नई दिल्ली स्थित यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की करोलबाग शाखा में बहुजन समाज पार्टी के खाते में नोटबंदी के बाद जमा हुए 104 करोड़ रुपये पर प्रवर्तन निदेशालय की नजर पड़ते ही सियासी दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर चर्चा तेज हो गई है। यूनाइटेड बैंक की इसी शाखा में बसपा प्रमुख मायावती के भाई आनंद के खाते में 1.43 करोड़ रुपये जमा हुए। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियोंके मुताबिक नोटबंदी के बाद इन दोनों खाते में बड़े पैमाने पर पुराने नोट जमा कराए गए जिसमें 102 करोड़ रुपये 1000 के नोट के रूप में और बाकी 500 रुपये के नोट थे। प्रवर्तन निदेशालय ने दोनों खातों का बैंक से पूरा द्ब्रयौरा मांगा है साथ ही आयकर विभाग से जांच के लिए अनुरोध भी किया है। प्रवर्तन निदेशालय को राजनीतिक दलों को दिए गए चंदे का द्ब्रयोरा हासिल करने की वैधानिक शञ्चित नहीं है। इस खुलासे के बाद बसपा प्रमुख ने दावा किया कि उन्होंने जो कुछ भी किया नियम के तहत किया है। 104 करोड़ रुपये के बारे में मायावती ने कहा कि यह कार्यकर्ताओं द्वारा दिया गया चंदा था और उन्होंने नोटबंदी के फैसले के बाद इसे बैंक में जमा कराया। इस खुलासे के बाद से बसपा प्रमुख भले ही यह कहें कि नियमों के तहत यह पैसा जमा कराया लेकिन भाजपा को एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। एक अन्य घटनाफ्म में आयकर विभाग ने मायावती और आनंद कुमार के खिलाफ आयकर न देने के मामले में पांच याचिकाएं सुनवाई के लिए दोबारा सूचीबद्ध कर दी हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह कदम काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ये याचिकाएं विभिन्न व्यक्तियों की ओर दर्ज कराई गई हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में संकेत दिया था कि नोटबंदी के बाद उनका अगला निशाना बेनामी संपîिायां होंगी। प्रधानमंत्री के इस संकेत के बाद आयकर विभाग की ओर से नोटिस जारी किया जाना अहम माना जा रहा है। मायावती इससे पहले भी आय से अधिक संपîिा के मामले में जांच के घेरे में रही हैं। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मायावती के खिलाफ आय से अधिक संपîिा का मामला 1995 से 2003 के बीच का है। इस दौरान मायावती के आयकर रिटर्न और आमदनी में फर्क होने की वजह से जांच शुरू हुई। ताज कॉरिडोर मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की बेंच के एक आदेश को आधार बनाते हुए 2004 में सीबीआई ने उनके खिलाफ जांच शुरू की। 2007 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसे मायावती के खिलाफ कई सबूत मिले हैं। सीबीआई ने कहा कि मायावती की संपîिा 2003 तक 50 करोड़ के पार जा चुकी थी। एजेंसी ने 96 प्लॉट, मकान और बगीचों की भी जानकारी कोर्ट को दी। ये संपîिायां या तो मायावती के नाम पर थीं या उनके करीबी रिश्तेदारों के नाम पर। इस बीच मायावती आयकर विभाग में कानूनी लड़ाई लड़ती रहीं। बाद में आयकर विभाग की अपीलेट ट्रिद्ब्रयूनल ने उन्हें क्लीन चिट दे दी। ट्रिद्ब्रयूनल ने माना कि 1995 से 2003 के बीच आय से अधिक बताए जा रहे पैसे मायावती को बतौर उपहार मिले थे। ये उनके समर्थकों ने उन्हें दिया था। अगस्त 2011 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी ट्रिद्ब्रयूनल के फैसले पर मुहर लगा दी। मायावती सीबीआई की तरफ से दर्ज एफआईआर को रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ती रहीं। मायावती का दावा था कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दिया था। 2014 में कमलेश वर्मा नाम के शख्स ने मायावती के खिलाफ नए सिरे से एफआईआर की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। वर्मा ने कहा कि सीबीआई ने जो सबूत जुटाए थे, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। मायावती और सीबीआई ने इस मांग का विरोध किया। दोनों ने कहा कि इनकम टैक्स ट्रिद्ब्रयूनल पूरे मामले में मायावती को क्लीन चिट दे चुका है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस विरोध को दरकिनार करते हुए अप्रैल 2016 में याचिका को विस्तृत सुनवाई के लिए मंज़ूर कर लिया। यानी मायावती के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी या नहीं ये सुप्रीम कोर्ट को तय करना है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा के खिलाफ हुए इस नए खुलासे से सियासी पारा चढ़ गया है। मायावती कहती हैं कि चुनावी वादाखिलाफी और नोटबंदी के कारण हो रही हार से दुखी केंद्र की भाजपानीत नरेन्द्र मोदी सरकार के लोग प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर बसपा और उसके सर्वोच्च नेतृत्व की छवि खराब करने की कोशिश में लगे हैं। बसपा प्रमुख के अनुसार पार्टी ने नियमों के मुताबिक ही एकत्र सदस्यता शुल्क को एक 'नियमित प्रक्रिया’ के तहत हमेशा की तरह बैंक में जमा कराया है। मायावती के मुताबिक बड़े मुद्रा नोटों में सदस्यता शुल्क को रखने से धन लाने-ले जाने में आसानी होती है। वह खुद इस धनराशि का हिसाब-किताब करती हैं। चूंकि वह अगस्त, सितंबर और आधे नवंबर तक उत्तर प्रदेश में ही रहीं। इस बीच, आठ नवंबर को नोटबंदी का ऐलान हो गया। उसके बाद उन्होंने दिल्ली जाकर पूरे देश से आई सदस्यता शुल्क का हिसाब देखा और फिर उस धनराशि को बैंक में जमा कराया, इसमें कुछ गलत नहीं किया गया।
मायावती का अपना तर्क है। नियम के मुताबिक 500-1000 रुपये के पुराने नोट बंद होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियों को पुराने नोटों को बैंकों में जमा करने पर इनकम टैक्स नहीं लगेगा। आईटी एक्ट, 1961 के तहत 13 राजनीतिक दलों को टैक्स से छूट प्राप्त है। इसके अलावा राजनीतिक दल सूचना का अधिकार (आरटीआई) के दायरे में भी नहीं आते हैं। राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान 20 हजार रुपये तक के चंदे का हिसाब नहीं देना होता है। लेकिन 20 हजार से अधिक रुपये का हिसाब देना पड़ता है। साल 2013 में आई एडीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली 75 फीसदी रकम का स्रोत अज्ञात है। राजनीति से जुड़े जानकारों का मानना है कि इसी प्रावधान का फायदा उठाकर कई दल अपने कालेधन को सफेद कर सकते हैं। पिछले दस सालों में राजनीतिक दलों की आय में करोड़ों रुपये का इजाफा हुआ है। इसी साल एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2004 और लोकसभा चुनाव 2014 के बीच राजनीतिक दलों को मिले चंदे में 478 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भले ही नोटबंदी के बाद सरकार डिजिटल ट्रांजेक्शन पर जोर दे रही है लेकिन साल 2004 से 2015 के बीच हुए विधानसभा चुनावों में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को 2,100 करोड़ रुपये चंदा मिला, जिसका 63 फीसदी हिस्सा कैश से आया था। इसके अलावा पिछले तीन लोकसभा चुनावों में मिले फंड में 44 फीसदी हिस्सा कैश का ही था।
इसी साल मई में आई एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2004 के लोकसभा चुनाव में 38 राजनीतिक दलों ने 253.46 करोड़ रुपये चंदा एकत्र किया जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की कुल आय 1463.63 करोड़ रुपये रही। 2004 के लोकसभा चुनाव में 42 दलों ने हिस्सा लिया था जबकि 2014 में यह आंकड़ा बढक़र 45 हो गया। इसके अलावा 2009 के लोकसभा चुनाव में 41 राजनीतिक दलों ने चंदे के रूप में 638.26 करोड़ रुपये एकत्र किए। एडीआर के रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में चुनावी ट्रस्टों ने 177.55 करोड़ चंदे के रूप में कमाए हैं और उनमें से 177.40 करोड़ अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दिया है। इन ट्रस्टों से सबसे ज्यादा चंदा 111.35 करोड़ भाजपा को मिला है, कांग्रेस को 31.65 करोड़ फिर एनसीपी को 6.78 करोड़, बीजू जनता दल को 5.25 करोड़, आम आदमी पार्टी को 3 करोड़, इंडियन लोक दल को 5 करोड़ और अन्य दलों को कुल मिलाकर 14.34 करोड़ मिले हैं। गौरतलब है कि राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच चंदे के लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए 2013 में सरकार ने कंपनियों द्वारा चुनावी ट्रस्टों को बनाने की अनुमति दे दी थी। इस नियम के अनुसार इन ट्रस्टों को जितना भी चंदा मिलेगा, वह उसका 95 प्रतिशत राजनीतिक दलों को देंगे।