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अलग हट कर रचते थे अजीत

हिंदी फिल्मों में 80 का दशक संगीत के मामले में श्रेष्ठ नहीं माना जाता। अपवादों को छोडक़र मुख्‍यत: डिस्को, एक्‍शन के इस दौर में संगीत के नाम पर शोर-गुल अधिक मिलता है।
आक्रोश का पोस्टर

इस दशक की अधिकांश फिल्मों के संगीत से मेलोडी गायब सी हो गई थी। शायद यही कारण है कि इस दशक में गैर फिल्मी लोकप्रिय गजलों की एक लहर आई जिसने फिल्मों के संगीत से अधिक मकबूलियत हासिल की। लेकिन यह भी निर्विवाद तथ्य है कि इस दशक की कलात्मक ऑफ बीट फिल्मों का संगीत उत्कृष्ट था। भले ही ऐसी अधिकांश फिल्मों के न चलने के कारण इनका संगीत उपेक्षित और अनसुना रह गया। ऐसी ही ऑफबीट फिल्मों के संगीतकार थे, अजीत वर्मन। छब्‍बीस मार्च 194। को जन्मे अजीत वर्मन 60 के दशक से सत्यजित राय, मृणाल सेन, पंकज मल्लिक, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि के साथ वादक के रूप में काम करते रहे और आठवें दशक के अंत में खुद स्वतंत्र रूप से संगीतकार के रूप में काम आरंभ किया।

गोविंद निहलानी की बहुप्रशंसित फिल्म आक्रोश (1980) के संगीतकार अजीत वर्मन ही थे। इस फिल्म में उनका संगीत बहुत प्रभावशाली रहा। माधुरी पुरंदरे के स्वर में लावणी 'तू ऐसा कैसा मरद’ विशुद्ध ग्रामीण महाराष्ट्रीयन शैली की लावणी थी, जबकि 'सांसों में दर्द, दर्द में सांसें’ (माधुरी पुरंदरे) बेहद कर्णप्रिय था। सितार, सारंगी की धुन और तबले की संगत के साथ निस्तब्‍धता में ध्वनि के गुंजन-सा जबर्दस्त असर यह गीत पैदा करता है। वहीं धीमी लय में दर्द-भरी शैली के साथ अंतरे के बीच में कहीं-कहीं रात और कहीं भोर के सुरों के संग बढ़ती भैरवी में 'कान्हा रे पीर सही न जाए’ (वंदना खांडेकर) भी अच्छी रचना है। अद्र्धसत्य (1983) में भी पाश्र्व में शास्त्री संगीत का प्रभावशाली उपयोग था। पाश्चात्य और भारतीय शास्त्रीय संगीत के उस्ताद अजीत वर्मन भी वनराज भाटिया की तरह आर्ट और ऑफ बीट फिल्मों के संगीतकार के रूप में देखे जाते हैं। शशि कपूर द्वारा निर्मित और गोविंद निहलानी द्वारा निर्देशित बहुप्रशंसित फिल्म विजेता (1983) में अहीर भैरव के सुरों के साथ शुद्ध शास्त्रीय अंदाज में सृजित 'मन आनंद आनंद छायो’ (आशा-सत्यशील देशपांडे) के विभोर करने वाले अंदाज का तो कोई जवाब ही नहीं था। वहीं लोकरसिया गीत 'मन बसा मोर वंृदावन मां’ (मन्ना डे-साथी) भी निराली ही रचना थी। परवीन सुल्ताना के स्वर में 'बिछरत मोरे कान्हा’ शास्त्रीय अंदाज की अनुपम रचना थी।

अनुपम खेर के अभिनय के कारण बहुचर्चित सारांश में अजीत वर्मन ने दो सुंदर गीत कंपोज किए थे। शाम की गहराइयों को जीवंत करती 'हर घड़ी ढल रही शाम है जिंदगी’ (अमित कुमार) की धुन बहुत दिलकश थी पर चंदन दास की गाई गजल 'हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी’ से बेहद मिलती थी। भूपेंद्र के स्वर में 'अंधियारा गहराया’ भी फिल्म के कथ्य के अनुसार आम आदमी की व्यवस्था के आगे की हताशा को समाहित करता चलता है।

महेश भट्ट निर्मित जनम के आधुनिक रवानगी-भरी 'जिंदगी, जिंदगी’  (अमित कुमार) और 'जीवन-संध्या’ के धीमी लय के 'बड़ी है बेकरारी’ (किशोर) जैसे गीतों में वर्मन कोई विशेष प्रभाव नहीं दर्शा पाए। पर नासिर अहमद की वास्ता (1984) में अजीत वर्मन ने लाजवाब संगीत दिया था। ठुमरी में शास्त्रीय रचना 'खेलन नहीं जाऊं री’ (आशा) कंपोजीशन और गायकी के हिसाब से दशक के सर्वश्रेष्ठ गीतों में था पर बिलकुल सुना नहीं गया। 'चली पुरवाई झूमे अंगड़ाई’ (आशा) के अंतरों की ऑफबीट कंपोजीशन के साथ मुखड़े का एकीकरण अद्भुत आधुनिकता लेकर आया था। भटियाली लोकधुन पर 'मां बोलो कब तलक यूं जलना है’ (आशा-अमित कुमार) की दर्दभरी तर्ज भी लोकप्रिय क्‍यों न हुई, यह ताज्जुब का विषय है। क्‍या आशा ने उमराव जान से कम अच्छा गाया था? पर जहां एक के लिए चर्चा ही चर्चा, वहां दूसरे के गीत लोग जानते भी नहीं। हमारे देश में ऑफबीट फिल्मों के संगीत के साथ अकसर यह त्रासदी रही है।

अजीत वर्मन ने आघात (1985), मिसाल (1985), दामाद चाहिए (1986), अंधा युद्ध (1988), गुरुदक्षिणा (1988), स्वयं (1989), कर्मयोद्धा (1991) और ये आशिकी मेरी (1998) फिल्मों में संगीत दिया जिनमें ऑफबीट और व्यावसायिक दोनों तरह की फिल्में थीं। मिसाल के  लिए मजरूह सुल्तानपुरी लिखित 'आओ ना राहो में’ (अमित कुमार-पार्वती खान), 'आज यंू मिलें’ (जतिन-विजयेता पंडित), 'कर दे कर दे’ (सलमा आगा), 'तुम मेरे संग’ (विजयेता-जतिन, अमित कुमार-पार्वती खान) और 'बहना मेरी’ (शैलेंद्र सिंह-पार्वती खान) जैसे गीत अच्छे  होते हुए भी सुने नहीं गए। दामाद चाहिए (1986) का 'राधिके मुरली न माने’ (हरिहरन-प्रीति सागर) शास्त्रीय संगीत आधारित अच्छी रचना थी। स्वयं (1989) में आशा भोंसले के स्वर में एक अच्छा गीत था, 'मैंने हर हाल में’ पर यह बिलकुल ही सुना नहीं गया। ये आशिकी मेरी (1998) का 'इतना तू कह दे’ अच्छी, रचना थी पर लोकप्रिय न हुई।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)

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