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'रईस’ से पहले, 'काबिल’ बनो

तमाम विवादों को दरकिरनार कर रईस में किंग खान ने बदला अपना अंदाज तो ऋतिक ने बनाया नया रास्ता
शाहरुख खान

दंगल ने संकेत दिया कि नोटबंदी के हाहाकार से मुंबइया फिल्म उद्योग उबर गया है। बॉक्‍स ऑफिस ने दोनों हाथों से रुपये बटोरे। लेकिन यदि हाहाकर

फैक्‍टर ही खत्म हो जाए तो भला वह बॉलीवुड कैसा। पहले ऋतिक रोशन और आमिर खान की तनातनी के चटपटे किस्से फिर किंग खान की मुंबई से दिल्ली रेल यात्रा। अपनी फिल्म के प्रदर्शन के मौके पर। प्रचार का यह तरीका शाहरूख ने बहुतपहले सोच लिया था, फिल्म की रिलीज तारीख से भी बहुत पहले। पच्चीस साल पहले भी शाहरूख दिल्ली से मायानगरी मुंबई ऐसे ही पहुंचे थे। इन पच्चीस सालों में बहुत कुछ बदल गया, उनके मुंबई जाने पर वडोदरा में भीड़ बेकाबू नहीं हुई थी, न एक प्रशंसक अपने पसंदीदा सितारे को देखने के लिए 'जन्नत’ पहुंच गया था। इन 25 सालों में शाहरूख का अंदाज भी बदल गया। कंधे पर स्वेटर डाले, बांहे फैलाए शाहरूख काजल से गहरी की गई आंखों तक पहुंच गए हैं। अपनी पुरानी फिल्म दिलवाले को वह अपनी छवि के अनुरूप सफलता नहीं दिला पाए थे। लेकिन उन्हें अपने स्टारडम पर अभी भी पूरा भरोसा है शायद यही वजह रही कि गुजरात के एक गैंगस्टर पर बनी फिल्म, जिस पर आरोप लगे कि वह हिंदुओं के एक कातिल की कहानी पर बनी फिल्म है, के बावजूद वह विचलित नहीं हुए। न उन्हें यह फिफ् सताई कि ऋतिक रोशन अपनी सेमी थ्रिलर के साथ उनका मुकाबला करेंगे। यदि शाहरूख दिलवाले में चूके थे तो मोहनजोदड़ो ऋतिक रोशन के लिए आत्मघाती गोल साबित हुआ था।

चुनाव के दौर में जब तिल का ताड़, राई का पहाड़ बनाने में महारत हासिल टीम मुद्दों को सूंघती रहती है ऐसे में रईस की कहानी ने ऐसे खेमे को विवाद का भरपूर मसाला दिया था। लेकिन किंग खान के प्रशंसकों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका 'राहुल’ अब 'रईस’ बन गया है और इस बार वह स्विट्जरलैंड की वादियों में चुस्त जींस पहने कोई मीठा सा गीत गाने के बजाय पठानी सूट पहने मोहल्लेनुमा जगह में इश्क कर रहा है। शाहरूख के प्रशंसकों को इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह एक पाकिस्तानी कलाकार माहिरा खान के फिल्म में प्यार की पींगे बढ़ा रहे हैं और हां उन्हें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले शाहरूख के खिलाफ क्‍या बोल रहे हैं। माहिरा खान की वजह से रईस को उतनी दिक्‍कतों का सामना नहीं करना पड़ा जितना इसी वजह से करण जौहर को 'ऐ दिल है मुश्किल’ के लिए करना पड़ा था। लेकिन यह वाकई शाहरूख का स्टारडम है कि गुजरात के डॉन और पाकिस्तानी कलाकार की मौजूदगी में भी वह शान से दर्शकों के सामने आए जैसे उन्होंने फिल्म के पोस्टर पर कहा था, '25 जनवरी को आ रहा हूं।’

रईस के साथ काबिल की टकराहट को दो सितारों की टकराहट नहीं कहा जा सकता है। रितिक रोशन का कद शाहरूख के मुकाबले अभी छोटा है। वह खुद में समर्थ कलाकार हैं लेकिन किंग खान उन्हें अपने प्रतिस्पर्धी के तौर पर नहीं देखते हैं। यह टक्‍कर गदर और लगान जैसी टक्‍कर भी नहीं थी। हालांकि जब बॉक्‍स ऑफिस में दो फिल्में टकराती हैं तो नुकसान दोनों ही कलाकारों को उठाना पड़ता है। दर्शकों के बीच असमंजस का तूफान उन्हें इधर या उधर कर बांट देता है। फिर बाद में माउथ पद्ब्रिलसिटी से ही कभी-कभी फिल्म पटरी पर लौटती है जैसे शोले। जब 1975 में शोले रिलीज हुई थी तब उसी दिन जय संतोषी मां भी सिनेमाघरों में थी। शोले का पहला हफ्ता बहुत अच्छा नहीं बीता था, समीक्षक लगभग उसे फ्लाप देने को आतुर थे। लेकिन देखते ही देखते शोले 'कल्ट’ फिल्म बन गई। काबिल कल्ट सिनेमा तो नहीं बनेगी लेकिन हो सकता है माउथ पद्ब्रिलसिटी रितिक के मोहनजोदड़ो वाले दाग को धो पाए। रितिक ने भी बच्चों के नायक 'क्रिश’ की छवि से उबरने के लिए जी जान लगा दी है। नेत्रहीन को बदला लेते दिखाना उनके लिए भी रिस्क था लेकिन जो खतरे मोल लेते हैं वही विजेता भी होते हैं। रितिक ने अपनी रोमांटिक और डांसर छवि को इस फिल्म के लिए थोड़ा सा खिसका दिया है। दोनों फिल्मों की एक ही दिन टकराहट और रिलीज को दो दिन आगे बढ़ा लेने की प्रवृत्ति दिखाती है कि बॉक्‍स ऑफिस पर अब निर्माता भी ज्यादा से ज्यादा बटोर लेने की ख्‍वाहिश रखते हैं। बुधवार (काबिल और रईस इसी दिन रिलीज हुईं) को ही शुफ्वार बना लेना, ईद, दिवाली, 15 अगस्त, 26 जनवरी की छुट्टी को पूरी तरह निचोड़ लेने के लिए शाहरूख-रितिक ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।

सितारे भूल जाते हैं कि जब दर्शक आधे इधर और आधे उधर निकल जाते हैं तो बाहर आकर हर भारतीय में बैठा क्रिकेट, राजनीति के साथ बैठा फिल्म विशेषज्ञ सबसे पहले 'व्हॉट्स ऐप क्‍लब’ में तुरंत फिल्म समीक्षा का आदान-प्रदान करता है। किसी को रितिक का बदला लेना सुहा रहा है तो किसी को मनमोहन देसाई का रईसी भरा मसाला। लेकिन एक बात तय है, रईसी तो काबिलियत से ही आती है।

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