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रणनीतिकारों ने प्रचार को दिया नया रंग

इस बार के चुनावों में सभी सियासी दल अपना रहे नई-नई रणनीति
रै‌ल‌ियों का जोर भी कम नहीं

पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सभी सियासी दलों की सक्रियता बढ़ गई है। इस बार के विधानसभा चुनाव पिछले विधानसभा चुनाव से कुछ अलग हटकर भी हैं। सोशल मीडिया की जहां सक्रियता बढ़ी हैवहीं राजनीतिक दल कुछ नया करने में जुटे हैं ताकि मतदाताओं को लुभाया जा सके। ज्यादातर सियासी दल सोशल मीडिया पर सक्रिय ब्‍लॉगर्स के सहारे इस बार एक दूसरे को पटकनी देने में जुटे हैं। चुनाव आयोग की सख्‍ती के बाद सियासी दलों ने प्रचार की रणनीति भी बदली है। भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली से ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में प्रचार की रणनीति को कंट्रोल कर रहे हैं वहीं कांग्रेस भी दिल्ली से मॉनिटरिंग कर रही है। पंजाब में अकाली दल बादल और आम आदमी पार्टी स्थानीय स्तर पर रणनीति बनाने में जुटी हैं वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी नए विचारों के साथ जनता के बीच प्रचार कर रही है।

उत्तर प्रदेश में अगर समाजवादी पार्टी की बात करें तो मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव इस बार अमेरिकी रणनीतिकार और हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में पद्ब्रिलक पॉलिसी के प्रोफेसर स्वीव जार्डिंग की सेवाएं ले रहे हैं। जार्डिंग इस बार हाईटेक तरीके से प्रचार करने की रणनीति तो बना ही रहे हैं साथ ही चुनाव प्रबंधन के लिए उनकी टीम प्रदेश के सभी इलाकों में घूम रही है और मतदाताओं के बीच जायजा ले रही है कि किस तरह से उनका झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर हो। सपा लखनऊ के अलावा प्रदेश के दो और शहरों में वॉर रूम बनाकर काम कर रही है। सपा के वॉर रूम से जुड़े एक कार्यकर्ता के मुताबिक करीब पांच सौ करोड़ रुपये पूरे चुनाव पर खर्च करने की योजना है। जिसमें मुख्‍यमंत्री के विकास कार्यों की जानकारी देने के अलावा मतदाताओं को इस बात के लिए तैयार कराना है  कि आखिर अखिलेश यादव प्रदेश के कैसे उपयुक्‍त मुख्‍यमंत्री हैं।

बहुजन समाज पार्टी ने भी इस बार के चुनाव में प्रचार की रणनीति बदली है। पिछले कुछ समय से पार्टी प्रमुख मायावती लगातार मीडिया में बयान जारी कर रही हैं। चुनाव घोषित होने से पहले ही मायावती की प्रचार टीम ने हर दिन की रणनीति तैयार की है जिसमें केंद्र सरकार की नीतियों के साथ-साथ प्रदेश सरकार की खामियों को भी उजागर किया जा रहा है। सोशल मीडिया से दूर रहने वाली मायावती इस बार इस प्रबंधन का बखूबी इस्तेमाल कर रही हैं। मोबाइल एप और नुक्‍कड़ सभाओं पर इस बार बसपा का ज्यादा फोकस है। बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के अलावा पार्टी के कोषाध्यक्ष अंबेठ राजन प्रचार की रणनीति में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। पार्टी कितना पैसा खर्च करेगी इस रणनीति का खुलासा नहीं हुआ है।

भाजपा ने चुनावों के लिए राज्यों के हिसाब से प्रचार की रणनीति तैयार की है। पंजाब में पार्टी की प्रचार की रणनीति अलग है तो उत्तराखंड और गोवा में अलग। उत्तर प्रदेश पर सबसे ज्यादा पार्टी का फोकस है। इसके लिए चुनाव प्रबंधन की जिम्‍मेवारी पार्टी ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष जेपीएस राठौर को सौंपी है। राठौर बीएचयू से इंजीनियरिंग कर चुके हैं और सोशल मीडिया के साथ-साथ आक्रामक प्रचार की रणनीति के माहिर माने जाते हैं। भाजपा उत्तर प्रदेश के सभी 403 विधानसभा सीटों के लिए मोबाइल वीडियो वैन के जरिये मतदाताओं को लुभाने की तैयारी में है। इसके साथ ही लखनऊ में पार्टी के कंट्रोल रूम से इसका नियंत्रण किया जा रहा है। भाजपा के आईटी सेल ने पांच हजार युवाओं को ट्रेनिंग दी है जो कि सोशल मीडिया पर पार्टी का आक्रामक तरीके से प्रचार करेंगे।

कांगे्रस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस बार उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब और उत्तराखंड में पार्टी के प्रचार की रणनीति बनाई है। भले ही कांग्रेस के स्थानीय नेता प्रशांत का विरोध कर रहे हों लेकिन सच्चाई यह है कि पार्टी का पूरा प्रचार तंत्र इन्हीं की टीम पर टिका हुआ है। प्रशांत की टीम में तीन सौ से ज्यादा प्रोफेशनल लोग काम कर रहे हैं और अलग-अलग इलाकों में प्रचार की रणनीति बना रहे हैं। कांग्रेस की प्रचार रणनीति इस बार अलग-अलग इलाकों के लिए अलग-अलग है। प्रशांत की रिसर्च टीम के एक सदस्य के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ञ्चिलपिंग जिसमें वे जनता से वायदे करते नजर आ रहे हैं उस पर ज्यादा फोकस है। पार्टी के प्रचार पर होने वाले खर्च का सही आंकड़ा तो नहीं मिल पाया है लेकिन जिस तरीके से प्रचार पर खर्च किया जा रहा है उससे लगता है कि आंकड़ा कई सौ करोड़ का है।

 

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