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ऊंची उड़ान के लिए भारत में बनाओ

रक्षा, सडक़, भवन, रेल आदि क्षेत्रों में निर्माण से बदलेगी उद्योगों की तस्वीर, सरकार ने बजट में मेक इन इंडिया के लिए किए हैं विशेष प्रावधान
योगदाः मनोहर पर्र‌िकर, बीरेंद्र स‌िंह, नीत‌िन गडकरी, राजीव प्रताप रूडी

साल 2017-18 का आम बजट जब पेश हो रहा था तो छोटे से लेकर बड़े उद्यमियों की नजर मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिए जाने को लेकर किए जा रहे प्रयासों पर रही। हालांकि सरकार ने अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बजट का प्रावधान किया लेकिन कई उद्योग जो कि ज्यादा बजट या फिर टैक्स में छूट चाहते थे उनकी उम्मीदों से बजट कम रहा। लेकिन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रीनिर्मला सीतारमन का दावा है कि सरकार ने मेक इन इंडिया के तहत जिन 25 क्षेत्रों का चयन किया उसके लिए बजट में बेहतर प्रावधान तय किए गए हैं। जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए बजट में 3 लाख 96 हजार 135 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। चमड़ा और जूता-चप्पल, कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। कृषि, रक्षा, ऊर्जा के क्षेत्र में मेक इन इंडिया को कैसे आगे बढ़ाया जाए इसके लिए भी बजट के प्रावधानों को लेकर विशेषज्ञ सकारात्मक पहल बताते हैं कि इससे मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा। इसमें सबसे बड़ी भूमिका कौशल विकास की है जिसके लिए सरकार ने बजट में विशेष प्रावधान किए हैं। कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने बजट से पहले प्रभावशाली ढंग से प्राथमिकता तय करने एवं अधिक धनराशि के प्रावधान के लिए प्रधानमंत्री को संतुष्ट किया।
पच्चीस सितंबर, 2014 को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत की थी तो उसमें 25 क्षेत्रों को विशेष तौर पर चुना गया था जिनमें ऑटो मोबाइल, विमानन, जैव प्रौद्योगिकी, रसायन, निर्माण, रक्षा उपकरण, इलेिक्ट्रकल मशीनरी, खाद्य प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, चमड़ा, मीडिया और मनोरंजन, खनन, तेल और गैस, रेलवे, सडक़ और राजमार्ग, नवीनीकरणीय ऊर्जा, कपड़ा, पर्यटन, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों को शामिल किया गया था। इन सभी क्षेत्रों के लिए कुशल श्रमिकों की जरूरत है। ऐसे में कौशल विकास मंत्रालय की भूमिका बहुत बड़ी है। क्योंकि इस मंत्रालय के द्वारा युवाओं को प्रशिक्षण की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। साल 2015-16 में 1.04 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित किया गया था उसके बाद साल 2016-17 में करीब 37 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में मंत्रालय की योजना से बड़ी संख्या में युवाओं को लाभ मिलेगा। मंत्रालय की ओर से प्रशिक्षण अधिनियम में किए गए व्यापक सुधारों से जो परिवर्तन देखने को मिला है उसी का परिणाम है कि बड़ी संख्या में कुशल श्रमिक और विभिन्न ट्रेड के कुशल कामगार निकल कर आ रहे हैं जो विभिन्न उद्योगों में अपनी कुशलता के साथ काम कर सकेंगे। मेक इन इंडिया के तहत कुशल श्रमिकों और कामगारों की बढ़ती मांग से उत्साहित राजीव प्रताप रूडी के अनुसार जब हम देश में अलग-अलग उद्योगों पर नजर दौड़ाते हैं तो पता चलता है कि वहां किस प्रकार के कौशल की जरूरत है। उसी हिसाब से कौशल विकास के कार्यफ्म निर्धारित किए जा रहे हैं। रूडी कहते हैं कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती है उसमें नए किस्म के रोजगार दिखाई पडऩे लगते हैं। रूडी के मुताबिक मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसी पहलों से वैश्विक बाजार में भारत स्वयं को बड़ा ब्रांड बना रहा है। यही कारण है कि आज कृषि जैसे क्षेत्र में भी नई तकनीक के माध्यम से किसानों को बड़ा लाभ मिल रहा है। कौशल विकास का उद्देश्य मेक इन इंडिया अभियान से भी जुड़ा है जिसका उद्देश्य वैश्विक निर्माण केंद्र के रूप में भारत को विकसित करना है। सरकार ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड को भी भंग करने का फैसला किया है।
रक्षा क्षेत्र की अगर बात करें तो इसमें सरकार मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की बात कर रही है। लेकिन सरकार ने रक्षा बजट में दस फीसदी की बढ़ोतरी की है। साल 2017-18 के बजट में 2 करोड़ 74 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। जबकि साल 2016-17 में 2 करोड़ 49 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। हालांकि सरकार कहती है कि रक्षा क्षेत्र में विदेशों पर निर्भरता कम करना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। इसके लिए मेक इन इंडिया पर जोर भी दिया जाएगा। हालांकि विभिन्न रक्षा उपफ्मों के उत्पादन की क्षमताओं को विकसित करने के लिए भारत में निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाने पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि अन्य वस्तुओं की अपेक्षा रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्ऌपादन की अधिक जरूरत है। इससे न केवल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भी दूर किया जा सकेगा। केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर बताते हैं कि रक्षा क्षेत्र में सरकार ही एकमात्र उपभोक्ता है। अत: मेक इन इंडिया हमारी खरीद नीति द्वारा संचालित होगी। पर्रिकर के मुताबिक सरकार की घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की नीति, रक्षा खरीद नीति में अच्छी तरह परिलक्षित होती है जहां 'बाई इंडियन’ तथा 'बाई एंड मेक इंडियन’ श्रेणियों का बाई ग्लोबल से पहले स्थान आता है। रक्षा मंत्री के मुताबिक भले ही भारतीय कंपनियों की वर्तमान में प्रौद्योगिकी के मामले में पर्याप्त क्षमता न हो उन्हें विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की व्यवस्था और गठबंधन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। रक्षा क्षेत्र में घरेलू और विदेशी दोनों निवेशकों के लिए एक बड़ा अवसर उपलब्ध है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़े सैन्य बल वाला देश है जिसके लिए वार्षिक बजट में करीब 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रावधान है। इसका 40 प्रतिशत पूंजी अधिग्रहण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मनोहर पर्रिकर कहते हैं कि अगले 7-8 सालों में भारत मेक इन इंडिया की वर्तमान नीति के तहत अपने सैन्य बलों के आधुनिकीकरण के लिए 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने जा रहा है।
रक्षा क्षेत्र में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड ने अपने फ्यूचर सोल्जर प्रोग्राम के तहत मेक इन इंडिया की पहल को ही आगे बढ़ाने की दिशा में कदम आगे बढ़ा रहा है। सैनिकों के जैकेट और उसमें लगाए जाने वाले अन्य डिवाइस को तैयार करने के लिए डीआरडीओ और आईआईटी मुंबई से संपर्क साधा गया है। सूत्र बताते हैं कि इसे अब भारत में निर्मित किया जाएगा। मेक इन इंडिया अभियान में इंजीनियरिंग इंडिया लिमिटेड ने भारत में हाइड्रोकार्बन, पेट्रोरसायन एवं धातुकर्म क्षेत्रों के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। देश में 150 एमएमटीपीए से अधिक मिश्रित रिफाइनिंग क्षमता वाली 22 रिफाइनरियों में से 19 में कंपनी के फुटप्रिंट है। कंपनी भारत के आठ बड़े पेट्रो रसायन परिसरों में से सात की स्थापना से भी जुड़ी हुई है। हाईड्रोकार्बन परामर्श में कंपनी के प्रयासों का ही परिणाम है कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में 90 प्रतिशत से अधिक और लगभग 80 प्रतिशत आपूर्ति में स्वदेशी उपकरण और तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। मेक इन इंडिया के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने देश में विकसित पहला उन्नत हॉक एमके 132 उतारा है। एचएएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक टी सुवर्ण राजू का कहना है कि एचएएल में यह 100वां हॉक विमान का उत्पादन है। इस पर मेक इन इंडिया का मार्क गौरव की बात है।
मेक इन इंडिया की मौजूदा नीतियों के बारे में इयान इलेिक्ट्रक लिमिटेड के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक वीपी महेंद्रू बताते हैं कि सरकार ने जो महत्वाकांक्षी कदम उठाया है उससे लाइटिंग उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। महेंद्रू बताते हैं कि छोटी कंपनियों के लिए करों को 10 फीसदी से कम करके पांच फीसदी करना और ड्यूटी में कमी लाने से मेक इन इंडिया को और प्रोत्साहन मिलेगा। वहीं यूनिवर्सल रोबोट्स के भारतीय प्रमुख प्रदीप डेविड बताते हैं कि बजट के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और मेक इन इंडिया अभियान तेजी से रफ्तार पकड़ेगा।
मेक इन इंडिया अभियान के तहत अगर राज्यों की बात करें तो अमेरिकी कंपनी जनरल इलेिक्ट्रक ने भारत सरकार से देश में नई ट्रेनों का बेड़ा तैयार करने के लिए 2.6 अरब डॉलर का अनुबंध हासिल किया है। कंपनी का कहना है कि अगले 11 सालों में भारत को एक हजार नए डीजल इंजनों की आपूर्ति की जाएगी। इस करार के तहत जीई नए संयंत्र और भंडारगृह बनाने के लिए 20 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी। जीई बिहार के मढ़ौरा में नई ट्रेनों का संयंत्र लगाने पर सहमत हो गई है। इसी तरह चीन की सबसे बड़ी हाई स्पीड ट्रेन कंपनी भारत में रेल इंजन बनाएगी और मरम्मत करेगी। दोनों देश इसको लेकर 425 करोड़ का संयुक्त उपफ्म शुरू करेंगे। मेक इन इंडिया के तहत शुरू किया जाने वाला यह प्रोजेक्ट हरियाणा के बावल में लगाया जाएगा। रेल मंत्रालय के साथ मिलकर शुरू किए जा रहे इस उपफ्म से लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मिलेगा। मध्य प्रदेश सरकार ने भी मेक इन इंडिया अभियान के तहत करोड़ों रुपये का करार किया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बताते हैं कि निवेशकों के लिए मध्य प्रदेश सबसे बेहतर है क्योंकि यहां निवेश नीतियां बेहतर हैं और बिजनेस के लिए सिंगल टेबल कॉन्सेप्ट है। इसी तरह से महाराष्ट्र सरकार को अफोर्डेबल हाउस और स्मार्ट सिटी बनाने में मेक इन इंडिया की बड़ी भूमिका नजर आ रही है। निवेशकों को लुभाने के लिए लगभग सभी राज्य निवेशक मीट का आयोजन भी करा रहे हैं। इसमें कुछ राज्य लगातार आयोजन कर रहे हैं तो कुछ तैयारी भी कर रहे हैं। जीएचसीएल के प्रबंध निदेशक आरएस जालान बताते हैं कि मेक इन इंडिया अभियान के कारण ही मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा मिला है और इसी तरह की ग्रोथ होती रही तो 2025 तक जीडीपी में 25 फीसदी का योगदान इस क्षेत्र का होगा। यही कारण है कि इस अभियान को लगातार सरकार प्रोत्साहित कर रही है।
देश के विकास और निर्माण में इस्पात उद्योग की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। इसलिए सरकार ने इस्पात क्षेत्र को बढ़ाने के लिए विशेष प्रावधान किया हुआ है क्योंकि इस्पात बनाने की प्रक्रिया कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज जैसे कच्चे माल से शुरू होती है। कच्चा माल स्टील की उत्पादन लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसमें कई उत्पाद को विदेशों से आयात करना पड़ता है जिसमें उत्पाद शुल्क से लेकर कई तरह के करों के कारण इसकी लागत बढ़ जाती है। आज इस्पात का प्रयोग केवल मकान, अस्पताल, स्कूल या सडक़ के निर्माण में ही नहीं हो रहा है बल्कि रेल, हवाई जहाज या रक्षा से जुड़े उत्पादों में भी इसकी मांग बनी हुई है। केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह बताते हैं कि मंत्रालय ने इस्पात उत्पादों के लिए टैरिफ और गैर टैरिफ समर्थन उपायों के मुद्दों को उठाया है जिसके परिणामस्वरूप निश्चित समय अवधि में न्यूनतम आयात मूल्य एंटी डंपिंग शुल्क, माल ढुलाई की दरों को भी समायोजित किया गया है। इन कदमों से इस्पात के निर्माण की लागत में कमी भी आएगी। सिंह बताते हैं कि उत्तरी और पश्चिमी भारत में एक-एक स्क्रैप आधारित इस्पात संयंत्र की स्थापना करने की संभावनाओं का भी पता लगाया जा रहा है ताकि भारत निर्मित इस्पात को बढ़ावा मिल सके। प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना का बजट 27 हजार करोड़ रुपया हो गया है, वहीं एक करोड़ ग्रामीण आवास बनाए जाने की योजना है जिसका बजट 15 हजार करोड़ से बढ़ाकर 23 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है। ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए 4 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होगा, वहीं सडक़ निर्माण के लिए बजट 57 हजार करोड़ रुपये से 64 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया। इन सबके निर्माण में इस्पात की जरूरत होगी और इसके लिए सरकार कार्ययोजना तैयार कर रही है। एबीए कॉर्प के प्रबंध निदेशक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्रेडाई के उपाध्यक्ष अमित मोदी बताते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में मेक इन इंडिया की पहल के बाद अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो मेक इन इंडिया में निवेश की प्रक्रिया लगातार जारी है। एक अप्रैल, 2016 से 31 अक्टूबर, 2016 तक सरकार को इस कार्यफ्म के अंतर्गत 1365 परियोजनाओं के प्रस्ताव प्राप्त हुए जिनमें तीन लाख 18 हजार 208 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है। इनमें से 294 प्रस्तावों को क्रियान्वित किया जा चुका है और इनमें 41 हजार 437 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। अगर राज्यों की बात करें तो मेक इन इंडिया अभियान के तहत सर्वाधिक 242 प्रस्ताव महाराष्ट्र के लिए प्राप्त हुए। गुजरात को 237 और कर्नाटक को 188 प्रस्ताव मिले। हालांकि पैसे की बात करें तो सर्वाधिक एक लाख 41 हजार करोड़ रुपये का निवेश प्रस्ताव कर्नाटक के लिए है। गुजरात में 34 हजार 740 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र में 26 हजार 766 करोड़ रुपये का निवेश होना है। मोबाइल और तमाम इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण का उत्पाद चीन के बदले भारत में ही बनाने की दिशा में कंपनियां आगे आने लगी हैं। हुवेई ने हैदराबाद में प्लांट लगाकर भारत में स्मार्ट फोन बनाने का काम शुरू भी कर दिया है। जिओनी भी हरियाणा सरकार संग करार कर फरीदाबाद में प्लांट लगा रही है।

सौरभ कुमार

'भारतीय उत्पादों की बढ़ रही विदेशों में मांग’

मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत के साथ ही भारत सरकार और उससे जुड़े उपफ्मों ने उत्पादन के क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू कर दिया। एलईडी बल्ब, ट्यूबलाइट, पंखे और कृषि उपकरण का निर्माण कर मेक इन इंडिया का लेबल लगाकर विदेशों में निर्यात किया जा रहा है। भारत सरकार के उपफ्म इनर्जी इफिसिएन्सी सर्विस लिमिटेड के प्रबंध निदेशक सौरभ कुमार से आउटलुक के विशेष संवाददाता कुमार पंकज ने विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश:-

 

ऊर्जा दक्षता के बारे में आपकी क्‍या राय है?

ऊर्जा दक्षता का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। सरकार का प्रयास है कि हर घर को बिजली मिले और इसके लिए ऐसे उपकरण तैयार किए जा रहे हैं जिसमें बिजली की खपत कम हो। अगर बिजली की खपत कम होगी तो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बिजली पहुंचाई जा सकती है।

लेकिन यह कैसे संभव है?

सरकार ने ऊर्जा बचत की ओर ध्यान दिया तो इसके लिए एलईडी बल्ब, टयूबलाइट, पंखे आदि का निर्माण कर इस दिशा में प्रयास किया जा रहा है। इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके उपयोग की जानकारी उपलब्‍ध कराई जा रही है ताकि इसके उपयोग से बिजली का खर्च कम हो और ज्यादा लोगों को बिजली मिल सके।

इस दिशा में कहां तक सफलता मिली है?

आंध्र प्रदेश में शत-प्रतिशत सफलता कही जा सकती है जहां एलईडी बल्ब का उपयोग कर बिजली की बचत हुई है। इसके साथ ही पुडुचेरी, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी इसका उपयोग बढऩे से बिजली की बचत हो रही है।

लेकिन बल्ब से ही कितनी बिजली बचेगी अन्य उपकरणों पर तो बिजली का खर्च ज्यादा होता है?

बात सही है इसलिए हमने एलईडी फैन के अलावा सिंचाई के लिए उपयोग में लाए जाने वाले मोटर को भी कम बिजली में चलाने के उपायों पर सफलता पाई है। आज एलईडी बल्ब के अलावा जो अन्य उत्पाद हमारे विभाग द्वारा वितरित किए जा रहे हैं उसमें हमें उम्‍मीद है कि इससे शत-प्रतिशत सफलता मिलेगी।

एलईडी उपकरण का प्रयोग बढऩे से क्‍या आपको लगता है कि सरकार के मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा मिलेगा?

बिल्कुल मिल रहा है। भारत में निर्मित एलईडी बल्ब से लेकर अन्य उत्पाद की ग्लोबल डिमांड बढ़ रही है। ग्लोबल डिमांड बढऩे से इसका उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहा है और कई कंपनियों के लिए यह मुनाफे का सौदा हो रहा है।

आपका विभाग मैन्युफैक्‍चरिंग का काम नहीं करता लेकिन वितरण से किस तरह से आप लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं?

आज हमारे देश में कुल 12 हजार वितरण केंद्र हैं। हर केंद्र पर करीब तीन लोग काम कर रहे हैं इससे 36 हजार लोगों को तो सीधे तौर पर रोजगार मिला हुआ है। आने वाले दिनों में वितरण केंद्रों की संख्‍या बढ़ाई जा रही है। जितने केंद्र बढ़ेंगे उतने ही रोजगार भी।

गुजरात में निवेश

देश के दिग्गज उद्योगपतियों ने गुजरात में भारी-भरकम निवेश की तैयारी की है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुखिया मुकेश अंबानी ने आगामी मार्च तक प्रदेश में सवा लाख करोड़ रुपये के निवेश को पूरा करने की बात कही है। मुकेश अंबानी गुजरात में आयोजित सभी वाइब्रेट कार्यफ्मों में शामिल हो चुके हैं और उन्होंने इस राज्य में मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देने के लिए निवेश करने का प्रस्ताव गुजरात सरकार को दिया है। इसी तरह अडानी समूह भी गुजरात में मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देने के लिए बड़ा निवेश करने की तैयारी में है। जनवरी, 2017 में आयोजित वाइब्रेंट गुजरात सम्‍मेलन में अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने कहा कि राज्य में 49 हजार करोड़ रुपये का निवेश करेंगे। इससे पहले भी अडानी राज्य में बड़ी धनराशि निवेश कर चुके हैं। भारत की बड़ी कंपनियों के अलावा कई बड़ी विदेशी कंपनियां भी गुजरात सरकार के साथ निवेश के तहत करार कर चुकी हैं जिसमें समझौतों पर काम शुरू हो चुका है। कई पर काम की प्रक्रिया चल रही है। हालांकि दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि निवेश के नाम केवल कंपनियां समझौते करती हैं लेकिन निवेश नहीं करतीं। राज्य के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से लगातार इस बात की आशंका जाहिर की जाती रही कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे तब उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात अभियान शुरू किया लेकिन जितना निवेश नहीं हुआ उससे कहीं

ज्यादा राज्य सरकार पर कर्ज हो गया।

मेक इन इंडिया पहल में काफी निवेश होने की उम्‍मीद है जो स्टील की मांग को प्रोत्साहित करेगा। इससे उत्पादन क्षमता और बढ़ेगी।

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