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टेप कांड का क्या है सच

जानकारी के बावजूद सरकार नहीं उठा रही कोई बड़ा कदम, व्यावसायिक घरानों का हित है जुड़ा
मुकेश अंबानी और अनिल ‌अंबानी

‘फो न टेपिंग कांड का जिन्न एक बार फिर सामने आया है। नीरा राडिया टेप कांड के बाद एस्सार टेप के खुलासे के बाद कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। इससे जहां एक तरफ देश की सुरक्षा व्यवस्था को बड़ा खतरा हो सकता है तो दूसरी ओर कई प्रभावशाली कदमों का खुलासा भी होने का डर बना रहेगा। अब सवाल उठने लगा कि क्या सरकार को इस तरह की जानकारी होती है कि किसी का फोन टेप हो रहा है। आउटलुक की पड़ताल में पाया गया है कि हां इसकी जानकारी होने के बावजूद सरकार ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। एस्सार कंपनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय से देश के बड़े नेताओं, अधिकारियों, कॉरपोरेट घरानों के प्रमुखों के फोन टेप करवा रही थी और हाल तक यह टेपिंग जारी रही। चिंता की बात यह है कि इन टेपिंग से देश की सुरक्षा को भी बड़ा खतरा है। भारतीय खुफिया ब्यूरो के एक अधिकारी के मुताबिक फोन टेपिंग पुराना मामला है लेकिन यह उसी शर्त पर की जाती है कि जिसका फोन रिकॉर्ड हो रहा है वह संदिग्ध व्यक्ति हो। वह भी उन परिस्थितियों में होती है जिसमें सरकार की सहमति हो। आशय साफ है कि बिना सरकार की सहमति के किसी का भी फोन रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता। लेकिन हाल में कुछ ऐसे मामले आए जिससे फोन टेपिंग एक बड़ा मुद्दा बन गया। एस्सार मामले में जो तथ्य सामने आए हैं उसके मुताबिक कंपनी के पूर्व सुरक्षा अधिकारी अल बासित खान ने ही खुलासा किया कि लोगों का फोन रिकॉर्ड किया जा रहा था। जिन लोगों के फोन रिकॉर्ड की बात सामने आई उसमें वाजपेयी सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्रा, वाजपेयी के दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह, स्वर्गीय प्रमोद महाजन, उत्तर प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल राम नाईक, केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल, रेल मंत्री सुरेश प्रभु, सांसद किरीट सोमैया, भाजपा नेता सुधांशु मित्तल के अलावा रिलायंस समूह के मुखिया मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी और उनकी पत्नी टीना अंबानी, रिलायंस इंडस्ट्रीज के निदेशक हेतल मेशवानी, अमिताभ झुनझुनवाला, मनोज मोदी, आनंद जैन, सतीश सेठ आदि शामिल हैं। इसके अलावा वाजपेयी सरकार में प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात रहे एनके सिंह, वर्तमान गृह सचिव राजीव महर्षि के भी फोन टेप किए गए। सहारा समूह के सुब्रत राय, अभिनेता अमिताभ बच्चन, समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव, सांसद अमर सिंह के भी फोन टेप किए गए। इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है कि एक दिसंबर 2002 को रिकॉर्ड किए गए एक टेप में रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी और रिलायंस के निदेशक सतीश सेठ के बीच हुई बातचीत से खुलासा होता है कि वे प्रमोद महाजन की सहायता से देश के सुप्रीम कोर्ट को मैनेज करने की फिराक में थे। इसी तरह 29 जनवरी, 2003 को अनिल अंबानी और सतीश सेठ की बातचीत से यह सामने आया कि वे प्रमोद महाजन के पक्ष में शिवानी भटनागर केस को मैनेज करना चाह रहे हैं। बाद में इस मामले में प्रमोद महानज का नाम हटा भी दिया गया था। इसी तरह 28 नवंबर, 2002 को अमर सिंह और समता पार्टी के सांसद कुंवर अखिलेश सिंह की बातचीत के टेप से यह खुलासा हुआ कि केतन पारेख घोटाले और ग्लोबल ट्रस्ट बैंक से जुड़े विवाद में संयुक्त संसदीय समिति की जांच को अमर सिंह ने रिलायंस के पक्ष में मैनेज कर दिया था। यह तो चंद उदाहरण भर हैं। दरअसल, ऐसी सैकड़ों बातचीत इन टेपों में दर्ज हैं।

मामले का खुलासा तब हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के वकील सुरेन उप्पल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर शिकायत की कि एस्सार के पूर्व अधिकारी उनके पास टेलीकॉम कंपनी एस्सार से टेप लेकर आए थे। ये टेप दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में एस्सार गेस्टहाउस और मुंबई के महालक्ष्मी में बने एस्सार हाउस के बेसमेंट से हुई थीं। जिस समय यह रिकॉर्डिंग हुई थी उस समय दिल्ली में हच मोबाइल सेवा और मुंबई में बीपीएल की लूप मोबाइल सेवा एस्सार कंपनी ही देती थी। जैसे ही मामला सुर्खियों में आया तो बासित खान ने अपना बयान जारी कर कहा कि टेप एस्सार ने रिकॉर्ड नहीं किए थे बल्कि ये टेप उन्हें मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के एक अधिकारी ने अपने पास रखने को कहा था और उप्पल ने इस टेप के जरिये बड़े घरानों से वसूली के लिए संपर्क किया था। बासित के मुताबिक इस रिकॉर्डिंग की सच्चाई और स्रोत के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। बासित ने जिस अधिकारी का नाम लिया है वह एक बड़े आतंकी हमले में शहीद हो गए हैं। दूसरी तरफ उप्पल ने वसूली की खबरों से इनकार करते हुए कहा कि अगर पुलिस अधिकारी ने बासित को फोन टेप दिया था तो अभी तक उसे छुपाकर क्यों रखा गया। उप्पल को इस बात का भी शक है कि बासित शहीद पुलिस अधिकारी का नाम इस मामले में इसलिए ले रहे हैं ताकि मामले की जांच रुक जाए। इस खुलासे के बाद अब बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार इसमें कोई प्रभावी कदम उठाएगी। एस्सार समूह ने इस मामले में अपना पल्ला झाड़ लिया है और उप्पल को कानूनी नोटिस भेज दिया है। जिस बासित खान पर आरोप लगा है वह साफ तौर पर कह रहा है कि मुंबई के पुलिस अधिकारी द्वारा टेप उपलब्ध कराए गए। तो सवाल यह है कि आखिरकार फोन किसने टेप कराया और क्यों कराया? सरकार ने फोन टेपिंग के मामले में बहुत ही सख्त कानून बनाया हुआ है कि कोई भी कंपनी बिना सरकार के आदेश के किसी भी ग्राहक का फोन टेप नहीं कर सकती। अगर ऐसा किया तो कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के साथ-साथ उसका लाइसेंस भी रद्द कर दिया जाएगा। लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने जांच की बात तो कह दी है लेकिन अभी तक इसकी कोई प्रक्रिया नहीं शुरू हुई है। टेप कांड का मुद्दा सियासी हो गया है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री कार्यालय को पता चल गया है तो इस पर कार्रवाई क्यों नहीं होती। हालांकि अब सरकार ने गृह मंत्रालय से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है।

मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक इस मामले में खुफिया एजेसियों का भी सहारा लिया जा सकता है आखिर फोन टेपिंग के पीछे असली वजह क्या है। यह तो गृह मंत्रालय की जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन मामला कितना पेचीदा है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों ने इस मामले की सुनवाई करने से ही इनकार कर दिया है। पहले जस्टिस एके पाठक ने व्यक्तिगत कारणों से इस मामले की सुनवाई करने से इनकार कर दिया। उसके बाद जस्टिस वी कामेश्वर राव ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया कि उनकी पत्नी ने इनमें से कुछ कंपनियों के शेयर और म्यूचुअल फंड खरीद रखे हैं।

 

किसका फोन हो सकता है टेप

फोन टेप करने के पीछे भी कोई न कोई वजह होनी चाहिए। इसके लिए सरकार की ओर से कानून बनाया गया है। जिस शख्स का फोन टेप किया जाता है उसके बारे में या तो किसी प्रकार का संदेह हो कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी अपराध में शामिल हो या किसी की वजह से देश की कानून-व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है। इसके लिए सरकारी एजेंसियां ही अधिकृत होती हैं। एजेंसियां किसी का फोन टेप करने के लिए आवेदन देती हैं और उचित कारण बताती है कि फलां व्यक्ति का फोन टेप किया जाना है। इसके बाद फाइल उच्च अधिकारियों के पास जाती है। कई बार अधिकारी अगर संतुष्ट नहीं होता है तो फाइल वापस कर देता है। लेकिन उचित कारण बताने के बाद स्वीकृत मिलती है। राज्य हो या केंद्र सभी के पास फोन टेप के लिए विशेष तौर पर अधिकारियों की तैनाती होती है। कोई निजी मोबाइल कंपनी किसी का भी फोन टेप नहीं कर सकती। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो भी टेप किया जाता है उसका विवरण सार्वजनिक नहीं किया जाता।

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