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गोवा का गणित अलग है

राष्ट्रीय मुद्दों की अपेक्षा यहां स्थानीय मुद्दों पर जोर रहता है
केजरीवाल आम सभा में

पांच चुनावी राज्यों में गोवा भी शामिल है। लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे दबंग राज्य के आगे बस कभी-कभार दिल्ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान ही थोड़ी बहुत सुगबुगाहट पैदा कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी अभी भी इस  छोटे से राज्य में सबसे आगे चल रही है। आम आदमी पार्टी कोशिश कर रही है कि वह कांग्रेस के अलावा एक और विकल्प बन कर मुकाबले को त्रिकोणीय कर दे। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जी-जान से इस कोशिश में लगे हुए हैं। गोवा के बारे में चुनावी विश्लेषकों का भी मानना है कि यहां राष्ट्रीय घटनाओं के बनिस्बत स्थानीय घटनाएं ही चुनावी मुद्दा बनती हैं। अब नई स्थिति में जैसे पंजाब आम आदमी पार्टी के हाथों फिसलता दिख रहा है वैसे ही है गोवा में भाजपा ने फिर बढ़त ले ली है। हालांकि इस बार भाजपा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक सुभाष वेलिंगकर के विद्रोह से भी दो-चार होना पड़ेगा। सुभाष वेलिंगकर संघ से 400 स्वयंसेवकों के साथ अलग हो गए हैं। अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को मिलने वाली मदद के मुद्दे पर उनके विचार प्रदेश सरकार से भिन्न थे और वह विद्रोह कर बाहर आ गए। लेकिन असल बात यह है कि गोवा में पार्टी के कामकाज के लिए कोई नियम तय नहीं थे। जब वेलिंगकर संघ प्रचारक थे तब भाजपा की कोर कमेटी की बैठक उनके घर पर होती थी। वह पार्टी की गतिविधियों में हस्तक्षेप करते थे और न सिर्फ अपना मत प्रकट करते थे बल्कि कोशिश करते थे कि उस पर अमल हो। गोवा के तत्कालीन मुख्‍यमंत्री मनोहर पर्रिकर न चाहते हुए भी कई बार उनकी बात मान लेते थे। असल दिक्‍कत तब शुरू हुई जब पर्रिकर रक्षामंत्री हो कर दिल्ली चले गए और प्रदेश संघ की कमान भी नए लोगों ने संभाली। संघ के नए पदाधिकारी ने वेलिंगकर के घर होने वाली बैठक बंद कर दी और उन्हें भाजपा की बैठक में आने से रोक दिया। सुभाष वेलिंगकर इससे नाराज हुए और उन्होंने खुद के लिए नया रास्ता बना लिया।

भाजपा को यह मुकाबला कितना भी सरल लग रहा हो लेकिन गोवा के पसंदीदा चेहरे मनोहर पर्रिकर के वहां न होने से थोड़ी परेशानी तो है ही। मौजूदा मुख्‍यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर पार्टी का चर्चित चेहरा नहीं बन सके हैं। यही वजह है कि पर्रिकर रक्षा मंत्रालय गोवा में बैठ कर संभाल रहे हैं। चुनाव की घोषणा के बाद वह लगातार गोवा का दौरा कर रहे हैं। भाजपा कोई चूक नहीं चाहती और इसलिए पार्टी ने अपने सबसे तेज-तर्रार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को गोवा का प्रभार सौंपा है। गडकरी वहां बैठक ले रहे हैं और लगातार पर्रिकर के संपर्क में हैं।

गोवा के चुनावी मुद्दों में विकास से ज्यादा स्थानीय मुद्दे हावी हैं। पणजी से छोराओ टापू तक पुल बनना, समुद्र तटों पर पर्यटकों की सुरक्षा, सार्वजनिक शौचालय जैसे मुद्दे वहां छाए हुए हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी ने शौचालय निर्माण और महिलाओं के लिए समुद्र तट के पास कपड़े बदलने की सुविधा को अपने घोषणा पत्र में जगह दी है। चर्च विमुद्रीकरण को भी एक मुद्दा बनाने पर जुटा हुआ है। चर्च का कहना है कि नकदी रहित लेनदेन से गरीबों पर असर पड़ेगा। गोवा चर्च की सामाजिक न्याय और शांति परिषद ने कैथोलिक मतदाताओं से कहा है कि रोटी, कपड़ा और मकान की सामाजिक नीति छोड़ कर सरकार स्मार्ट फोन, एटीएम और दूसरे डिजिटल माध्यमों पर जोर दे रही है। इस बयान पर भाजपा ने भी पलट वार किया है। गोवा में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति कम ही होती है। लेकिन जब सभी जगह यह हो रहा हो तो यह राज्य इससे अछूता कैसे रहे?

बॉक्‍स

 गोवा में इस बार 250 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमाएंगे। चालीस विधानसभा सीटों के लिए चार फरवरी को होने वाले चुनाव में दक्षिण गोवा से 131 और उत्तरी गोवा से 119 उम्‍मीदवार हैं। कलीनगुट विधानसभा सीट पर भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मुकाबला है। लेकिन ऐसे त्रिकोणीय मुकाबले कम ही बन रहे हैं। भाजपा ने 36 सीटों पर अपने उम्‍मीदवार उतारे हैं। जबकि दो सीटों पर वह निर्दलीय उम्‍मीदवारों को समर्थन दे रही है। कांग्रेस 37 और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी 16 सीटों पर लड़ेगी। इन सभी में आम आदमी पार्टी ने सबसे ज्यादा 39 प्रत्याशी चुनावी समर में उतारे हैं।

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