चांदनी रात की पृष्ठभूमि में भेड़ाघाट में नाव पर राज कपूर और नर्गिस पर फिल्माए आवारा (1951) के 'दम भर जो उधर मुंह फेरे ओ चंदा’ (मुकेश, लता) का बोल्ड, बेबाक फिल्मांकन तो अपने समय से बहुत आगे की अभिव्यक्ति के रूप में आया था। यह गीत आज भी प्रेम गीतों में सर्वश्रेष्ठ फिल्मांकनों में स्थान रखता है। राज कपूर की ही श्री 420 (1955) के 'मेरा जूता है जापानी’ (मुकेश) का फिल्मांकन भोपाल-इंदौर मार्ग पर हुआ था। फिल्मांकन में दर्शक सडक़ के किनारे लगे मील के पत्थर को भी देख सकते हैं। जिस देश में गंगा बहती है (1960) के पद्मिनी पर फिल्माए राग बसंत मुखरी पर शंकर जयकिशन द्वारा कंपोज किए गए 'ओ बसंती पवन पागल’ (लता) का लोकेशन भी भेड़ाघाट की वही श्वेत चट्टानें और मशहूर चौसठ योगिनी मंदिर है। इसी फिल्म के रोमांचक गीत 'आ अब लौट चलें’ (मुकेश, लता और साथी) का फिल्मांकन भी जबलपुर के पास ही संपन्न हुआ था। उसी तरह चंबल के बीहड़ों में फिल्माए मुझे जीने दो (1963) के कई गीतों का फिल्मांकन भिंड-मुरैना के नयनाभिराम प्राकृतिक रूप को जीवंत करता है चाहे वह गुलाब बाई के प्रसिद्ध नौटंकी गीत से प्रेरित 'नदी नारे न जाओ श्याम’ (आशा) का चंबल नदी के पास का फिल्मांकन हो या साहिर के लाजवाब गीत और जयदेव की बेहतरीन कंपोजीशन 'तेरे बचपन को जवानी की दुआ देती हूं और दुआ दे के परेशान सी हो जाती हूं’ (लता) का अटेर के किले की पृष्ठभूमि में फिल्माया यह गीत।
बी.आर.चोपड़ा की फिल्मन नया दौर (1957) की लगभग पूरी आउटडोर शूटिंग भोपाल, बुदनी और होशंगाबाद के ग्रामीण इलाकों में हुई थी। बुदनी के पास ही ओ.पी. नैयर के लाक्षणिक टप्पा रिद्म के साथ कंपोज प्रसिद्ध गीत 'मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार’ (रफी-आशा) दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला के ऊपर फिल्माया गया था और उसे देखने को आसपास तमाम भीड़ इक_ा हुई थी। शैलेंद्र के तीसरी कसम की कहानी तो वैसे बिहार की है पर इसकी शूटिंग बिहार में न होकर मध्यप्रदेश के सागर के ग्रामीण इलाकों की है। पगडंडियों पर बैलगाड़ी चलाते राज कपूर को जो 'सजन रे झूठ मत बोलो’, 'सजनवा बैरी हो गए हमार’ और 'दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई’ गाते हुए दिखाया गया है, वे सभी गाने सागर के ग्रामीण अंचलों की खुशबू समेटे हैं। 'लाली-लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया’ यूं तो उत्तर बिहार का लोक गीत है पर इसका फिल्मांकन कच्चे मकानों वाले सागर के किसी गांव की गली का है।
गुलजार की किनारा (1977) के 'नाम गुम जाएगा चेहरा ये बदल जाएगा’ (भूपेंद्र, लता) का मांडू के खिलजी सुल्तानों के जहाज महल जैसे मशहूर इमारतों के बीच का फिल्मांकन आज भी अभिभूत कर देता है। जयप्रकाश चौकसे की फिल्म शायद (1979) की लगभग पूरी शूटिंग इंदौर में ही हुई थी। हालांकि इस फिल्म के मशहूर गीत 'मौसम आएगा जाएगा’ का एक बड़ा हिस्सा पुणे के पास स्थित राज कपूर के लोनी फार्म में शूट किया गया था। इस फिल्म का मन्ना डे का गाया लाजवाब गीत 'दिन भर धूप का पर्वत काटा, शाम को पीने निकले हम’ का फिल्मांकन महाराज यशवंत राव हॉस्पिटल, इंदौर के प्रांगण में हुआ था। कई हिंदी फिल्मों का फिल्मांकन मध्यप्रदेश के हिल स्टेेशन पचमढ़ी में हुआ है। 'थोड़ा सा रूमानी हो जाएं’ का छाया गांगुली, विनोद राठौड़ द्वारा पचमढ़ी की वादियों के बीच गाया शीर्षक गीत बहुत आकर्षित करता है। 'चांदनी रात भर जगाएगी’ भी पचमढ़ी के अंग्रेजों के जमाने के बंगलों के प्रांगण की पृष्ठभूमि में भास्कर चंदावरकर की लाजवाब रचना को चार चांद लगाती है। फिल्म तरकीब (2000) के मशहूर गीत 'किसका चेहरा’ (जगजीत सिंह, अलका याग्निक) में भी पचमढ़ी की वादियां नजर आती हैं। अशोक (2001) में जहां गीत 'रात का नशा’ भेड़ाघाट की पृष्ठभूमि में फिल्माया गया है, वहीं 'सन सननन’ में पचमढ़ी का अप्सरा जल प्रपात नजर आता है। फिल्म मुहाफिज (जिसकी शूटिंग भोपाल में हुई) की सभी गजलों की पृष्ठभूमि में भोपाल की पुरानी हवेलियों और सडक़ों को ल्मिाया गया है जिसमें पुरानी मशहूर गजल 'ऐ जज्बा ए दिल गर मैं चाहूं’ भी शामिल है। इसी प्रकार चर्चित फिल्म पीपली लाइव के कई गीत भोपाल, रायसेन, खुरई आदि स्थानों पर फिल्माए गए हैं। विशाल भारद्वाज की मकबूल (2004) की लाजवाब रचना 'तू मेरे रूबरू है’ में भोपाल के पास स्थित भोपाल के नवाबों की सैरगाह इस्लामनगर का लाजवाब चित्रण है। प्रकाश झा ने भी अपनी कई फिल्मों की शूटिंग भोपाल या उसके आसपास की है। राजनीति फिल्म के गीत 'भीगी सी भागी सी’ में भोपाल का बड़ा तालाब पृष्ठभूमि में कहीं-कहीं झलकता है। आरक्षण के 'अच्छा लगता है’ में भोपाल के मशहूर रेस्तरां विंड ऐंड वेव्स और भोपाल तालाब की पृष्ठभूमि सुंदर तरीके से फिल्माई गई है। इसी फिल्म के गीत 'रोशनी’ में भोपाल शहर के कई दृश्य आए हैं। प्रकाश झा की चक्रव्यूह का जनचेतना गीत 'महंगाई’ पचमढ़ी और होशंगाबाद के लोकेशंस पर है। फिल्म तेवर का भूमिका गीत महेश्वर में फिल्माया गया है। पान सिंह तोमर के कई गीतों की पृष्ठभूमि में भी चंबल के दृश्य उभरते हैं।
(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)