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एक गुमनाम संगीतकार

संगीत सरिता
पंकज राग

राजस्थान में सुजानगढ़ के रहने वाले तथा कई वाद्यों और कथक के उस्तााद संगीतकार हनुमान प्रसाद भी पांचवें दशक का ख्‍याति प्राप्त नाम था। गायिका गीता दत्त को पहला मौका देने के कारण भी उनका नाम हिंदी फिल्म-संगीत के इतिहास में चिरस्थाई रहेगा। हनुमान प्रसाद अकसर पंडित गौरीशंकर की कथक नृत्यशाला में जाया करते थे जो दादर की हिंदू कॉलोनी इलाके में था। इसकी ऊपरी मंजिल पर गीता दत्त रहती थीं। हनुमान प्रसाद को एक बार गाना गाती हुई गीता की आवाज आई। उससे प्रभावित हो कर वह दौड़ते हुए ऊपर पहुंच गए। हनुमान प्रसाद ने उनका गाना सुना और गीता के पिता देवेन्द्र राय चौधरी से आग्रह किया कि वह गीता को भक्त प्रहलाद (1946) के एक कोरस में गाने की अनुमति दें। हालांकि गीता को एक ही पंक्ति गानी थी पर इस एक पंक्ति ने एस.डी. बर्मन को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने चंदूलाल शाह को मना कर गीता के स्वर में 'मेरा सुंदर सपना बीत गया’ रिकॉर्ड किया और गीता रातों रात मशहूर हो गईं।

फजली ब्रदर्स की चौरंगी (1942) में हनुमान प्रसाद का भी संगीत था। वैसे इस फिल्म का विशिष्ट आकर्षण काजी नजरुल इस्लाम का गाना 'चौरंगी है ये चौरंगी’ था। इसमें उनके गीतों की उन्हीं के द्वारा बनाई गई धुनों का समावेश था। इस फिल्म में पारंपरिक गजल शैली में अनीस खातून के स्वर में 'वो जब से आए’ का भी अपना ही आकर्षण था। हनुमान प्रसाद की शास्त्रीय संगीत  पर अच्छी पकड़ थी। फिल्म इंडिया के संपादक बाबूराव पटेल द्वारा निर्मित द्रौपदी (1944) के कहरवा ताल पर कंपोज किए 'शीतल चांदनी खिली’ (सुशीला रानी) और 'चमकत है अंग सांवले सुरंग रंग’ (सुशीला रानी) की शास्त्रीय संरचना वाले गीत इसके उदाहरण हैं। राग भूप पर आधारित 'कौन बगिया में’ (सुशीला रानी) को हनुमान प्रसाद ने गजल शैली में मुरकियों के बहुल प्रयोग के साथ एक उल्लेखनीय रचना बना दी है। गाली (1944) के मुख्‍य संगीतकार हनुमान प्रसाद थे। सज्जाद ने इस फिल्म में मात्र तीन गीत पर काम किया था। गाली फिल्म के ही एक गीत 'आह जले दिलों ने ली, शोले उठे जहान में’ (निर्मला-करन दीवान) को बहू-बेटियां (1946) में भी शामिल किया गया। सज्जाद की कई वाद्यों को बजाने में महारत देखकर हनुमान प्रसाद ने उन्हें अपना सहयोगी बनाकर मौका दिया था। दोस्त फिल्म में सज्जाद को बतौर संगीतकार पहला स्वतंत्र अवसर देने के लिए हनुमान प्रसाद ने ही शौकत हुसैन से सिफारिश की थी। भक्त प्रहलाद (1946) का शमशाद का गीत 'क्‍यूं दूर हुआ मुझसे मेरी आंखों का तारा’, जीना सीखो (1946) का राजकुमारी का गाया 'जब उन्स न हो दिल में, इंसान हुए तो क्‍या’ नई मां (1946) का विश्वयुद्ध में निर्मित परिस्थितियों पर कुठाराघात करता 'आया आया कंट्रोल का जमाना’ (समूह गीत) और स्वयं उनके निर्देशन में बनी फिल्म रसीली (1946) के उनके द्वारा लिखित 'आगाज चला अंजाम चला, वह रोता हुआ नाकाम चला’ (नारायण, मुकेश) और 'दिल मुझको जलाता है, मैं दिल को जलाती हूं’ (रफी, शमशाद) उनके उल्लेखनीय गीतों में शुमार किए जा सकते हैं। हिप-हिप हुर्रे (1948) में उन्होंने कुछ अच्छे हास्य गीत भी कंपोज किए जिनमें पैरोडी गीत 'एक दिल तेरा एक दिल मेरा’ (राजकुमारी, दुर्रानी, जोहरा, साथी) अच्छा चला था। मिडिल फेल (1948) के गीत कुछ खास न थे पर चिलमन (1949) में उन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ गाने कंपोज किए। एक तरफ रफी, मुकेश के स्वर में 'जले जलाने वाले हमको जैसे मोमबत्ती’ जैसी फडक़ती कव्वाली कंपोज कर दोनों को दूसरी बार एक साथ गवाकर उन्होंने इतिहास रचा। वहीं दूसरी तरफ रफी के स्वर में कहरवा ताल में धीर, गंभीर गीत 'जहे किस्मत तेरी महफिल में जो पैगाम आया है’ और 'जब याद किया हम आ भी गए’ तथा जोहरा के स्वर में 'आज किसी ने छेड़ दिए हैं, दिल के तार हमारे’ जैसी लाजवाब कंपोजीशंस भी उन्होंने दीं। सन 1949 में चिलमन फिल्म ही जन्नत नाम से फिर से रिलीज हुई। चिलमन के दस गीतों के अलावा समूह गीत 'नूर का जलवा आंखों में है’ तथा कल्याणी के स्वर में 'फरियाद करूं किससे मैं लूं किसका सहारा’ भी शामिल थे। मधुबाला, महिपाल अभिनीत सोहराब मोदी निर्देशित दौलत (1949) में भी संगीतकार के रूप में हनुमान प्रसाद को ही चुना गया था और इस फिल्म में हनुमान प्रसाद ने 'तुम एक नजर देख चुके, एक नजर और’ (जोहरा, शंकर दासगुप्ता) एवं 'दिल खाकर चोट जुदाई की कुछ कर न सका’ (शंकर दासगुप्ता) जैसी खूबसूरत धुनें दी थीं। अपनी छाया (1950) में उन्होंने रिदमप्रधान रचना 'ओ काले-काले बादल’ के लिए शमशाद के साथ मुकेश का स्वर भी लिया था। पर अपनी प्रतिभा के बावजूद दशक के मोड़ पर आई नई संगीत धाराओं की बाढ़ में हनुमान प्रसाद अन्य कई संगीतकारों की ही तरह टिक नहीं सके। सौदागर (1951) में सी. रामचंद्र की धुनों के सामने उनकी कंपोजीशंस फीकी रहीं। यूं तो वह सातवें दशक तक मौजूद रहे पर मात्र एक-दो फिल्मों के साथ। उषा किरण (1952) के 'ऐ चांद तू न नजर लगाना’ (अमीरबाई, दुर्रानी) या जोहरा और राजकुमारी के अन्य गीत तथा मुराद (1961) का बेहद सुंदर राग भोपाली पर आधारित कोरस के सुंदर आलाप और वॉयलिन के धीमे आरंभिक प्रयोग से शुरू होकर अंत तक तीव्र रवानगी के अलंरण से सजा 'मदीने के दाता हमें अब बचा लो’ (सुमन) के बावजूद नई संगीत-शैलियों और नए संगीतकारों के सामने उनके नाम के साथ यादें ही बची रहीं। हनुमान प्रसाद अपने अंतिम वर्षों में नृत्य-शिक्षा तथा सांई बाबा की आराधना में व्यस्त रहे। सन 1972 में मुंबई में उनका निधन हुआ।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)

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