अं तरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खिंया बटोर चुका नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में है। यह चर्चा विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को लेकर उठ रहे हैं। विश्वविद्यालय के पहले चांसलर रहे अमत्र्य सेन के बाद दूसरे चांसलर जॉर्जयो ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को प्रभावित किया जा रहा है। सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री जॉर्ज यो के इस्तीफे को लेकर यह बहस तेज हो गई है कि जिस उद्देश्य से इस विश्वविद्यालय की शुरुआत हुई वह मूल उद्देश्य से ही भटक गया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जॉर्ज के इस्तीफे पर गहरी चिंता जताई है। नीतीश कुमार का कहना है कि पूरे प्रकरण से विश्वविद्यालय किस दिशा में जा रहा है इसको लेकर संशय का माहौल बन गया है। नीतीश कहते हैं कि इस विश्वविद्यालय के गठन के समय से जुड़े लोगों को छोड़ दें तो 'आइडिया ऑफ नालंदा’ की मूल भावना प्रभावित होगी।
गौरतलब है कि इस विश्वविद्यालय का गठन बिहार सरकार की पहल पर केंद्र सरकार ने किया था और इसके पहले चांसलर के रूप में अमत्र्य सेन को चुना गया। इस विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक और अंतरराष्ट्रीय महत्व है इसलिए अमृत्र्य सेन का कार्यकाल पूरा होने के बाद जॉर्ज यो को चांसलर नियुक्त किया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 21 नवंबर को बोर्ड का पुनर्गठन किया था। जिसके बाद संस्थान के साथ सेन का एक दशक पुराना संबंध खत्म हो गया। राष्ट्रपति ने वाइस चांसलर का अस्थायी प्रभार विश्वविद्यालय के सबसे वरिष्ठ डीन को दिए जाने को भी मंजूरी दे दी, क्योंकि वर्तमान वाइस चांसलर गोपा सब्बरवाल का एक साल का विस्तार पूरा हो गया और नए वाइस चांसलर की नियुक्ति होने तक यह व्यवस्था रहेगी। उसके तुरंत बाद जॉर्ज यो ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को प्रभावित किया जा रहा है। जॉर्ज ने यह भी आरोप लगाया कि संस्थान में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर नोटिस तक नहीं दिया गया। जॉर्ज ने विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती बोर्ड के सदस्यों को भेजे अपने बयान में कहा कि जिन परिस्थितियों में नालंदा विश्वविद्यालय में नेतृत्व परिवर्तन अचानक और तुरंत क्रियान्वित किया गया वह संस्थान के विकास के लिए परेशानी पैदा करने वाला और नुकसानदायक है। जॉर्ज यह भी सवाल उठाते हैं कि उन्हें चांसलर के रूप में इसका नोटिस भी नहीं दिया गया। जॉर्ज कहते हैं कि पिछले साल मुझे जब अमïत्र्य सेन से जिम्मेदारी लेने को आमंत्रित किया गया था, तो मुझे बार-बार आश्वासन दिया गया था कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता रहेगी। लेकिन अब ऐसा होता प्रतीत नहीं होता। वहीं अमत्र्य सेन का कहना है कि सरकार नहीं चाहती है कि वे इस पद पर काम करें। क्योंकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दे पा रहे हैं और केंद्र सरकार की चुप्पी से साफ है कि इसमें राजनीतिक दखलंदाजी बढ़ गई है। सेन ने भी स्वायत्तता का सवाल उठाया और कहा कि राजनीति के कारण ही विश्वविद्यालय की गरिमा भी गिर रही है।
बहरहाल भारत सरकार ने कानून में संशोधन होने से पहले तत्काल प्रभाव से नए संचालन बोर्ड के गठन का फैसला किया है। नए वाइस चांसलर की नियुक्ति लंबित रहने तक गोपा सब्बरवाल को पद पर बरकरार रखना था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विश्वविद्यालय में कोई खाली जगह न रहे। लेकिन अब अंतरिम वाइस चांसलर के तौर पर पंकज मोहन को नियुक्त किया गया है। अब नए संचालन बोर्ड में 14 सदस्य होंगे जिसकी अध्यक्षता चांसलर करेंगे। इसमें वाइस चांसलर, भारत, चीन, आस्ट्रेलिया, लाओस पीडीआर और थाइलैंड द्वारा नामांकित पांच सदस्य भी होंगे। पूर्ज राजस्व सचिव एनके सिंह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। सिंह नालंदा मेंटर्स मेंटर्स ग्रुप के सदस्य भी थे।