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नरम-गरम

कैशलेस का धर्म संकट
श‌िव शर्मा

सत्तर के दशक का हिंदी फिल्मों का हीरो जब रॉबिनहुड बना किसी अमीर सेठ का टेंटुवा दबा कर डायलॉग मारता था, 'तूने गरीबों को जीने नहीं दिया, हम तुझे न मरने देंगे न जीने।’ तब हॉल में सीटियां और चवन्नियां उछलती थीं। आज भी कमोबेश वही सीन है। जब रॉबिनहुड का नकाब पहनकर हमारे नेता गरजते हैं, 'अमीरों के दिन खत्म हुए, कालेधन का राज गया।’ गरीब अच्छे दिन गिनना प्रारंभ कर देते हैं और देशभक्ति के लिए तथा अमीरों के कंगाल हो जाने की लंबी प्रतीक्षा करने लगते हैं। यद्यपि अभी तक कालाधन कितना आया इसका हिसाब नहीं मिला है और बैंकों के सामने की लाइनें भी बदस्तूर जारी हैं।

कालेधन की समाप्ति को लेकर लोगों ने महान कष्ट उठाना सहर्ष स्वीकार किया। यहां तक कि शादियां कैंसिल कर डालीं, राशन में कटौती की और कई लोगों ने तो प्राण तक दे दिए। इसके बाद आया कैशलेस का नारा। एक प्रवचन देने वाले बाबा ने तो राजा भर्तृहरि का उदाहरण देकर बताया, 'धन की तीन गति होती है, भोग, दान या नाश। अत: यदि यह कैश की माया नष्ट हो रही है तो काहे का रोना। वैसे भी पैसा तो हाथ का मैल होता है। शास्त्रों में भी धन एवं स्त्री को ही पापों की जड़ बताया है।’

धन की बात निकली है तो मेरे मंदिरों के नगर में कैशलेस का धर्म संकट प्रारंभ हो गया है। यद्यपि मंदिरों में पीओएस मशीनें लगा दी गई हैं किंतु उनमें से कैश नहीं निकल रहा है। दान पेटियों में से कैश की कमी के कारण भगवान के दरबार की अर्जियां निकल रही हैं। मन्नतों की पर्चियां निकल रही हैं और पंडे-पुजारी इसे धर्म एवं शास्त्र विरुद्ध घोषित कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि भगवान के दरबार में कैशलेस चढ़ावा शास्त्रोक्‍त नहीं है। भोग में छप्पन प्रकार के मिष्ठान्न बनाने में भी बाधा आ रही है। प्रसाद में बनने वाले लड्डू भी अब कैश में नहीं पेटीएम से मिल रहे हैं। अब आप पहले स्मार्ट फोन यानी मोबाइल खरीदो। फिर क्रेडिट या डेबिट कार्ड बनवाओ या कोई ई कार्ड बनवाओ, तब जाकर भगवान का प्रसाद पाया जा सकेगा। अर्थात अब धर्म को भी डिजिटल बनाया जा रहा है। वैसे जिनके पास काला या सफेद कैश है, वे करोड़ों के नोट भजन मंडलियों और भगवान की निकलने वाली सवारी पर खूब लुटा रहे हैं। अर्थात कैशलेस को अब भगवान से भी दूर किया जा रहा है। श्राद्ध में किया जाने वाला पिंड दान भी कैश के बिना खतरे में पड़ गया है। क्वाृतक की आत्मा को जलेबी या हलवा पसंद था तो वह भी कैश में ही मिलता है। फिर आत्मा को शांति कैसे प्राप्त होगी? हमारे पूजा-पाठ में कैश को ही महत्वपूर्ण माना जाता है। अत: अब चारों तरफ कैशलेस का धर्म संकट मच गया है। उम्‍मीद है कि जल्दी ही बैंक और एटीएम कैश उगलना प्रारंभ कर देंगे। तभी जाकर कैशलेस का धर्म संकट खत्म होगा।

 

अकबर गाथा

अपने नए उपन्यास अकबर के लोकार्पण के वक्‍त 20 साल से ज्यादा इसके लिखने की तैयारी करने वाले लेखक शाजी जमां ने भावुक होते हुए कहा, 'उपन्यास की पहली आहट से जैसी प्रतिक्रिया मिलना शुरू हुई उससे जाहिर हुआ कि बादशाह अकबर की याद चार सौ बरस बाद भी हिंदुस्तान के दिल में जिंदा है।’ अमेजन पर प्री-बुकिंग के साथ सोशल मीडिया पर इस उपन्यास की चर्चा शुरू हो गई थी। शाजी जमा ने कोलकाता के इंडियन म्‍यूजियम से लेकर लंदन के विक्‍टोरिया एल्बर्ट तक के बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनाई गई तस्वीरों को जाना-समझा है। बादशाह और उनके करीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया है और अकबरनामा से लेकर मुंतखबुत्तवारीख, बाबरनामा, हुमायूंनामा और तज्रिातुल वाकयात जैसी किताबों का और जैन-वैष्णव संतों तथा ईसाई पादरियों की लेखनी का भी अध्ययन किया है। उपन्यास के आवरण पर अकबर की ढाल का असली चित्र है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, मुंबई में मौजूद है। राजकमल से प्रकाशित इस उपन्यास के लोकार्पण कार्यक्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार मुकुल केसवन और अशोक माहेश्वरी मौजूद थे।

नई पीढ़ी की खातिर

नई पीढ़ी को रवायत से जोडऩे और कला, साहित्य और संस्कृति की तरफ मोडऩे के लिए जश्न-ए-अदब पिछले पांच सालों से लगातार कला और साहित्य के साथ-साथ समाज की सेवा में लगा हुआ है। जश्न-ए-अदब पोएट्री फेस्टिवल में दो दिनों तक कविता, नाटक, मीडिया, फिल्म, उपन्यास, संगीत आदि कलाओं पर बात हुई। जावेद अख्‍तर, मुजक्रफर अली, टॉम ऑल्टर, कविता सेठ, अशोक चक्रधर, अशोक वाजपेई, अभिज्ञान प्रकाश, सईद नकवी, मंगलेश डबराल, ओम थानवी शमीम हनफी सहित कला और साहित्य जगत की कई जानी-मानी हस्तियों ने शिरकत की। जाने-माने पत्रकार कुलदीप नैयर ने शमां रोशन कर कार्यक्रम का आगाज किया। जावेद अख्‍तर को जश्न-ए-अदब अवॉर्ड 2016 से नवाजा गया। शंकर शाद ट्रस्ट को पासबां-ए-अदब दिया गया। एक शानदार मुशायरे में जावेद अख्‍तर, फरहत अहसास, खुशबीर सिंह शाद, शारिक कैफी, मनीष शुक्‍ल, कैसर खालिद, विशाल बाग, कुंवर रणजीत चौहान ने भाग लिया। टॉम ऑल्टर ने गालिब को मंच पर जैसे जिंदा कर दिया।

 

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