जयपुर साहित्योत्सव में इस बार हिंदी की एक प्रसिद्ध कविता पंक्ति याद आ रही थी, 'फूल नहीं रंग बोलते हैं।’ इस बार साहित्योत्सव में संघ ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की। पर कुल मिला कर लेखकों की दुनिया प्रतिरोध, लेखकीय स्वतंत्रता और लाल रंग के प्रति अपना रुझान दिखा रही थी। उद्घाटन सत्र में अमेरिकी कवयित्री ऐन वाल्डमैन ने कल्पनाशक्ति के विरुद्ध हो रहे हमलों से अपनी लड़ाई घोषित कर दी और गुलजार जैसे नाजुकमिजाज शायर को भी यह कहना पड़ गया, 'मुझे ऊंची कुर्सी पर बैठने से खौफ होता है जिसमें पांव जमीन पर नहीं लगते। कलम की स्याही को सूखने से बचाना है तो पांव जमीन से जुड़े रखो।’
वर्ष 2008 में 60 वक्ताओं और 7000 श्रोताओं से शुरू हुआ जयपुर लिट फेस्ट अपने दसवें जन्मदिन तक आते-आते एक साहित्यिक महाकुंभ में बदल चुका है। पिछले वर्ष 310 वक्ताओं और 3,30,000 श्रोताओं ने इस महाकुंभ में हिस्सा लिया था, इस बार यह संख्या बढ़ी ही है। इस बार मुख्य संबोधन दो कवियों को देने थे। फिल्म और साहित्य दोनों जगहों पर समान रूप से सक्रिय गुलजार ने हिंदी और उर्दू में बिना किसी अंग्रेजी अनुवाद के शायराना अंदाज में अपनी बात कहने का साहस दिखाया। सभी ने जिंदगी चूल्हे पे रखी है, न पकती है न गलती है, पंक्तियों के साथ उन्होंने रचनात्मकता को हांडियों से बाहर आने के लिए मचलती भाप के रूप में देखना चाहा। उनका यह सुझाव अच्छा था कि हर साल किसी एक भारतीय भाषा को इस साहित्योत्सव के केंद्र में रखा जाए। पूर्वोत्तर भारत में इन दिनों लिखी जा रही कविता की उन्होंने तारीफ की। अमेरिकी कवयित्री ऐन वाल्डमैन ने ट्रंप के जबरदस्त विरोध का जिफ् कर नाटकीय शैली में कविता पाठ किया। इस बार साहित्योत्सव में ऋषि कपूर 'खुल्लम खुल्ला’ अवतार में सक्रिय थे। अपनी आत्मकथा खुल्लम खुल्ला में वह यह भी स्वीकार कर चुके हैं कि कभी अवॉर्ड पाने के लिए उन्होंने तीस हजार की घूस दी थी। साहित्य और फिल्म के रिश्ते में पैसे की उपस्थिति को नया, दिलचस्प और कुछ मायनो में हास्यास्पद अर्थ दिया लेखक और अभिनेता मानव कौल ने। उन्होंने हिंदी लेखक विनोद कुमार शुक्ल को अद्भुत लेखक बताते हुए कहा कि उन जैसी प्रतिभा को मर्सिडीज कार में घूमना चाहिए था। क्या हिंदी भाषा मर रही है इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर कोई भाषा मर रही है, तो उसे मरने देना चाहिए। लेकिन हिंदी भाषा लिट फेस्ट में जीवित और पूरे जोश में दिख रही थी। फेस्टिवल आयोजनकर्ताओं में से एक अंग्रेजी लेखिका नमिता गोखले उत्सव के स्वागत भाषण में कुछ पंक्तियां हिंदी की भी बोलीं।
इस बार लिट फेस्ट का प्रमुख विवाद यह भी था की संघ से जुड़े लेखकों को मंच क्यों दिया जा रहा है? वैसे बुलाए गए लेखकों में अधिकांश वामपंथी और विद्रोही थे। हिंदी के एक सुपरिचित लेखक ने फेस्ट से पहले एक विश्लेषण में दक्षिणपंथी लेखकों को मंच देने से ज्यादा बड़ी समस्या लिट फेस्ट के प्रमुख स्पॉन्सर जी टीवी की विचारधारा और प्रसारण की राजनीति के बारे में बात की। हाल ही में नब्बे साल की उम्र में दिवंगत हुए अंग्रेजी माक्र्सवादी लेखक जॉन बर्जर को जब बरसों पहले प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार मिला था, तब उस पुरस्कार के स्पॉन्सर को मजदूरों के शोषण से पैसा कमानेवाली कंपनी बता कर पुरस्कृत लेखक पर हमला किया गया था। लेकिन लेखन की दुनिया को जितना मर्जी ग्लैमर से जोड़ दीजिए, लेखक अपने मूल स्वभाव प्रतिरोध से ही जुड़ा रहेगा। इस बार भी जयपुर लिट फेस्ट ने यही बात साबित की।
एक सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने देश से आरक्षण समाप्त करने की बात कह कर जैसे भारतीय राजनीति के मधुमक्खी के छक्ति को छेड़ दिया। वैद्य के इस बयान के बाद आरएसएस और भाजपा को अपने राजनीतिक विरोधियों की आलोचनाओं के डंक झेलने पड़े। आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में वैद्य के इस बयान के गहरे प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। दूसरे दिन बीस जनवरी की शाम संघ के दो बड़े नेताओं सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य का 'ऑफ सेफ्रन एंड संघ’ विषय पर सत्र था। सत्र के दौरान दोनों ही नेताओं ने हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र,
सेक्यूलरिज्म, तीन तलाक, वामपंथी असहिष्णुता, वर्ण व्यवस्था जैसे कई विषयों पर अपने विचार खुलकर रखे लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर मनमोहन वैद्य के बयान ने राजनीतिक हलके में बवंडर खड़ा कर दिया। बात शुरू हुई सच्चर कमेटी और मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने से लेकिन जा पहुंची जातीय आरक्षण के मुद्दे तक। मुसलमानों को आरक्षण देने के सवाल पर वैद्य ने कहा कि जाति विशेष में पैदा होने के कारण अजा-जजा को समान अवसरों से वंचित रखकर इनके साथ अन्याय हुआ था। उनको अन्य जातियों के समकक्ष लाने के लिए संविधान में शुरू से ही आरक्षण का प्रावधान था। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भी कहा था कि किसी भी राष्ट्र में लंबे समय तक आरक्षण का रहना ठीक नहीं है। जल्द इसे समाप्त कर समान अवसर देने का समय आना चाहिए। आरक्षण के बदले सब को समान अवसर दिए जाने चाहिए। हालांकि इसके कुछ घंटे बाद एक प्रेस कांफ्रेस में संघ के इन नेताओं ने एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण का समर्थन करते हुए डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की लेकिन तब तक बात हाथ से निकल चुकी थी। वैद्य के इस बयान से बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी भाजपा को नुकसान होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ों पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है। लिट फेस्ट में संघ के नेताओं को सुनने के लिए खुद राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष अशोक परनामी और कुछ मंत्रियों के साथ श्रोताओं में मौजूद थीं।
नरेन्द्र कोहली को फ्रंट लॉन के प्रतिष्ठित सभागार में बोलने का चौंकाने वाला अवसर दिया गया। हालांकि गंभीर कार्यफ्मों की कमी नहीं थी। हिंदी लेखिका मृणाल पांडे ने भारतीय अंग्रेजीदां नारीवादियों पर अच्छी चोट की जो सिगरेट पीते हुए बीड़ी पीती आम महिलाओं की सजावटी उपस्थिति से खुश रहती हैं और उनकी दुनिया को समझती नहीं हैं। अमेरिका की बीट कविता और गिंसबर्ग पर बातचीत हो या कैरेबियन कवियों हचिंसन और व्लादिमीर लूसीयन से तिशानी दोषी की बातचीत हो, ये अवसर दुर्लभ हैं साहित्य अनुरागियों के लिए। फेस्टिवल में एक विदेशी डेलीगेट ने सही कहा कि जयपुर लिट फेस्ट में युवा वर्ग की बड़ी संख्या में उपस्थिति एक सुखद अनुभव है। मैन बुकर प्राइज पाने वाले लेखकों से उनकी किताब पर हस्ताक्षर कराते युवा साहित्य प्रेमियों की कतार देखना सुखद अनुभव था। सद्गुरु जग्गी वासुदेव लिट फेस्ट के एक नायक साबित हुए। वह इनर इंजीनियरिंग के प्रवक्ता हैं पर पत्रकारों से बातचीत में जलीकट्टू विवाद में ज्यादा उलझे रहे। पशु क्रूरता के सवाल पर उनका कहना था कि मांसाहार के लिए पहले उन्हें मारना बंद करो। आध्यात्मिक लेखक के रूप में मशहूर योगी वासुदेव के अनुसार इस बात को रेखांकित न किया जाए कि हम खराब समय में जी रहे हैं क्योंकि मानवता के इतिहास का यह सर्वश्रेष्ठ काल है। यह अलग बात है कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना है। जाहिर है योगी के इस उल्लसित आशावाद से अनेक निराशावादी लेखक सहमत नहीं होंगे। सुपरस्टार रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या ने अपने संस्मरणों की पुस्तक के कार्यफ्म की शुरुआत से पहले जलीकट्टू प्रथा के समर्थन में तमिल बोलना जरूरी समझा। आखिरी दिन बिना पूर्व घोषणा के तसलीमा नसरीन पहुंचीं और समान नागरिक संहिता, महिला अधिकारों पर बात करते हुए ममता बनर्जी को नकली सेक्युलर कहा। जयपुर लिट फेस्ट से अपना संदेश बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचाया जा सकता है यह सभी समझ गए हैं। पर डिग्गी पैलेस के सुंदर माहौल को बचाए रखने के लिए श्रोताओं की भीड़ को भविष्य में नियंत्रित करना पड़ेगा।
(साथ में जयपुर से कपिल भट्टï)