उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की आहट सुनाई ही दी थी, राजनीतिक पार्टियां मिशन-2017 की तैयारियों में जुट रही थी कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सोशल मीडिया की अहम भूमिका होगी। उन्होंने कहा बूथ स्तर तक कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर एक्टिव रहें। शाह ने लगभग फरमान जारी करते हुए कहा कि विधायक को कम से कम 25 हजार और सांसद को कम से कम 50 हजार लाइक सोशल मीडिया पर मिलने चाहिए। अमित शाह का ऐसा कहना था कि टिकट के दावेदार सोशल मीडिया पर मजबूती से उपस्थिति दर्ज करवाने में लग गए। पांच राज्यों के इन विधानसभा चुनावों में सोशल मीडिया को प्रचार का मजबूत माध्यम माना जा रहा है। चुनावों में बढ़ती सोशल मीडिया की भूमिका और दिन-प्रतिदिन हाई टेक होते चुनावों के मद्देनजर अब सियासी पार्टियां भी परंपरागत स्टाइल से इतर चुनाव लडऩे की इच्छुक दिखती हैं। सभी प्रमुख दल चुनावी रणनीतिकारों से न केवल मदद ले रहे हैं बल्कि इस पर भारी भरकम बजट भी खर्च किया जा रहा है।
इस दफा समाजवादी पार्टी ने पार्टी का घोषणापत्र फेसबुक लाइव के जरिए जारी किया। फेसबुक लाइव के जरिए नेता सीधे मतदाताओं से जुड़ रहे हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी सबसे अधिक इसका प्रयोग कर रही है। इन दो राज्यों और गोवा में सोशल मीडिया के अधिक प्रभाव की एक वजह यह भी है। मुंबई से सोशल मीडिया कंसलटेंट केतन जोशी बताते हैं कि ये राज्य शहरी हैं। अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करते हैं तो वहां चुनाव के प्रचार की कमान नई पीढ़ी के हाथों में है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी सोशल मीडिया के जरिए जनता से मुखातिब हो रहे हैं। जोशी के अनुसार अखिलेश की कोशिश है कि वह अपने फेसबुक पेज के जरिए 20 से 45 वर्ष के मतदाताओं को संबोधित कर सकें।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो राजनीतिक विश्लेषक अलीमुल्लाह खान का कहना है कि नौजवान नेता फेसबुक, ट्विटर और गूगल हैंगआउट का खूब प्रयोग कर रहे हैं। वह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखें तो सोशल मीडिया पर रहना पहले स्टेटस सिंबल माना जाता था लेकिन अब यह जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। नौजवानों के हाथों में आए स्मार्ट फोन ने नेताओं को सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ाने के लिए मजबूर कर दिया है। अलीमुल्लाह खान बताते हैं कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में 150 सीटों की जीत के पीछे की वजह सोशल मीडिया का विशेष अहमियत के साथ प्रयोग माना जाता है। यहां तक कि अन्ना आंदोलन की सफलता की वजह सोशल मीडिया रहा है। खान के अनुसार कांग्रेस ने अपने नेताओं से कहा है कि चुनावों में जनता तक पहुंचने के लिए वे सोशल मीडिया का वरीयता से प्रयोग करें।
इसी प्रकार अगर हम पंजाब की बात करते हैं तो शिरोमणि अकाली दल अन्य पार्टियों के मुकाबले सोशल मीडिया पर इतना सक्रिय नहीं है। हालांकि रैलियां सभी पार्टियां कर रही हैं लेकिन वे सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त तरीके से मौजूद हैं। पंजाब में बदलाव यह है कि इस दफा के तिकोने मुकाबले में आम आदमी पार्टी भी मैदान में है। सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी की जबरदस्त सक्रियता है। चाहे प्रचार करना है या किसी को जवाब देना है आम आदमी पार्टी सोशल मीडिया का भरपूर प्रयोग कर रही है। दिल्ली के चुनावों में सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है। इसके बाद देखें तो पार्टी स्तर पर तो नहीं लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के दावेदार कैप्टन अमरिंदर सिंह सोशल मीडिया का प्रयोग बहुत कर रहे हैं। पार्टी ने विधानसभा अनुसार फेसबुक पेज बनाए हैं। आम आदमी पार्टी और भाजपा ने जनता के व्यापक वर्ग, खासकर युवाओं तक अपनी पहुंच बनाने के लिए सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया है और कर रहे हैं। इसके जरिए अब सभी पार्टियां अपने एजेंडा और विचारों का खूब प्रसार कर रही हैं। चुनावी रणनीतिकारों में चाहे वह प्रशांत किशोर हों, कानपुर से ताल्लुक रखने वाले और आईआईटी खडग़पुर से पढ़ाई कर बाद हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से पद्ब्रिलक पॉलिसी में डिग्री लेने वाले रजत सेठी, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और अमेरिकी चुनाव में हिलेरी िक्लंटन की टीम को अपनी सेवाएं दे चुके स्टी व जार्डिंग या बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्र के दामाद परेश मिश्र हों, सोशल मीडिया को तमाम रणनीतिकार चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा मानते हैं।