चुनाव की घोषणाओं के साथ ही दल बदलने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इसी के साथ एक और खेल शुरू होता है वह है बयानबाजी का। क्रिकेट की पिच पर आक्रामक रहने वाले नवजोत सिंह सिद्धू राजनीति की पिच पर भी जुबान से आक्रामक बल्लेबाजी करते हैं। जब वे भाजपा में थे तो कांग्रेस पर तेज हिट करते थे मगर अब जब वे पाला बदल कर कांग्रेस में आ गए हैं तो उनके बोल बदल गए हैं। पहले कांग्रेस उन्हें मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम लगती थी वह अब उन्हें घर लगने लगी है। जो भाजपा पहले मां लगती थी और जिसे कभी नहीं छोडऩे की बात करते थे वह अब उन्हें कैकेयी जैसी लगने लगी है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं रीता बहुगुणा जोशी के सुर भी बदल गए हैं। पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें सांप्रदायिक लगते थे पर अब विकास पुरुष लगने लगे हैं। इसी राज्य में स्वामी प्रसाद मौर्य जब तक मायावती की बसपा में थे भाजपा उन्हें अछूत लगती थी पर दल बदलते ही उनके बोल भी बदल गए।
2014 में अमृतसर से लोकसभा का टिकट काटे जाने के बाद वह भाजपा में घुटन महसूस कर रहे थे। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में लाकर भरपाई की कोशिश भी की पर इसका उन पर असर नहीं पड़ा। उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता तो स्वीकार की पर कुछ दिनों बाद उन्होंने वहां से इस्तीफा दे दिया। उनका कहना था कि वे पंजाब की कीमत पर कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। वे पंजाब में अकाली दल के साथ भाजपा के गठबंधन के खिलाफ थे। पहले उनके आम आदमी पार्टी में जाने की जोरदार चर्चा चली। मगर जब उन्हें मनमाफिक पद का भरोसा नहीं मिला तो उन्होंने यहां जाने का इरादा त्याग दिया। इसके बाद उन्होंने उस पार्टी का दामन थामा जिसे वह पहले जी भर के कोसते थे। यहां तक कि इसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी को तो उन्होंने 'पप्पू’ तक का नाम दे दिया था। मगर जब उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली तो उन्होंने अंग्रेजी में कहा, 'आई स्पोक टू राहुल भाई, ही एग्रीड’। वह जितना विरोध अकाली दल का करते थे उतना ही कांग्रेस नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी खफा रहते थे। उन्होंने कैप्टन पर परदे के पीछे बादल के परिवार की मदद करने का आरोप लगाया था और उनकी पत्नी और विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने तो कैप्टन को 'कुर्सी का भूखा’ तक कहा था। दूसरी ओर कैप्टन भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे। उनकी नजर में सिद्धू 'जोकर’ थे। उनका मानना था कि यहां लाफिंग मैटर नहीं है। यहां गंभीरता की जरूरत है। सिद्धू ने जब 'आवाज-ए-पंजाब’ बनाने की घोषणा की थी तो अमरिंदर सिंह ने उनकी पार्टी को 'तांगा पार्टी’ कहा था। कांग्रेस में जाने के बाद सिद्धू के प्रति उनके भी बोल बदल गए। सिद्धू के अनुसार यहां मेरी कोई निजी नहीं पंजाब की लड़ाई है। राजनीति में सब कुछ होता है। दुनिया में सबसे बड़ा रोग यह है कि लोग क्या कहेंगे पर मैं इसकी परवाह नहीं करता। सिद्धू यहीं नहीं रुकते। वह कहते हैं लोग कहते थे कि सिद्धू पार्टी को मां बोलता था। माता तो कैकेयी भी थी, जो वनवास भेजती थी। अपने जड़ से दूर करती थी, घर से बाहर भेजती थी। माता कौशल्या वापस करवा कर विश्वास का संदेश भेजतीं थीं। आप तय करो कौशल्या कौन है और कैकेयी कौन।
दूसरी ओर कांग्रेस परिवार से आने वाले और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा और बेटी रीता बहुगुणा जोशी ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया। विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं तो रीता बहुगुणा जोशी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष। रीता जब कांग्रेस में थीं तो इनकी नजर में भाजपा ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी सांप्रदायिक थे। इनका विकास में नहीं तथाकथित राष्ट्रवाद में विश्वास था। पर जैसे ही उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली मोदी के रूप में उन्हें उत्तर प्रदेश का विकास करने वाला दिखाई देने लगा। सर्जिकल स्ट्राइक पर तो उन्होंने तारीफों की झड़ी लगा दी। इनसे पहले उनके भाई विजय बहुगुणा आठ विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे। उन्होंने तभी ऐसे संकेत दे दिए थे कि देर-सबेर रीता बहुगुणा भी भाजपा में आ जाएंगी।
इसी तरह स्वामी प्रसाद मौर्य जब बसपा में थे तो उन्होंने एक मार्च 2014 को चंदौली में कहा था कि मोदी जैसे नेता ठेले खोमचे में घूमकर अपना जनाधार बनाने का प्रयास कर रहे हैं। बसपा इन्हें औकात बता देगी। उन्होंने मोदी और सपा नेता मुलायम सिंह यादव को एक बताते हुए कहा था दोनों नेता सांप्रदायिक भावनाएं भडक़ा कर लाशों की राजनीति कर रहे हैं। लेकिन जब वे भाजपा में शामिल हुए तो उनके सुर भी बदले दिखने लगे। प्रधानमंत्री का नोटबंदी का फैसला ही नहीं हर कदम उन्हें उचित लगने लगा।
दलबदल की सबसे ताजा घटना उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार के मंत्री और कांग्रेस के दलित चेहरा यशपाल आर्य का भाजपा में शामिल होना है। माना जा रहा है कि भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस का दलित वोटों का गणित बिगड़ सकता है। इसी राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सतपाल महराज तो पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं अब उनकी पत्नी अमृता रावत भी इस पार्टी में शामिल हो गई हैं। ऐसे में देखना है कि इन राज्यों में होने वाले चुनावों में इन नेताओं और इनके बदलते बोल का क्या असर पड़ता है। इनमें से अधिकांश विधान सभा चुनाव में अपना भाग्य भी आजमा रहे हैं।
नवजोत सिंह सिद्धू
पहले:- हे राहुल बाबा, स्कूल जाओ स्कूल। और स्कूल में जाकर पढऩा सीखो। राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह में फर्क सीखो।
बाद में:- मैंने राहुल भाई से बात की। वह राजी हैं। राजनीतिक भाषणों में ऐसा होता है। मुझे भी काफी कुछ कहा गया है।
पहले:- पप्पू प्रधानमंत्री है कांग्रेस का। कोई मजबूर प्रधानमंत्री ईमानदार नहीं हो सकता। मुझे तो शक है कि सरदार भी है कि नहीं। सरदार होगा, तो असरदार नहीं होगा। लोग कहते हैं कि अर्थशास्त्री हैं, मैं कहता हूं कि व्यर्थशास्त्री हैं।
बाद में:- राहुल गांधी का मैंने कोई नाम नहीं लिया था। पहले वालों (मनमोहन सिंह) का नाम लिया था। अब मैं कांग्रेस में हूं, आलाकमान का जो आदेश होगा उसे मानूंगा। किसी के अंदर भी काम करने के लिए तैयार हूं।
पहले:- कांग्रेस की मंडी बड़ी नशीली है। इस मंडी में सभी ने पी ली है। पार्टी मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम हो गई है।
बाद में:- मैं जन्मजात कांग्रेसी हूं। मेरे पिता कांग्रेस में रहे हैं। एमएलए और एमएलसी रहे हैं। मैं घर वापस आ गया हूं।
स्वामी प्रसाद मौर्य
पहले:- सांप्रदायिक भावनाएं भडक़ा कर लाशों की राजनीति करते हैं भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी। ये लाशों की ढेर पर चढ़ कर देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं।
बाद में:- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के फैसले का जनता स्वागत कर रही है। विपक्षी संसद इसलिए नहीं चलने दे रहे हैं कि वहां पर उनको इसका माकूल जवाब मिलेगा।
रीता बहुगुणा जोशी
पहले:- जेएनयू का प्रकरण पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा आरएसएस और भाजपा का खेल है। जिस तरह कन्हैया को फंसाने की कोशिश की गई और झूठा केस बनाया गया, इससे स्पष्ट है कि वे आरएसएस की विचारधारा को शिक्षण संस्थानों में फैलाना चाहते हैं।
बाद में:- विगत दिनों देश में जो घटनाएं हुईं उनसे मैं क्षुब्ध हूं। सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय जनता पार्टी के साथ सेना के लिए भी बड़े सम्मान की बात है। कांग्रेस इस बारे में छोटी जुबान बोल रही है। पार्टी द्वारा खून की दलाली की बात कहना गलत है।
पहले:- जिन युवाओं ने विकास के नाम पर इस देश में मोदी को बिठाया वे ठगा महसूस कर रहे हैं। अपने ही तरह की राष्ट्रवाद लाने की कोशिश हो रही है।
बाद में:- उत्तर प्रदेश को सही दिशा में ले जाना है। विकास की दिशा में ले जाना है तो यह मोदी जी और भाजपा के अलावा किसी से संभव नहीं है।