इसलिए कहा जा सकता है कि नक्सलियों (जिन्हें माओवादी भी कहा जाता है) ने अपना 'विकास’ जरूर किया है। वह धन से पूर्ण संपन्न हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाल ही में पुराने 500 और 1000 रुपये के नोटबंदी से नक्सलियों को भी काफी दिक्कत हुई है, अपने 'काले धन’ को सफेद करने में। नए हथियार खरीदने में कुछ समय तक इन्हें दिक्कत आएगी। मगर यह लोग काफी 'पहुंच’ वाले हैं। देश की राजधानी से लेकर विदेशों में इनके हितैषी हैं। जल्द ही वह 'आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक’ से उबर सकते हैं। सुरक्षा बल नक्सलियों से केवल बंदूक से लड़ रहे हैं। कोई विशेष कोशिश आज तक नहीं हुई उनकी आर्थिक लाइफलाइन को बंद करने की।
माओ-त्से-तुंग का सामाजिक-राजनैतिक विश्वास था कि 'राजनीतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलती है।’ लेकिन भारत के नक्सलियों/माओवादियों ने एक नई परिभाषा को जन्म दिया है-'धन शक्ति’ बंदूक की नली से निकलती है।’ अजीब बात है कि बस्तर क्या, पूरे लाल गलियारे में, जो नेपाल में पशुपतिनाथ से तिरुपति तक फैला है, क्रांति के नाम पर अच्छा-खासा पैसा अपने ही 'टैक्सों’ के जरिये वसूल करते हैं, चाहे वह हाईवे पर ट्रक हों, अध्यापक हो, ठेकेदार हों। कई जगह तो पुलिस वाले अपनी जान की सुरक्षा के लिए यह 'टैक्स’ देते हुए पाए गए हैं। केवल छत्तीसगढ़ में ही नक्सली प्रतिवर्ष बंदूक का डर दिखाकर सैकडा़ें करोड़ रुपये की उगाही करते हैं। दूसरी तरफ वह कहते हैं कि 'हम जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं।’
नक्सली मूवमेंट अब अच्छा-खासा पूर्ण संगठित वसूली बिजनेस भी बन गया है। इन बंदूकधारियों से या 'अर्बन जंगल्स’ में इनके पढ़े-लिखे बुद्धिजीवियों से पूछिए कि आप धन वसूली क्यों करते हैं जबकि यह 'जनता का मूवमेंट’ है, तो वह बेहिचक साफतौर पर जवाब देते हैं, 'हमें इस व्यापक मूवमेंट को चलाने के लिए मुद्रा तो चाहिए।’
पूरे लाल गलियारे में घूमकर आप पाएंगे कि नक्सली अपने 'टैक्सों’ के जरिये जो पैसा व्यापारियों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों, सरकारी कर्मचारियों, प्राइवेट और पद्ब्रिलक सेक्टर की खदानों, अध्यापकों तथा पुलिस वालों से वसूल करते हैं, उससे वह अच्छा-खासा जीवन जीते हैं। यह सोचना कि यह 'बेचारे’ जंगल में दर-दर भटकते हैं, गलत है।
वसूली के पैसों में से एक बड़ा हिस्सा आधुनिक शस्त्र खरीदने में जाता है। इन्हें यह हथियार स्थानीय और कुछ विदेशी सरकारी और उग्रवादी संगठनों (जैसे कि पाकिस्तान की खुफिया आईएसआई एजेंसी) से प्राप्त होते हैं।
मेरे जैसे पत्रकार कई बार इस क्षेत्र में जाते और लिखते रहे हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि 'नक्सल साम्राज्य’ एक कॉरपोरेट घराने की तरह चलता है। कैडर के सदस्यों में काफी महिलाएं और बच्चे भी हैं जिन्हें प्रतिमाह तनख्वाह दी जाती है। बड़े रैंक पर लीडर्स को कई जिम्मेवारी दी जाती है, जैसे राशन और दवाइयों की व्यवस्था करना, मिलिट्री ट्रेनिंग कैंप चलाना, 'दुश्मन’ यानी सुरक्षा बलों के मूवमेंट और उनके कैंपों की संख्या के बारे में गुप्त सूचनाएं एकत्रित करना। पुलिस द्वारा कुछ दस्तावेजों को पकड़े जाने पर पाया गया कि नक्सल 'आंतरिक ऑडिट’ रिपोर्ट भी तैयार करते हैं।
अपने 'टैक्सों’ के अलावा, नक्सली अब अपहरण, लूटमार और नशीली ड्रग्स के धंधों में भी लिप्त पाए गए हैं। इनसे भी प्रतिवर्ष करोडा़ें रुपया वह अर्जित करते हैं। एक नक्सल विशेषज्ञ के अनुसार माओवादियों की सालाना आमदनी नक्सल प्रभावित आठ राज्यों (छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र) से अपने 'टैक्सों’ तथा अन्य वसूली द्वारा 10,000 हजार करोड़ रुपये आंकी जाती है। अपने आप में किसी मल्टीनेशनल कंपनी से कम नहीं हैं ये नक्सली।
समय-समय पर पुलिस ने नक्सलियों के ठिकानों से उनके 'टैक्स सूची’ बरामद किए हैं। ठेकेदारों, पेट्रोल पंपों, बड़े जमीन मालिकों, व्यापारियों, ट्रांसपोर्टरों और बड़े औद्योगिक घरानों से कितना 'टैक्स’ वसूलना है, इन सूचियों से पता चलता है। दिलचस्प बात यह है कि यह कभी-कभी इनसे प्राप्त रकमों के लिए 'चंदा रसीद’ भी जारी करते हैं।
उदाहरण के तौर पर अमूमन ठेेकेदारों से प्रोजेक्ट्स की कुल लागत का दस प्रतिशत वसूलते हैं और जो छोटी पुलिया या सरकारी बिल्डिंग बनाते हैं, उनसे पांच प्रतिशत। मगर जिससे भी वह 'टैक्स’ वसूलते हैं, चाहे वह प्राइवेट या सरकारी व्यक्ति या संगठन हों, अपने बही-खाते में इस भुगतान का जिफ् करने की हिम्मत नहीं रखते। कई ठेेकेदार नक्सलियों से मिले होते हैं। अपनी ही बनाई सडक़ों, पुलिया और भवनों को वह नक्सलियों द्वारा बारूद से उड़वा देते हैं, जिससे पुन: इनके निर्माण के ठेके प्राप्त हो सकें।
कई ठेकेदार और व्यापारी इन नक्सलियों के वसूली के काले धन के निवेश में मदद करते हैं। नक्सलियों का यह पैसा रीयल एस्टेट, ट्रांसपोर्ट, शो-रूम तथा अन्य बिजनेस में वारांगल, नागपुर, रायपुर, भिलाई, जगदलपुर, पटना, रांची, भुवनेश्वर, भोपाल, कोलकाता जैसे शहरों में लगा हुआ है। बस्तर में नारायणपुर के एक ट्रांसपोर्टर को कुछ वर्ष पहले नक्सलियों ने पेड़ से लटका कर फांसी दे दी थी क्योंकि वह उनके पैसों, जो उसके पास जमा था, में गड़बड़ी करने लगा था। छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा वसूली नक्सली तेंदू पत्ता (बीड़ी पत्ता) और बांस के व्यापारियों से करते हैं। प्रत्येक बोरी और ट्रक का रेट तय है। 'नक्सलियों की धन बनाने की मशीन पर बिजनेस स्कूलों के लिए अच्छी-खासी केस स्टडी हो सकती है’, यह कहना है छत्तीसगढ़ नक्सल विरोधी अभियान से जुड़े एक उच्च पुलिस अधिकारी का।
(लेखक टाइम्स ऑफ इंडिया तथा
द ट्रिब्यून के रोविंग एडिटर रहे हैं)
विकास से खत्म होगा नक्सलवाद
विकास एक ऐसा मूलंमत्र है जिसके जरिए बड़ी से बड़ी समस्याओं को दूर किया जा सकता है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आउटलुक संवाद के कार्यफ्म में वीडियो संदेश के जरिए यह बताया कि किस प्रकार नक्सलवाद जैसी समस्या को विकास के जरिए खत्म किया जा सकता है। चौहान ने मध्य प्रदेश के कई समस्याओं का जिफ् करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने विकास की कई योजनाओं का शुभारंभ करके न केवल गरीबी की समस्या को दूर किया बल्कि उन लोगों के विकास में कई योजनाएं सहायक भी बनी। चौहान ने इस बात पर जोर दिया कि आज समाज में जिस तरह की बुराइयां फैली हुई है उसके लिए एकमात्र समाधान यह है कि समस्या की तह में जाए और उसको दूर करने के लिए प्रयास किए जाएं। चौहान ने संदेश में बताया कि राज्य सरकार ने न केवल किसानों के लिए बल्कि समाज के हर दबे-कुचले वर्ग के लिए ऐसे अभियान चलाए जिससे कि सबका विकास हो सके। चौहान ने कहा कि आज नक्सलवाद जैसी समस्या से तभी निपटा जा सकता है जब हम उनकी समस्याओं को सुने जो इसे फैला रहे हैं। चौहान का मूल मंत्र यही रहा कि जब तक विकास नहीं होगा तब तक नक्सलवाद ही नहीं अन्य तरह की जो समस्याएं हैं वह समाज में फैलती रहेगी। चौहान ने राज्य सरकार की योजनाओं की भी जानकारी दी।