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रघुवर दास ने बचा ली अपनी कुर्सी

सीएनटी-एसपीटी एक्‍ट में संशोधन से संबंधित विधेयक झारखंड विधानसभा से पारित
सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन का सड़क पर विरोध

पिछले सप्ताह झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन सदन के भीतर अभूतपूर्व हंगामा हुआ। इसकी उम्‍मीद हर किसी को थी, क्‍योंकि छोटानागपुर-संतालपरगना काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी-एसपीटी एक्‍ट) मेंसंशोधन का प्रस्ताव पेश होना था। तमाम हंगामे के बावजूद सदन के नेता और मुख्‍यमंत्री रघुवर दास ने जबरदस्त फ्लोर मैनेजमेंट का परिचय देते हुए विधेयक पास करा लिया। अपने सहयोगी आजसू पार्टी द्वारा विरोध और इसके परिणामस्वरूप अपनी कुर्सी पर आसन्न खतरे को भी उन्होंने बखूबी टाल दिया। हालांकि खुद रघुवर दास भी मानते हैं कि चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई हैं।

दरअसल सीएनटी-एसपीटी एक्‍ट में संशोधन के सवाल पर झारखंड पिछले कुछ दिनों से उद्वेलित है। रघुवर दास सरकार और भाजपा संशोधन को हर हाल में अमली जामा पहनाना चाहती है, जबकि विपक्षी दल, खास कर झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विकास मोर्चा इसे आदिवासी हितों के प्रतिकूल बता रहे हैं। इन दोनों दलों के साथ दूसरे विरोधी दल भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में जुटे हैं। संशोधन विधेयक पारित किए जाने के खिलाफ 25 नवंबर को राज्यव्यापी बंद भी बुलाया गया था। बंद के दौरान खूब उपद्रव भी हुए।

दूसरी तरफ मुख्‍यमंत्री रघुवर दास पूरी ताकत से संशोधन को लागू कराने में लगे हुए हैं। इसके लिए वह साम-दाम-दंड-भेद के इस्तेमाल से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। अपने राजनीतिक कौशल से वह अभी सफल होते दिख रहे हैं। विधानसभा में जाने से पहले जब उन्हें आभास हुआ कि इस मुद्दे पर आजसू पार्टी का साथ उन्हें नहीं मिलेगा, तो उन्होंने बड़ा दांव खेलने का फैसला किया और बिना मत विभाजन के ही विधेयक को पारित करा लिया। वह जानते थे कि यदि मत विभाजन हुआ, तो उनकी कुर्सी खतरे में पड़ सकती है। इसलिए उन्होंने इसकी नौबत ही नहीं आने दी। विधेयक पर अपनी पार्टी के आदिवासी विधायकों के संभावित विरोध को भी उन्होंने बखूबी बेअसर कर दिया।

ऱघुवर दास के बारे में कहा जाता है कि वह बेहद ठंडे दिमाग से अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देते हैं। राज्यसभा के पिछले चुनाव में उनकी रणनीति के कारण ही भाजपा को दोनों सीटें हासिल हो गई थीं। अपने विधायी अनुभवों के कारण रघुवर ने विरोधियों को बिना कुछ बोले चित कर दिया था। इससे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी उनके राजनीतिक कौशल का कायल हो गया।

अब, जबकि रघुवर दास सुरक्षित हो गए हैं, उनका पहला और सबसे महत्वपूर्ण काम सीएनटी-एसपीटी एक्‍ट में संशोधन कराना है। करीब 108 साल पुराने इन कानूनों के कारण झारखंड में आदिवासियों को अपनी जमीन से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। रघुवर दास कहते रहे हैं कि सीएनटी-एसपीटी एक्‍ट में संशोधन नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसके कुछ प्रावधानों का सरलीकरण किया जा रहा है, ताकि आदिवासियों को उनकी जमीन का लाभ मिल सके।

भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने मुख्‍यमंत्री के प्रयास का खुलेआम समर्थन किया है। पार्टी के दूसरे नेता भी रघुवर दास के साथ खड़े नजर आ  रहे हैं, हालांकि कतिपय आदिवासी विधायक-नेता इस मुद्दे पर खुल कर कुछ भी बोलने से कतराते हैं। उधर विपक्ष के लोग विधानसभा की कार्यवाही और संशोधन विधेयक पास करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। जदयू के वरिष्ठ नेता जयसिंह यादव कहते हैं कि सत्ता पक्ष ने सदन को विश्वास में नहीं लिया। राजद के कैलाश यादव के अनुसार, सरकार को विधायी नियमों का पालन करना चाहिए था। झाविमो के राजीवरंजन मिश्रा और प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्‍ता शमशेर आलम भी कहते हैं कि संशोधन विधेयक को पास कराने से पहले सदन को विश्वास में लिया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सरकार ने जिस तरह की हड़बड़ी दिखाई, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है।

बहरहाल, रघुवर दास इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। हर तरफ से उठनेवाली विरोध की हर आवाज को वह नक्‍कारखाने में तूती की आवाज करार दे रहे हैं। जनसभाओं और कार्यफ्मों में वह कह रहे हैं कि संशोधन का विरोध वही नेता कर रहे हैं, जिनकी दुकानदारी बंद हो रही है। अब देखना है कि रघुवर आगे की राह कैसे तय करते हैं। उनका राजनीतिक कौशल इस संवेदनशील और विस्फोटक मुद्दे को कैसे सुलझा पाता है।

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