न ए साल में भारत के अपने पड़ोसी देशों से रिश्तों में तनाव की स्थिति रहेगी। पाकिस्तान के साथ आंशिक रूप से बातचीत हो सकती है। चीन और पाकिस्तान के रिश्ते और घनिष्ठ होंगे जिसका असर चीन-भारत संबंधों पर भी पड़ेगा। जिस तरह से रूस के साथ पाकिस्तान की नजदीकी बढ़ रही है उससे इस बात की भी आशंका है कि भारत के साथ उसके रिश्तों पर कुछ असर पड़ सकता है। जहां तक अमेरिका की बात है भारत के साथ उसके रिश्ते नए आयाम पर पहुंचेंगे। जिस तरह के वैश्विक परिदृश्य उभरने की उम्मीद है उसमें हमारे कूटनीतिज्ञों को काफी चौकन्ना रहना होगा। हमारे हुक्मरानों को भी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर हर जरूरी कदम उठाने के लिए तैयार रहने की जरूरत पड़ेगी।
इस साल उत्तर प्रदेश में विधान सभा के चुनाव होने हैं। इन चुनावों के बाद साल के मध्य में भारत और पाकिस्तान में सैन्य अभियान के महानिदेशक (डीजीएमओ) स्तर पर बातचीत हो सकती है। इस बातचीत में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर 2003 से जारी संघर्ष विराम को वापस लाने पर चर्चा हो सकती है। इस बात की उम्मीद है कि बॉर्डर की स्थिति पहले से बेहतर होगी। इतना होने के बाद भी दोनों देशों के बीच जारी तनाव में कोई खास कमी नहीं आएगी। इसका कारण है कि पाकिस्तान में फौज की स्थिति काफी मजबूत है। यहां जनरल कमर बाजवा को हाल ही में सेना प्रमुख बनाया गया है। उन पर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने काफी विश्वास जताया है। ऐसे में भारत की नजर जनरल बाजवा पर रहेगी। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत पूरी तरह से शुरू हो पाएगी इस में संदेह ही है।
चीन से भी तनाव बढ़ेगा। इसका कारण चीन का पाकिस्तान से घनिष्ठ होता संबंध है। चीन और पाकिस्तान के बीच आर्थिक कॉरिडोर मजबूत शक्ल अक्चितयार करता जा रहा है। इसका भारत ने चीन के समक्ष विरोध भी दर्ज कराया है। मगर इस पर तेजी से काम चल रहा है। चीन ने इस साल जिस तरह से जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध का विरोध किया है उसका असर अगले साल तक दिखेगा। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के विरोध की छाप भी जारी रहेगी। भारत-चीन के रिश्तों में समस्या की नई वजह दलाई लामा की वजह से भी आएगी। उन्हें अरुणाचल प्रदेश जाने की इजाजत दी गई है। यह चीन को खटक रहा है। चीन ने दलाई लामा की मंगोलिया यात्रा का भी विरोध किया था। चीन ने हाल ही में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड राहुल वर्मा की अरुणाचल यात्रा पर भी नाराजगी जताई थी। इतना ही नहीं चीन का अमेरिका से तनाव और बढ़ेगा। ताइवान मुद्दे पर इसकी शुरुआत हो चुकी है। दोनों के बीच द्विपक्षीय मुद्दे तो नहीं सुलझेंगे बल्कि और गड़बड़ पैदा होगी।
जिस तरह से पाकिस्तान की नजदीकी रूस से बढ़ रही है वह भारत के लिए चिंता का कारण हो सकती है। दोनों देशों के बीच इस साल सितंबर में पहली बार पाकिस्तान में संयुक्त सैन्य अभ्यास किया गया। इस बीच रूस ने पाकिस्तान को चार एमआईजी हेलीकॉप्टर देने का भी वादा किया है। इतना ही नहीं पाकिस्तानी सेना के तीनों अंगों के प्रमुख पहली बार मास्को गए। इस बदलते रिश्ते पर अमेरिका की भी नजर रहेगी।
नए साल में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभालेंगे। चुनाव अभियान और उसके बाद उन्होंने जिस तरह की बातें कही हैं उससे ऐसे आसार हैं कि अमेरिका के साथ हमारे रिश्ते वहुत ऊंचे स्तर पर पहुंचेंगे। कूटनीतिक साझेदारी और बढ़ेगी। दूसरी ओर यह देखने लायक होगा कि ट्रंप का नजरिया पाकिस्तान के प्रति कैसा रहेगा। उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की तारीफ भी की है। ट्रंप ने लेक्रिटनेंट जनरल माइकल टी क्रिलन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और जेम्स मैटिस को रक्षा मंत्री बनाया है। इन दोनों की पृष्ठभूमि फौज की है। ऐसे में यह देखना होगा कि इनका नजरिया पाकिस्तान के प्रति कैसा रहता है। अमेेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 600 मिलियन की सहायता रोक रखी है। वह चाहता है कि पाकिस्तान आतंकी गुट तालिबान और हक्कानी पर कार्रवाई करे। पर अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। इतना ही नहीं आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन के समय से ही पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं।
(प्रस्तुति प्रभात मिश्रा)
आवरण कथा / कूटनीति आकलन
ट्रंप की कार्यप्रणाली से हो सकता है नया नक्शा बने
हालांकि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति का इशारा भारत के लिए सकारात्मक कहा जा सकता है
विवेक काटजू
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप 20 जनवरी को अपना कार्यभार संभालेंगे। निर्वाचन के पश्चात उन्होंने कई टिप्पणियां की हैं विशेष रूप से अमेरिका चीन के संबंधों को लेकर जिससे यह प्रश्न उभरकर आए हैं कि क्या वो अमेरिका की विदेश नीति में बुनियादी फेरोबदल करेंगे। इससे अगर वो नई राह पर चलते हैं तो अमेरिका के संबंध चीन और रूस से विशेष रूप से बदल सकते हैं। ट्रंप ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान को लेकर कोई खास पक्ष नहीं रखा। ट्रंप की वैश्विक विदेश नीति का असर भारत पर पड़ सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका की मध्य एशिया नीति में विशेष रूप से अमेरिकी भूमिका इराक और सीरिया में अधिक सक्रिय होगा। लेकिन परमाणु हथियार के आधुनिकीरण को लेकर अमेरिका का क्या रुख होगा यह भी देखने वाली बात होगी।
जहां तक भारत के साथ अमेरिका के संबंधों की बात है तो उसमें इमिग्रेशन या फिर ट्रेड को लेकर जो बातें सामने आई हैं उससे भारत और अमेरिका के आर्थिक संबंधों पर असर पड़ सकता है। फिलहाल टं्रप का जो इशारा है वह भारत के लिए सकारात्मक कहा जा सकता है।
चीन के साथ भारत का जो वर्तमान कूटनीतिक परिदृश्य है वह आगे भारत के लिए चुनौती भरा हो सकता है। बीच-बीच में चीन के साथ कुछ न कुछ खटपट बातें चलती रही हैं। चीन अपने अमेरिकी संबंधों को प्राथमिकता देगा। इस समय चीन अमेरिकी विदेश नीति पर नजर गड़ाए हुए है। चीन और पाकिस्तान के संबंधों की साया का असर भारत पर पड़ा है और ये 2017 पर पड़ सकता है। चीन पाकिस्तान के साथ आर्थिक गलियारा योजना को दोनों देश आगे बढ़ाएंगे। भारत और चीन के बीच हो रहे व्यापार में बड़ा बदलाव होता नजर नहीं आता है।
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने साल 2015 में भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में बदलाव लाने की बड़ी पहल की थी। साथ ही इस बात की ओर इशारा भी किया कि मोदी सरकार भारत-पाकिस्तान के संबंधों को इतिहास को बदलना चाहती है। लेकिन पाकिस्तान के जो असल हुक्मरान हैं, वहां के फौजी जनरल, वे किसी प्रकार का बदलाव नहीं चाहते। पाकिस्तान आतंकवाद का दामन छोडऩा नहीं चाहता और जब तक आतंकवाद रहेगा तब तक भारत-पाक के बीच संबंध सुधर नहीं सकते। पाकिस्तान ने पठानकोट हमले के बाद जांच में सहयोग देने की बात कही थी। इसके लिए वहां की एक टीम भी भारत भेजी जिसमें आईएसआई का अधिकारी भी शामिल हुआ। लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। कश्मीर घाटी में बुरहान वानी की हत्या के बाद तो पाकिस्तान ने पूरा फायदा उठाने की कोशिश की। अब तो पाकिस्तान में जनरल वाजवा सेनाध्यक्ष बने हैं। लेकिन इनकी नियुञ्चित से पाकिस्तानी सेना के रुख से बड़ाबदलाव नजर नहीं आ रहा है। हाल की कुछ घटनाओं पर और नजर डालें जिसमें हमारे सैनिक शहीद हुए, उससे यह नहीं लगता कि संबंध सुधारने के लिए पाकिस्तान कोई बड़ा कदम उठाने जा रहा है। जहां तक भारत की अपनी रणनीति का सवाल है तो पाकिस्तान के साथ जो रुख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनाया है उसी राह पर हमें चलना चाहिए। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद की नीति को नहीं छोड़ता तब तक उससे बातचीत करने से कोई लाभ नहीं।
रूस के साथ जहां तक संबंधों की बात है तो भारत को उस पर नजर रखनी होगी। रूस का पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रति रुख बदल रहा है। इससे भारत की चिंताएं बढ़ सकती हैं। लेकिन रक्षा क्षेत्र में जो रूस और भारत के बीच संबंध है उसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। क्योंकि कुछ मुद्दों पर रूस का रुख साफ है। कुल मिलाकर आने वाले साल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को चौकन्ना रहना पड़ेगा। अमेरिका में हुए बदलाव का असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ न कुछ जरूर असर डालेगा।
(लेखक भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं
विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान डेस्क के प्रमुख भी रहे हैं)
(प्रस्तुति: कुमार पंकज)
आवरण कथा / आर्थिक आकलन
लंबे समय में नोटबंदी के नतीजे बेहतर ही निकलेंगे
सुषमा रामचंद्रन
वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार
वर्ष 2016-17 में देखें तो आर्थिक विकास की गति 7.6-7.7 फीसदी रही। नोटबंदी के चलते आने वाले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास की गति में खास फर्क नहीं आएगा। ज्यादा से ज्यादा यह 7.1-7.2 फीसदी रह सकती है।
विभिन क्षेत्रों को देखें तो नोटबंदी का असर अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रहेगा। मैन्युफैख्रिंग सेक्टर की बात करें तो नवंबर महीने में कार कंपनी मारुति ने कहा था कि नोटबंदी के चलते उस महीने उनकी बिक्री पर असर पड़ा था। लेकिन उस महीने के बाद मारुति की कार बिक्री में 8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। तमाम कारों की बिक्री अच्छी हुई। कार क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसके साथ बहुत सारे कलपुर्जों और अन्य सामान के छोटे-छोटे उद्योग जुड़े हुए होते हैं। यानी कारों की बिक्री मैन्युफैख्रिंग क्षेत्र की आर्थिक गति का महत्वपूर्ण मापदंड है।
अगर हम कृषि क्षेत्र की बात करें तो यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उसकी एक बड़ी वजह यह है कि कृषि क्षेत्र कैश आधारित है। नोटबंदी की वजह से पेश आई दिक्कतों में किसानों को रबी की फसल की बुआई में मुश्किल आई। बहुत सी जगहों पर गेहंू की बुआई देर से हो पाई। गेहंू की बुआई जितनी देर से होगी उसका दाना उतना ही कमजोर होगा। नतीजा यह होता है कि देर से बुआई करने पर उसकी पैदावार प्रभावित होती है। इसी प्रकार दूध उद्योग और सद्ब्रिजयों पर भी नोटबंदी का भारी असर देखने को मिल रहा है और मिलेगा। कृषि क्षेत्र पर नोटबंदी का असर देखने को मिलेगा। सरकार को इसपर कड़ी नजर रखनी होगी। यह क्षेत्र चरमराया तो काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। जहां तक सरकार बोल रही है कि उसने नोटबंदी जैसा कदम द्ब्रलैकमनी पर कमान कसने के लिए उठाया है तो यह बात तो भविष्य के गर्भ में है कि इससे द्ब्रलैकमनी पर कितना असर पड़ेगा। हालांकि लोग इससे काफी डर गए हैं। लगातार छापे पड़ रहे हैं। जहां तक बात डिजिटलाइजेशन की है तो उस संदर्भ में यह अच्छा कदम है। लेकिन पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन नहीं हो पाएगा। अगर 40 फीसदी भी हो जाए तो बड़ी बात होगी।
लेकिन मोबाइल क्षेत्र पर नोटबंदी का बड़ा असर होगा। वे लोग काफी उत्साही भी हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि कैशलेस इकॉनमी की वजह से हमारा मोबाइल अब हमारे लिए चलता-फिरता बैंक हो गया है। बैंक से जुड़ी तमाम जानकारियां अब हमारी मुट्ठी में हैं। जाहिर है कि इस वजह से मोबाइल क्षेत्र तेजी से तरक्की करेगा। लेकिन देश में पीओएस मशीनों की भारी दिक्कत है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। अगर किसी को कार्ड स्वाइप करवाना है तो मशीन होगी तो कार्ड स्वाइप होगा।
नोटबंदी जैसी बड़ी नीतियों के फैसले आम आदमी से लेकर तमाम लोगों को प्रभावित तो करेंगे ही। जैसे जब उबर टैक्सी आई थी तो ट्रांसपोर्ट जैसे बड़े क्षेत्र प्रभावित हुए थे। इसलिए नोटबंदी का प्रभाव पडऩा लाजिमी है। लेकिन यह एक बड़ा फैसला है और ऐसा नहीं है कि इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे।
जहां तक चुनाव से पहले खातों में 15-15 लाख रुपये आने की बात थी तो जनता प्रधानमंत्री की बात नहीं समझ पाई। प्रधानमंत्री के कहने का मतलब यह था कि विदेशों में भारत का इतना काला धन जमा है कि अगर वह भारत लाया जाए तो हर किसी के खाते में 15-15 लाख रुपये आ सकेंगे। जनता के बीच गलत जानकारी फैलाई गई। हालांकि अर्थशास्त्री कहते हैं कि काला धन वापस लाना बहुत मुश्किल काम है। लेकिन ऐसे सख्त नियम बनाए जा सकते हैं या कदम तो उठाए जा सकते हैं कि अब ऐसा न हो। जहां तक विदेशी निवेश की बात है तो उसमें कोई फर्क नहीं आया है। नोटबंदी का असर विदेशी निवेश पर इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि वह लेनदेन ऑनलाइन होता है, बैंक के जरिए होता है न कि कैश में। मौजूदा सरकार के समय विदेशी निवेश बढ़ा है। निवेशक नई सरकार आने का इंतजार कर रहे थे। जहां तक बात टैक्स की है तो वित्त मंत्री ने इशारा तो दिया है कि टैक्स का आम आदमी पर भार नहीं पड़ेगा लेकिन जब तक बजट नहीं आ जाता तब तक टैक्स की तस्वीर साफ नहीं हो सकती है।
(प्रस्तुति: मनीषा भल्ला)
आवरण कथा / समाजशास्त्रीय आकलन
परिवर्तन की लहर के बीच बढ़ा है तनाव
दीपांकर गुप्ता
पिछले वर्षों में देश ही नहीं दुनिया में व्यापक बदलाव हुए हैं। तकनीक ने तेजी से हमारी जिंदगी में जगह बनाई है और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य और कृषि से लेकर उद्योग धंधों तक तकनीक की छाप हर जगह दिखाई देती है। ऐसे में मानवीय श्रम की जगह सिकुड़ती जा रही है। दूसरी ओर यह भी सच्चाई है कि तकनीकी बदलाव का बड़ा हिस्सा शहरों तक सीमित है और गांवों में ऐसा बदलाव कम ही देखने को मिलता है। मोबाइल या टीवी से संबंधित बदलावों को छोड़ दें तो शहरी और गांवों की आबादी में असमानता बढ़ती जा रही है। इन्हीं मुद्दों पर हमने समाजशास्त्री दीपांकर गुप्ता से उनके विचार जाने।
हमारे देश की मुख्य समस्या अनौपचारिक और अनियमित अर्थव्यवस्था है जिन्हें हमारे श्रम कानूनों जो कि छोटी इकाइयों को बढ़ावा देते हैं के जरिए हटाना मुश्किल है। सभी स्तरों (विश्वविद्यालय और कॉरपोरेट सेंटर) ऌपर अनुसंधान एवं विकास की कमी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गैर कृषि अर्थव्यवस्था में तद्ब्रदील होने संबंधी दबाव को देख पाने की विफलता भी बड़ी समस्या है। हमारे देश में अनुसंधान एवं विकास की स्थिति बेहद खराब है। कंपनियां भी इस मद में पैसे नहीं खर्च करतीं। इन मुद्दों से इतर सार्वभौमिक स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ गुणवत्ता और नकदी की कमी का मुद्दा भी उतना ही महत्वपूर्ण है जिसके बिना काम चलना मुश्किल है। सवाल यह है कि सामाजिक तौर पर हमें क्या-क्या विकसित करने की आवश्यकता है? तो मेरा कहना होगा कि हमें कानूनी ढांचे और प्रशासनिक मानदंडों को युञ्चितसंगत और कारगर बनाने के साथ-साथ सिटीजंस चार्टर में पंजाब सरकार सुधार आयोग के द्वारा आई सिफारिशों को भी जगह देनी चाहिए। जहां तक अगर हम समाज की बात करते हैं कि हमारा समाज पिछले दशक में किस प्रकार से बदला है? इस सवाल का कारण यह है कि इन्ही वर्षों में सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया का जबरदस्त आगमन हुआ। मेरा मानना है कि पिछले दस वर्षों में गांव देहात और शहरों में जो परिवर्तन की लहर चली है उससे दोनों के बीच तनाव और बढ़ गया और असल मुद्दे अनसुलझे रह गए हैं। इससे बढ़ती अनिश्चितताओं और आकांक्षाओं के बीच भविष्य किसी एक के हाथ में नहीं रह गया है। हम न तो यहां हैं और न वहां हैं। इसके बावजूद हम हमेशा पुराने गांवों को पुनर्जीवित करने के बारे में बात करते रहे हैं जो अब हमेशा के लिए गायब हो गए हैं।
डिजिटल क्रांति के वक्त में अगर हम यह बात करें कि समाज और खासकर युवाओं पर इसका कैसा प्रभाव हो रहा है, कैसे इसने इन्हें प्रभावित किया है तो मेरा मानना है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी हैं परंतु यह आर्थिक विकास के चालक की बजाय आर्थिक विकास का लक्षण है। डिजिटल पैठ / निवेश के अंतर्गत विभिन्न संस्थाओं का भरोसा और साक्षरता की जबरदस्त आवश्यकता है। हमें दोनों ओर बहुत मजबूती की जरूरत है।