पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हेलीकॉप्टर खरीदी, कोयला खदानों और 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के घोटालों पर सवाल पूछे जा रहे हैं। कुछ प्रमाण मिलने पर निचली अदालत में सिर झुकाए खड़े दिख सकते हैं। नए न्यायाधीशों की नियुक्तित और अन्य अधिकारों पर अंकुश के लिए सरकार ही नहीं कुछ राजनीतिक दलों के भारी दबाव से विचलित सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सार्वजनिक कार्यफ्मों में दु:खी हालत में आंसू टपक रहे हैं। कुछ नेता न्यायाधीशों पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पक्षपात, भाई-भतीजावाद तक के आरोप मढऩे लगे हैं। आजादी के बाद पहली बार भारतीय थल सेना के प्रमुख वी.के. सिंह ने रिटायर होने से पहले अपने रिकार्ड में जन्म तिथि सही नहीं होने के मुद्दे पर सरकार से टकराव मोल लिया। सफलता नहीं मिलने के बाद राजनीति में शामिल होकर अदने से राज्यमंत्री का पद पाकर संतुष्ट हुए। अब पराकाष्ठा यह हुई कि वी.आई.पी. हेलीकॉप्टर की खरीदी में घोटाले के आरोप में भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एस.पी. त्यागी को सरकार ने गिरफ्तार ही करवा दिया। कानूनी-अदालती कार्रवाई महीनों-वर्षों तक चलने के बाद ही तय होगा कि वायु सेना प्रमुख रहते हुए एस.पी. त्यागी ने स्वयं दलाली की कोई रकम पाई या नहीं? लेकिन दुनिया में अपनी बहादुरी एवं ईमानदारी के लिए मानी जाने वाली भारतीय सेना के माथे पर 'काला टीका’ तो लगा दिखाई दिया। भारतीय सेना के ही कई वरिष्ठतम पूर्व एवं वर्तमान प्रमुखों ने इस घटना पर दु:ख एवं चिंता जताई है, क्योंकि नियम-कानूनों के तहत ऐसी किसी बड़ी खरीदी या रक्षा सौदों में रक्षा मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, सुरक्षा सलाहकार एवं कुछ शीर्ष सरकारी एजेंसियों की सहमति या असहमति भी रिकार्ड में दर्ज रहती है। खतरा यह भी है कि भविष्य में वरिष्ठ सेनाधिकारी कोई महत्वपूर्ण निर्णय करते समय पहले इस बात की चिंता कर सकते हैं कि उन पर भविष्य में कोई आरोप तो नहीं लग जाएगा। वहीं जनता के मन में सेना प्रमुखों की ईमानदारी और विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्नï लग सकते हैं।
जन सामान्य निचली अदालतों में गड़बड़ी की आशंका अथवा फैसले पर अपील से न्याय की अपेक्षा रखता है। जब राजनीतिक नेता ही न्याय के मंदिरों के शिखर पर पत्थर फेंकते दिखाई देंगे, तो भोले-भाले लोग न्याय की आशा कैसे करेंगे? नेता अपने पसंदीदा लोगों को न्यायाधीश नियुक्त करना चाहते हैं। मतलब जिसकी सरकार, उसके ही अफसर और उसके बनाए जज। नियुक्त होने के बाद क्या वे बिलकुल 'बेवफा’ बन जाएंगे? प्राचीनकाल जैसा ऐसा कौन सा सिंहासन है, जिस पर बैठते ही निष्पक्ष न्याय के अलावा मुंह से एक शब्द नहीं निकलेगा?
भ्रष्टाचार के गंभीर मामले हों या बड़े विवादास्पद हत्याकांड या आतंकवादी अपराध- सी.बी.आई. ही जांच-पड़ताल के बाद गिरफ्तारी और फिर सजा के लिए अदालत जाती है। अब सरकार ने पूर्व सेना प्रमुख या प्रधानमंत्री की तरह सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा को भी आरोपों के आधार पर कठघरे में खड़ा कर दिया है। संभव है कि आरोपों के कुछ आधार हों और देर-सबेर साबित होने पर उन्हें दंड भुगतना पड़े। लेकिन अब तक की परंपरा-नियम के अनुसार सी.बी.आई. के निदेशक की नियुक्तित भी पर्याप्त जांच-पड़ताल और चयन समिति में प्रतिपक्ष के नेता की राय भी शामिल रहती है। जो भी हो, संदिग्ध चरित्र या विवादों वाले व्यक्तित को देश की सर्वोच्च एजेंसी की बागडोर संभालने देने वाले चयनकर्ताओं की मंशा और विश्वसनीयता पर भी तो प्रश्नचिह्नï लगेगा? इन दिनों तो सी.बी.आई., इंटेलीजेंस ब्यूरो, रॉ के प्रमुखों, थल सेनाध्यक्ष की नियुक्तित के प्रस्ताव ही सरकार के सामने लटके हुए हैं। सी.बी.आई. में रातोरात कार्यवाहक निदेशक बनाए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब-तलब कर लिया है।
रोग और मृत्यु से समय रहते रक्षा के लिए करोड़ों लोग डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप मानते हैं। हजारों ईमानदार एवं योग्य डॉक्टर भारत में हैं और ब्रिटेन-अमेरिका में यदि भारतीय डॉक्टर न रहें, तो शायद वहां लाखों लोग नए संकट में फंस जाएं। भारतीय डॉक्टरों की साख दुनिया भर में है। इस समय डॉक्टरों के अंतरराष्ट्रीय संगठन की अध्यक्षता भारत के ही डॉक्टर को मिली हुई है। लेकिन कुछ अर्से पहले भारतीय मेडिकल काउंसिल के प्रमुख डॉ. केतन देसाई को गड़बड़ी के आरोपों में कुछ महीने जेल में भी रहना पड़ा था। स्वाभाविक है कि न्यायालय में अंतिम
फैसला होने तक वह दोषी नहीं साबित हो सकेंगे। जब मेडिकल कॉलेजों, डॉक्टरों को मान्यता देने वाली संस्था के प्रमुख ही आरोपों के घेरे में रहेंगे, तो क्या डॉक्टर, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्नï नहीं लगेंगे?
राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों पर तो राजनीतिक पूर्वाग्रहों के साथ गड़बडिय़ों के आरोप लगते ही रहे हैं। उनके अपने विधायक और पार्टी के नेता सवाल उठाते रहते हैं। कई मुख्यमंत्रियों या शीर्ष राजनेताओं को आशीर्वाद देते रहने वाले चंद्रास्वामी या आसाराम बापू जैसे धर्मगुरु जब गंभीर आपराधिक मामलों में जेल जाते हों, तब धर्मगुरुओं की साख पर धब्बा कैसे नहीं लगेगा? समाजसेवी कहलाने वाले अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन ने तत्कालीन मनमोहन सरकार को ही उखाड़ फेंका, लेकिन उनकी असली लोकपाल की मांग नई सत्ता के ढाई साल पूरे होने के बाद भी कहीं मंझधार में फंसी है। अब उनके समर्थक नेता और कार्यकर्ता भी बेबस दिखाई दे रहे हैं। अविश्वास का यह दौर क्या बहुत दु:खद एवं खतरनाक नहीं है?