कांग्रेस हमेशा अपने उम्मीदवारों के लिए खर्च का प्रबंध करती रही है। कांग्रेस की हार के पीछे यह भी एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है। जबकि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता हैं, इसमें राजघराने से ताल्लुक रखने वाले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी शामिल हैं। लेकिन न तो इन्होंने और न ही शीर्ष नेतृत्व ने मदद की। यहां तक कि चुनाव प्रचार के दौरान जो प्रमुख नेता गए भी उनके लिए जो अस्थायी तौर पर टायलेट आदि बनाए गए थे उसे भी उठाकर ले गए। इससे बड़ा दिवालियापन क्या हो सकता है।
दक्षिण में वेंकैया
कें द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू को दक्षिण भारत में भाजपा को मजबूत करने की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी दी जा सकती है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रह चुके वेंकैया ने हाल ही में हैदराबाद में आयोजित कार्यफ्म में इस बात का जिफ् किया कि छात्र जीवन में वे हिंदी विरोधी आंदोलन में शामिल रहे। लेकिन आज हिंदी, उर्दू और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के बिना विकास संभव नहीं है। दक्षिण भारत में भाजपा कैसे मजबूत हो इसके लिए वेंकैया से बड़ा चेहरा पार्टी को नहीं दिखाई पड़ रहा है। इसलिए तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के तुरंत बाद वेंकैया को ही भेजा गया। वैसे भी वेंकैया ने खुद इस बात का जिफ् किया है कि उनका जो मूल गांव है वह तमिलनाडु की सीमा से सटा हुआ है। मतलब अब दक्षिण में वेंकैया भाजपा की नैया को पार लगाएंगे।
सिद्धू लड़ेंगे लोकसभा चुनाव
भाजपा के पूर्व सांसद नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब की अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। यह सीट पंजाब कांग्रेस के प्रमुख अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने के कारण खाली हुई है। पंजाब में विधानसभा के साथ अमृतसर लोकसभा सीट के लिए भी चुनाव होने की संभावना है। ऐसे में सिद्धू के कांग्रेस से चुनाव लडऩे के कारण पार्टी को फायदा मिल सकता है। वैसे भी सिद्धू की पत्नी ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सिद्धू की पत्नी भी अमृतसर से ही विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। ऐसे में कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि अकाली शासन से ऊब चुकी जनता अब कांग्रेस के साथ रहेगी। क्योंकि अकाली के कई दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। वैसे भी सिद्धू के कांग्रेस में जाने से आम आदमी पार्टी का बड़ा नुकसान हुआ है।
नोटबंदी की गाज किस पर
खबर है कि केंद्र सरकार नोटबंदी के फैसले के बाद फैली अव्यवस्था को लेकर कुछ लोगों पर गाज गिरा सकती है। यह गाज किसी मंत्री पर गिरेगी या अधिकारी पर यह तो तय नहीं है लेकिन चर्चा के मुताबिक तीस दिसंबर के बाद कोई बड़ा फैसला केंद्र सरकार ले सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खास नौकरशाह हंसमुख अधिया सहित कई प्रमुख नेताओं ने जब यह कहा कि फैसला ठीक है तब यह अव्यवस्था क्यों? वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी सरकार को जो फीडबैक दिया उसके मुताबिक इस फैसले के बाद 10-15 दिन में स्थितियां सामान्य हो जाएंगी। जिसे लेकर प्रधानमंत्री ने भी घोषणा कर दी। लेकिन जो हालात हैं उससे नहीं लगता है कि जल्दी इस समस्या का समाधान होने वाला है। माना जा रहा है कि समस्या को लेकर किसी न किसी पर गाज गिरना तय है।
नीतीश के घटते समर्थक
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थक दलों की संख्या कम होती जा रही है। नोटबंदी के मुद्दे पर केंद्र सरकार का समर्थन करने वाले नीतीश के रवैये से पार्टी के नेता तो हैरान-परेशान हैं ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दूरी बना ली है। खबरों में नीतीश से सहानभूति रखने वाले राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया अजीत सिंह भी नाखुश बताये जा रहे हैं। बिहार में जहां नीतीश नोटबंदी के समर्थन में जुटे हैं वहीं लालू यादव की पार्टी के कार्यकर्ता विरोध में सडक़ों पर हैं।
पाक धर्म के आधार पर भारत को बांटने का प्रयास कर रहा है, पर गृहमंत्री और उनके 'बॉस’ प्रधानमंत्री भी वही कर रहे हैं।
— राहुल गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष