Advertisement

जामिया में साहित्य सृजन

जामिया के हिंदी विभाग और हिंदी अकादमी के संयुक्‍त तत्वावधान में हिंदी साहित्य सृजन में स्त्रियों की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्य में स्त्रियों की भूमिका पर कई वक्‍ताओं ने शिरकत की। कार्यक्रम के पहले दिन की मुख्‍य अतिथि हिंदी अकादमी की अध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा थीं।
अपनी बात रखते वक्ता

विशिष्ट अतिथि जामिया के भाषा और मानविकी संकाय के डीन प्रो. एम. असुद्दीन की मौजूदगी में जामिया के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर ने बीज वक्‍तव्य से कार्यक्रम की शुरुआत की। जामिया के कुलपति प्रो. तलत अहमद की अध्यक्षता में हुए पहले सत्र में नूर जहीर और कवयित्री प्रो. सविता सिंह ने सार्थक रूप से अपनी बात रखी। अजय नावरिया ने पूरी गोष्ठी को संचालन से जीवंत बनाए रखा। वक्‍ताओं ने नएपन के साथ दृढ़ता से अपनी बात रखी। वरिष्ठ कथाकारों में मृदुला गर्ग, सुधा अरोड़ा और डॉ. रमा ने वर्तमान में हस्तक्षेप और संघर्ष करती स्त्री की आवाज को उठाया। कथाकार वक्‍ताओं में मनीषा कुलश्रेष्ठ, इंदिरा दंागी, प्रज्ञा, इंदु अग्निहोत्री, सुधा सिंह, बलवंत कौर, मनीषा पांडे, विपिन चौधरी, अमृता बेरा, रजनी मोरवाल आदि रहे।

 

भारत में ईरान की कहानियां

दिल्ली में साहित्य अकादमी ने भारत-ईरान संबंधों में साहित्यिक कड़ी का महत्वपूर्ण काम किया। प्रख्‍यात मलयालम लेखक पॉल जकरिया ने कहा, 'भारत और ईरान के बीच साहित्यिक संबंध बहुत पुराने हैं। यदि भारतीय भाषाओं और फारसी में अनुवाद होने लगें तो यह संबंध और प्रगाढ़ होंगे।’ साहित्य अकादमी और ईरान सांस्कृतिक केंद्र ने संयुक्‍त रूप से मिल कर ईरान में समकालीन कहानी लेखन विषय पर संगोष्ठी आयोजित की थी। पॉल जकरिया ने उमर खैयाम, रूमी और फिरदौसी को भी इस मौके पर याद किया और कहा कि अनुवाद से दोनों देशों का साहित्य सुलभ होगा और यह तरीका किसी भी देश को सांस्कृतिक रूप से समझने के लिए श्रेष्ठ है। अलीगढ़ के फारसी शोध केंद्र के निदेशक अजमी दुख्‍त सफावी ने कहा कि वहां की कहानियों में भी भारत की तरह आम आदमी की मुश्किलें झलकती हैं। अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने कहा कि इस परंपरा को आगे बढ़ाने की जरूरत है जो 19वीं शताब्‍दी में थोड़ा रुक गई थी।

Advertisement
Advertisement
Advertisement