरण का ठेका दे दिया।
बहरहाल, नोटों के विशेष कागज, स्याही और प्रिंटिंग प्रेस का विश्वभर में सालाना अरबों डॉलर का बिजनेस है। और इसमें भी एजेंटों को देशों से ठेके प्राप्त करने के लिए अच्छा-खासा कमीशन दिया जाता है। वर्ष 2009-10 में सीबीआई ने भारत-नेपाल सीमा पर भारतीय बैंकों की कई शाखाओं पर छापे मारकर जाली नोट जब्त किए थे। इन बैंकों ने कहा कि यह 'जाली नोट’ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से आने वाले कैश लाने वाले संदूकों में ही आए थे। सीबीआई ने तब आरबीआई के करंसी चेस्ट में छापे मारे और वह दंग हो गए जब उन्हें वहां भी काफी संख्या में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट असली नोटों के साथ मिले। सवाल है कि यह नोट रिजर्व बैंक में कैसे पहुंचे? जब यही नोट देशभर के बैंकों में पहुंचते हैं, तो यह बैंक क्या करें? वह अपना काम आसान करते हैं और उन्हें जनता को थमा देते हैं।
वर्ष 2010 में संसद की कमेटी ऑन पद्ब्रिलक अंडरटेकिंग्स को झटका लगा जब इसने पाया कि सरकार ने एक लाख करोड़ के नोटों को छापने का ठेका अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी की कंपनियों को दे दिया था। कितना खतरनाक था यह, कमेटी सोचकर स्तब्ध रह गई। इसमें से इंग्लैंड की कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था मगर 2015 में यह बैन उठा लिया गया। कहा गया कि यह कंपनियां भरोसे में काम करती हैं और इनक्वायरी में पाया गया कि इनने किसी और देश को हमारे नोटों के छपाई के डिजाइन और अन्य सूचनाएं नहीं दी थीं।
कंधार कांड में करंसी किंग
ऊपर हमने विश्व की सबसे बड़ी नोट बनाने वाली, कागज, प्रिटिंग प्रेस और स्याही मुहैया कराने वाली कंपनी डी ला रू जियोरी का जिक्र किया था। इस कंपनी का भारत से बहुत बड़ा बिजनेस है। मगर एक बात बहुत कम लोग जानते हैं कि इस कंपनी का इंडियन एयरलाइंस के जहाज आईसी-814 का काठमांडू से अपहरण कर कंधार ले जाने और बाद में वाजपेयी सरकार द्वारा तीन खतरनाक आतंकवादियों को छोडऩे से गहरा संबंध है। इस क्रलाइट में जियोरी कंपनी के 58 वर्षीय 'करंसी किंग’ रिबिर्टो जियोरी अपनी महिला दोस्त क्रीस्टीना कालेब्रसी के साथ थे। यह जियोरी कंपनी के मालिक थे। वह विश्व के गिने-चुने अमीरों में हैं। मगर बहुत ही लो-प्रोफाइल। जिनकी कुछ ही लोगों ने तस्वीर देखी होगी। स्विटजरलैंड सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार पर दबाव डाला था कि किसी भी प्रकार से सभी यात्रियों को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाया जाए फिर चाहे इसके लिए वह कुछ भी करे। साफ था कि वह जियोरी की रिहाई चाहते थे। उनको डर था कि जियोरी के बारे में अपहरणकर्ताओं को पता न चले, नहीं तो जियोरी की जान खतरे में होगी। उनको छुड़ाने के लिए स्विटजरलैंड सरकार को ब्लैंक चेक देना पड़ता। जियोरी अन्य यात्रियों के साथ छूटे। मगर भारत को तीन खतरनाक आतंकवादियों को छोडऩा तबसे अभी तक कितना महंगा पड़ रहा है यह सब जानते हैं। पाकिस्तान में बैठे यह आतंकवादी कश्मीर में आतंकवाद का क्या गुल खिला रहे हैं साफ नजर आ रहा है।
मोदी सरकार में अब नोटबंदी के समय सबसे ज्वलंत प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या यही जियोरी कंपनी या इसकी इंग्लैंड में सहयोगी कंपनी 2000 रुपये का नया नोट छापने में शामिल है? खबरों के अनुसार नोट बेहद गोपनीयता के साथ मैसूर तथा नासिक की प्रिंटिंग प्रेस में छपे हैं। मगर इनका कागज इटली, जर्मनी और इंग्लैंड की कंपनियों से आया था। सूत्रों के अनुसार 2000 और 500 रुपयों की प्रिंटिंग अगस्त-सितंबर में आरंभ हुई। मैसूर की प्रिंटिंग प्रेस जियोरी द्वारा स्थापित की गई थी। भारत अपने नोटों के लिए कागज विदेशी कंपनियों से ही ले रहा है। इनमें शामिल है-जियोरी, स्वीडन की क्रैन और फ्रांस और नीदरलैंड की आरजो विगींस।
भारत ने यूरोप की नोटों के कागज मुहैया करवाने वाली दो कंपनियों को 2014 में ब्लैकलिस्ट कर दिया था। यह कहा गया था कि नोटों पर जो सिक्यूरिटी फीचर उभरे होते हैं वह उनके कुछ कर्मचारियों ने पाकिस्तान को दे दिए थे। गलती से या आईएसआई द्वारा उपलब्ध किए गए। यह कंपनियां पाकिस्तान को भी प्रिंटिंग प्रेस, कागज और स्याही बेचती हैं। मगर यह बैन 2015 में उठा लिया गया। तब कहा गया कि इन कंपनियों ने सिक्यूरिटी नहीं तोड़ी थी। मगर इंग्लैंड के 'सीरियस फ्रॉड ऑफिस’ ने अपनी इनक्वायरी में पाया कि डी ला रू जियोरी कंपनी ने जानबूझकर नोटों के कुछ स्पेसिफिकेशन 150 देशों में कुछ को दे दिए थे।
हाल ही में पनामा पेपर्स (जिनसे विश्वभर के धनी नेताओं और कारोबारी लोगों के टैक्स हैवन्स में अरबों डॉलर के काले धन का पता चला) से पता चला कि डी ला रू जियोरी ने नई दिल्ली के एक बड़े कारोबारी को आरबीआई से बड़ा ठेका करवाने के लिए भारी रिश्वत दी थी। यह भी कहा जा रहा है कि डी ला रू जियोरी कंपनी ने आरबीआई के साथ नोटों के कागज में विवाद होने पर 40 मिलियन डॉलर देकर समझौता किया। इसके बाद ही इसी कंपनी को हरी झंडी दे दी गई। वर्तमान भारत सरकार ने कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है कि इस कंपनी के ऊपर कब प्रतिबंध लगा और कब हटा लिया गया लेकिन खास बात यह है कि बैन की खबर आने के बाद इस कंपनी के शेयर लुढक़ गए थे। मगर प्रतिबंध हटने की खबरें आने पर इसके शेयरों में 33.30 प्रतिशत का उछाल आ गया।
हमारे देश की नोट छापने वाली प्रेसों में समय-समय पर कुछ न कुछ गड़बडिय़ों की खबरें आती रहती हैं। मगर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर उन्हें दबा दिया जाता है। कुछ समय पहले मध्यप्रदेश में होशंगाबाद में स्थित नोटों को छापने की प्रेस में 500 और 1000 नोटों में खामी पता चलने पर दो अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया था। लगभग 500 रुपये के 80,000 और 1000 रुपये के 10,000 खराब नोट छापे गए थे। वह मार्केट में भी आ गए थे। इससे प्रेस में और जनता में बेचैनी हो गई थी। इन नोटों में सिक्यूरिटी धागा नहीं था। यह प्रेस प्रधानमंत्री मोदी के 'मेक इन इंडिया’ के प्रोग्राम के तहत नवीनीकृत की गई थी। इसमें भारत में ही बने नोटों का कागज इस्तेमाल किया जाता है। इस घटना से पहले होशंगाबाद प्रिंटिंग प्रेस में एक और घटना हुई थी। वर्ष 2012 में यहां छपे कुछ नोटों में मैग्मेटिक सिक्यूरिटी धागे में 'अरेबिक’ शब्द पाए गए। सीबीआई की जांच में पता चला कि इन धागों की सप्लाई विदेशी कंपनी ने की थी। इस कंपनी से हिमाचल प्रदेश की एक कंपनी ने धागे 'आउटसोर्स’ किए थे। जांच में पता चला कि विदेशी कंपनी ने वह धागे गलती से भेज दिए थे जो 'अल्जीरियन दीनार’ के लिए जाने थे।
रिजर्व बैंक ने पुराने 500 नोटों की जगह नया 500 का और पहली बार 2000 रुपये के नोट जारी किए हैं। पुराने नोटों को वापस करने की प्रक्रिया में कुछ जाली नोट भी जमा हो रहे हैं। एक बैंक अधिकारी ने कहा कि किसके पास समय है एक-एक नोट को जांचने का जब करोड़ों पुराने नोट जमा किए जा रहे हैं। सरकार ने अपनी फिंगर्स क्रॉस कर रखी होगी। नोटबंदी की इस अफरातफरी में कहीं 500 और 2000 के नए नोटों में कुछ 'डिफेक्ट’ न निकले। नए नोटों की प्रिंटिंग प्रेस में अफसरों की सांस अटकी हुई है क्योंकि तेज गति से छपाई हो रही है।
(लेखक 'टाइम्स ऑफ इंडिया’ और 'द ट्रिब्यून’ अखबारों के रोविंग संपादक रहे हैं)
कलाकारों पर वज्रपात
छोटे दुकानदार, सब्जी-फल उत्पादक विक्रेता ही नहीं गांव से महानगर तक अपनी तूलिका, रंग, कला, वाद्यï, संगीत से नगद 500 रुपये से दो-चार लाख तक कमा सकने वाले कलाकारों पर सरकार के नए अभियान से वज्रपात हो गया है। सरकार हर भुगतान को चेक या डिजिटल रिकार्ड पर करने के लिए हर संभव सलाह, निर्देश और चेतावनी तक दे रही है। दिलचस्प बात यह है कि संघ-भाजपा के विचारों से बेहद भावनात्मक रूप से संबंध रखने वाले देश के एक प्रसिद्घ कलाकार-पेंटर ने 'कैशलेस’ अभियान पर अपना दु:ख आउटलुक से बातचीत में व्यक्त किया। उनकी पेंटिंग तो लाखों रुपयों में भी खरीदी जाती है और विदेशों में भी बिकती है। लेकिन उनका कहना है कि हर कलाकार अपनी पेंटिंग, मूर्ति या अन्य कलाकृतियों पर महीनों मेहनत करता है। कुछ कलाकारों को कुछ हजार ही मिल पाते हैं। फिर पेंटिग-कलाकृतियों को पसंद करने वाले लोग विभिन्न वर्गों से होते हैं। कुछ व्यक्ति कारपोरेट कंपनी या बड़े प्रतिष्ठïान से जुड़े होने पर चेक देते हैं, लेकिन बहुत से ऐसे कला प्रेमी (ग्राहक) होते हैं, जो अपने आनंद (इंटरटेनमेंट) के खर्च की तरह नगद देना चाहते हैं। ऐसा भी नहीं कि कलाकार बड़ी रकम होने पर कालाधन बना लेता है। वह तो बैंक खाते में डालता है और साल में आयकर की सीमा के आधार पर टैक्स भी देता है। अब वह कलाप्रेमी को चेक या बैंक ट्रांसफर के लिए कैसे बाध्य करेगा? हमने कला के क्षेत्र से जुड़े अन्य लोगों से भी बात की तो और गंभीर मुद्दा निकला। दिल्ली-मुंबई से हटकर मधुबनी पेंटिंग का कलाकार हो या बस्तर अथवा दुमका में मिट्टïी से अच्छी मूर्ति बनाने वाले कलाकार हों अथवा असम या नगालैंड के वास्तुशिल्प के अच्छे कारीगर अथवा राजस्थान या जम्मू-कश्मीर के शाल, साड़ी, बंडी बनाने वाले कलाकार देश-दुनिया के हाट-बाजार में नगदी ही बिक्री खरीदी करते हैं। वे कहां-कहां चेक मांगेंगे। कोई 500 या 1500 रुपये के लिए बैंक का इंतजार कैसे करेगा? इसी तरह 1000, 2100 या 5000 रुपये लेकर कहीं कविता-शेरो-शायरी करने वाले, दो-तीन हजार रुपये में तबला-हारमोनियम या 21 हजार लेकर अच्छा नृत्य प्रदर्शन करने वाले नगद राशि लेकर ही तो अपना दैनन्दिन और यात्रा खर्च निकालते हैं। इसलिए सरकार के नए अभियान से कला को समर्पित भोले-भाले ईमानदार कलाकार अभी से रतजगा करने लगे हैं। उन्हें काले धन के नाम से नफरत है, लेकिन उन्हें अपने दिल-दिमाग और हुनर के साथ पेट पर लात पडऩे का डर
सता रहा है।
ब्यूरो
मोदी ने सिखाई नई 'आर्ट ऑफ लिविंग’
करंसी का कोई रंग नहीं होता। प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी से केवल एक सवाल: सरकार 'नया काला धन’ बनने को कैसे रोकेगी? 500 और 1000 रुपये की नोटबंदी तो हो गई। मगर 500 के नए और 2000 रुपये के पहली बार नोट आने से 'ब्लैक मनी’ का नया दौर आरंभ होगा। मोदी अपने समयकाल में क्या, आने वाले कम से कम 15 वर्ष तक की सरकारें नोटबंदी नहीं कर पाएंगी। यह बच्चों का खेल नहीं है। तो जो लोग काला धन बनाने की मशीन हैं वह तो नए नोटों के प्रचलन के बाद फिर से 'बिजनेस’ में हैं।
वह समय नहीं रहा जब काले धन को जमीन में गाड़ देते थे या गद्दों के नीचे छिपा देते थे। वह काला धन अब छुपाया जाता है रियल इस्टेट, सोना, शेयर मार्केट, हवाला आदि में। क्या नए नोटों के आने से यह व्यापार बंद हो जाएंगे? नोटबंदी प्रकरण से रईसों के लिए बन रहे क्रलैट्स और टावर्स, (जिनमें अमेरिका के नए चुने राष्ट्रपति ट्रंप के ब्रांड नाम से मुंबई और पुणे में बन रहे टावर्स भी हैं) और अन्य मध्यवर्गीय वर्ग के लिए रियल इस्टेट में 25 से 30 प्रतिशत गिरावट आंकी जा रही है। इसी तरह बेनामी प्रॉपर्टी से निकलना तथा पुराने घरों को बेचना मुश्किल हो जाएगा। पहले से ही रियल इस्टेट में भारी गिरावट कई वर्षों से चल रही है। हालांकि क्रेडाई के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष अमित मोदी का कहना है कि सरकार का यह फैसला सही है और इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। अमित मोदी कहते हैं कि असंगठित क्षेत्र के सामने थोड़े समय के लिए समस्या हो सकती है लेकिन आने वाले दिनों में इसके अच्छे परिणाम दिखेंगे।
मोदी सरकार के इरादे ठीक हों जैसे उन्होंने कहा कि जाली नोटों का प्रचलन रुकेगा, काला धन बाहर आएगा और उग्रवादियों की फंडिंग रुकेगी। ठीक, मगर आम आदमी लाचार क्यूं महसूस कर रहा है। उसी का पैसा लेकर उसे नए नोटों में 'किश्तों’ में दिया जा रहा है। आम आदमी की लाचारी आने वाले कई महत्वपूर्ण
राज्यों में असेंबली चुनावों में भाजपा के खिलाफ कहीं फूटे नहीं। गरीब लोगों में अब यह अफवाह घूम रही है कि मोदी जी उनके बैंक खातों में एक-एक लाख जमा करेंगे। गरीब की पहचान कैसे होगी? अगर यह धन उन्हें नहीं मिला तो गुस्सा और फूटेगा।
किसी ने सोशल मीडिया पर सही कहा कि मोदी क्या जाने एक गरीब परिवार की रोजमर्रा की कहानी। न उन्हें घर चलाना, न सब्जी-भाजी खरीदना, न बच्चों की फीस देना, न बसों और मेट्रो में धक्के खाना। वह प्रधानमंत्री हैं, चाहे जेब में पैसे न हों तो भी चलेगा, चाहे देश घूमें या विदेश। राजा भोज की तरह प्रजा के बीच निकलकर चुपचाप देखते कि जनता, अमीर
क्या गरीब क्या, सभी कैसे लाचार होकर बैंकों से अपने ही पैसे निकालने के लिए धक्के खा रहे हैं, उनकी रात-दिन की नींद हराम हुई है।
मोदी जी की बूढ़ी मां भी लाइन में खड़ी हो गईं। क्या शोभा देता है? प्रधानमंत्री और भाजपा नेता जो भी कहें कि वह भी आम जनता की तरह लाइन में खड़ी थीं। मगर आम आदमी इससे उनके चक्कर में नहीं आ रहा। इंडियन एक्सप्रेस में एक फोटो छपी जिसमें उत्तर प्रदेश के शहर में एक 90 वर्ष की बूढ़ी महिला पुलिसवाले की मदद से बैंक की लाइन में खड़ी होकर पैसे निकालने की कोशिश कर रही है। क्या यह उमर है ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को लाचारी और बदहवास होने की? जनता में रह रहे राजा और रंक सब एक बराबर हो गए।
राजधानी के एक अखबार में एक दिलचस्प कार्टून छपा जो नोटबंदी के हालात पर सबसे अच्छा तब्सरा लगा। प्रथम पृष्ठ पर पाकेट कार्टून दो हिस्सों में है: एक में जयप्रकाश नारायण का स्तम्भ है जिसके नीचे लिखा है: जेपी ने इंडिया को यूनाइट किया था। दूसरे हिस्से में लिखा है कि अब 'एटीएमों’ ने इंडिया को यूनाइट किया है। मोदी ने भारत की जनता को एक नई 'आर्ट ऑफ लिविंग’ दी है। प्रणाम 'नमो’ प्रमाण 'नगद’!
मन मोहन