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अपनी ढपली अपना बाजा

प्रचार की रणनीति तैयार करने में परदे के पीछे के सलाहकारों की होती है बड़ी भूमिका, वार रूम के जरिए रूठों को भी मनाया जा रहा है
राहुल गांधी और अख‌िलेश यादव

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार चरम पर है। भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी व कांग्रेस गठबंधन के बीच मुख्‍य मुकाबला है। ऐसे में सभी दलों की रणभेरी से पूरा प्रदेश गूंज रहा है। प्रदेश में सात चरणों में विधानसभा चुनाव जारी है। इसके साथ ही पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है तो मणिपुर और उत्तराखंड में प्रचार जोरों पर है।  सभी दलों के अपने-अपने दावे हैं और सभी के लिए जीत की अपनी रणनीति। मतदाताओं का रुख किस ओर करवट बदल रहा है कोई नहीं जानता। क्‍योंकि सभी की रैलियों में उमड़ रही भीड़ चुनावी विश्लेषकों के लिए हैरान कर देने वाली है। शब्‍दों के तीर भी ऐसे चल रहे हैं कि जनता इन शब्दभेदी बाणों को आसानी से समझ सके। उत्तर प्रदेश की सियासत में इस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इन सभी के अपने रणनीतिकार हैं और सबका अपना-अपना चुनावी गणित। आइए जानते हैं कि कैसे ये रणनीतिकार मतदाताओं को लुभाने के लिए दांव-पेच चल रहे हैं।

अख‌िलेश यादव

अखिलेश की चुनावी रणनीति

साल 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की जो टीम बनी थी उसमें संजय लाठर, आनंद भदौरिया, सुनील साजन, अभिषेक मिश्रा, उदयवीर सिंह सहित कई नाम सामने आए थे। उसके बाद से ही यह टीम अखिलेश के लिए लगातार काम कर रही है। अब इनको कुछ और जिम्‍मेदारियां मिली हैं लेकिन इस बार के वार रूम की जिम्‍मेदारी आशीष यादव, अहमद नकवी, अंशुमान शर्मा, वृजनंदन चौबे ने संभाल रखी है। इनके साथ समाजवादी पार्टी के मुख्‍य प्रवक्‍ता राजेंद्र चौधरी भी वार रूम के सतत संपर्क में हैं। अखिलेश यादव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे लोगों को अपना बना लेते हैं। कितनी ही विषम परिस्थितियां क्‍यों न हों वे मंद-मंद मुस्कुराते रहते हैं और ज्यादातर समस्याओं का हल आसानी से निकाल लेते हैं। लेकिन एक बार किसी निर्णय को ले लेने के बाद फिर उससे टस-मस नहीं होते। अखिलेश ने आउटलुक से एक यात्रा के दौरान बातचीत में कहा कि अच्छा ये बताइए कि समाजवादी पार्टी नेता जी की है, सरकार भी उन्हीं की है और बनने वाली भी उन्हीं की होगी और मैं किसका हूं। मैं भी तो नेताजी का ही हूं। उन्होंने ही मुख्‍यमंत्री बनाया और उन्होंने ही राजनीति सिखाई। अखिलेश अपनी बात को बड़ी ही सहजता के साथ कहते हैं। अखिलेश की जीत का फार्मूला यही है कि प्रदेश में उन्होंने सबसे पहले चुनाव प्रचार शुरू कर दिया। अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव सोशल मीडिया पर चलने वाले विज्ञापन और उसके क्रिएटिव की जिम्‍मेदारी संभाल रही हैं। इसके साथ ही युवाओं की एक पूरी टीम अखिलेश और डिंपल के नेतृत्व में काम कर रही है। परदे के पीछे समय-समय पर प्रियंका गांधी के साथ डिंपल ही संवाद करती हैं। प्रचार के लिए अशोक लीलैंड की बस को रथ का रूप दिया गया है जिसमें लिफ्ट, टॉयलेट, टीवी, इंटरनेट के अलावा अन्य सुविधाएं उपलब्‍ध हैं। एक दिन में तीन-तीन जिलों की कुल 7 से 8 विधानसभा चुनाव में प्रचार कर रहे हैं। अखिलेश यादव पार्टी के स्टार प्रचारक हैं और हर जगह उनकी मांग बनी हुई है। इसके अलावा पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी प्रचार करेंगे क्‍योंकि उन्हें इस बात का अहसास है कि जनाधार अखिलेश के साथ है। इसके साथ ही सपा और कांग्रेस गठबंधन के कारण प्रदेश के राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं। कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी के प्रचार तंत्र से लेकर युवाओं की एक टीम पूरी ताकत के काम कर रही है।

अम‌ित शाह

शाह के करीबियों की बड़ी भूमिका

'अबकी बार 300 पार’ का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी ने इस बार चुनावों में पूरी ताकत झोंक रखी है। हालांकि उम्‍मीदवारों की सूची जारी होने के बाद अंदरखाने नाराज चल रहे नेताओं को मनाने में पार्टी रणनीतिकारों को काफी मशक्‍कत करनी पड़ी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए भी यह चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि उनके प्रभारी रहते हुए पार्टी ने लोकसभा चुनाव में 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल की थी और दो सीटें सहयोगी दल को मिली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा सामने रखकर चुनाव लडऩे वाली भाजपा ने इस बार किसी को मुख्‍यमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित नहीं किया है। अमित शाह ने बागी नेताओं को मनाने के लिए अपने खास लोगों को चुनावी मैदान में उतार दिया है। बिहार के संगठन महामंत्री नागेंद्र, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव, संगठन महामंत्री सुनील बंसल, प्रदेश के प्रभारी ओम माथुर, बिहार के पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव, बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष मंगल पांडेय सहित कई नेताओं को प्रचार-प्रसार से दूर रखकर बागी नेताओं को मनाने और वार रूम में बैठकर प्रचार की रणनीति तय करने की जिम्‍मेदारी दी गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के रणनीतिकार जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए उनके बीच जाकर इस तरह का प्रचार कर रहे हैं कि आजादी के बाद अब तक किसी एक पार्टी से 17 जाट सांसद कभी नहीं बने। भाजपा का जाटों पर इतना विश्वास है कि इन 17 सांसदों में से 4 सांसद केंद्र में मंत्री पद को शुभोभित कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में हाल में हुए विधानपरिषद के चुनाव में भाजपा ने जाट उम्‍मीदवार को ही अपनी पहली पसंद बनाया और वर्तमान विधानसभा चुनाव में 15 टिकट जाट बिरादरी से दिए। इसी तरह से भाजपा अन्य समुदाय के बीच भी अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए प्रचार की रणनीति अपना रही है। हालांकि भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्‍मीदवार नहीं उतारा है लेकिन इस बार पार्टी ने प्रचार की रणनीति को बदला है। सोशल मीडिया और अन्य प्रचार माध्यमों के अलावा व्यक्तिगत संपर्क कर मतदाताओं के लुभाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर अगर पूर्वांचल का कोई यादव नेता नाराज है तो उसको मनाने की जिम्‍मेवारी भूपेंद्र यादव और नंदकिशोर यादव की है। इसी तरह की रणनीति अन्य नाराज लोगों के लिए भी अपनाई जा रही है। लखनऊ के भाजपा कार्यालय में एक पूरा वार रूम बना हुआ है जहां दिन भर प्रदेश भर से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं को नोट किया जाता है इसके बाद उस पर वार रूम में मौजूद नेता मंथन करते हैं और उस पर जो भी निष्कर्ष निकलता है उसे अमित शाह तक पहुंचाया जाता है। उसके बाद पार्टी अध्यक्ष की ओर से मिले निर्देश को आगे पूरा किया जाता है। भाजपा की इस पूरी रणनीति को अंजाम देने के लिए उत्तर प्रदेश के बाहरी नेताओं पर ज्यादा भरोसा जताया गया है। पार्टी ने गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ के कई प्रमुख नेताओं को उत्तर प्रदेश के वार रूम की रणनीति से जोड़ा है।

आम लोगों के साथ राहुल गांधी और प्र‌ियंका गांधी

प्रियंका-राहुल की विश्वस्त टीम

चुनाव अभियान के वार रूम की असली कमान प्रियंका गांधी के पास है। पी.के. (प्रशांत किशोर) केवल मुखौटा हैं और अखिलेश के साथ सीधा संवाद प्रियंका और राहुल गांधी का बना हुआ है। पी.के. की एजेंसी कच्ची-पक्‍की सूचनाएं देती है। राहुल गांधी की अपनी टीम अधिक विश्वसनीयता एवं निष्ठा के साथ काम कर रही है। टीम के कुछ सदस्य तो पी.के. पर पूरा भरोसा भी नहीं करते, क्‍योंकि उसके विपक्षी एवं भाजपा के पुराने रिश्तों के तार जुड़े होने का खतरा है। युवा गांधी परिवार की असली विश्वस्त टीम में मोहन गोपाल, के. राजू, कनिष्क सिंह, कौशल विद्यार्थी, अलंकार सवाई, सचिन राव, के.वी. राजू शामिल हैं। कौशल विद्यार्थी अवश्य राहुल गांधी की यात्राओं के दौरान साथ रहते हैं। अन्यथा अन्य सहयोगी निर्वाचन क्षेत्रों की स्थिति, गठबंधन के उम्‍मीदवारों, राजनीतिक मुद्दों की प्राथमिकताओं, मतदाताओं की अपेक्षाओं, सभाओं में उठ सकने वाले प्रमुख बिंदुओं, देश-विदेश की प्रतिक्रियाओं, सुरक्षा प्रबंध इत्यादि की जानकारियां कंप्यूटर पर डालते रहते हैं। अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रियंका गांधी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से सलाह मशाविरा करती हैं।

प्रियंका-राहुल ने इस रणनीति पर सर्वाधिक जोर दिया है कि पार्टी की ओर से कोई नेता विरोधियों की तरह कोई सांप्रदायिक, उत्तेजक, अश्लील, भद्दी, मानहानिपरक टिप्पणी या वक्‍तव्य नहीं दे। सूत्रों के अनुसार वे केवल राजनीतिक, तथ्यात्मक, जनता के दिल-दिमाग को छूने वाले तर्क देना चाहते हैं। आर्थिक मामलों में विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक में रहे पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और राजीव गांधी संस्थान के निदेशक मोहन गोपाल तथ्यों को संजोकर उपलब्‍ध कराते हैं। परिवार के वरिष्ठ मित्र सलाहकार सैम पित्रोदा गरीब-अमीर से जुड़े मुद्दों, नीतियों पर सलाह दे रहे हैं। वह स्वयं मूलत: गुजरात के पिछड़े वर्ग के सामान्य परिवार के हैं और भारत की कंप्यूटर क्रांति के असली प्रणेता हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी के. राजू अब कांगे्रस के दलित-आदिवासी प्रकोष्ठ के प्रमुख हैं और दलित मामलों पर प्रियंका-राहुल को हर कोने की जानकारियां उपलब्‍ध करा रहे हैं। दूसरी तरफ पार्टी और गठबंधन के नाजुक मुद्दों पर युवा गांधी पार्टी अध्यक्ष के विश्वस्त राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से सलाह लेते हैं। प्रियंका-राहुल की टीम वर्तमान विधानसभा चुनावों से 2019 की प्रारंभिक तैयारी करना चाहती है। वे जल्दबाजी में नहीं हैं। आखिरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही काम कर रहे हैं।

रैली में भाग लेते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोदी के चुनावी सिपहसालार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव अभियान का तंत्र 2012 से गुजरात और राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहे विश्वस्त सहयोगियों से चल रहा है। राजनीतिक रणभूमि के सेनापति अमित शाह हैं। मोदी-शाह का दिल-दिमाग जैसे एक साथ धडक़ता-बोलता-काम करता है। इन दोनों के फैसले टीम के लिए ही नहीं भाजपा, सरकार और संघ नेतृत्व में स्वीकार्य होते हैं। इसके बाद जे.पी. नड्डा (अब केंद्रीय मंत्री) और ओम माथुर (अब सांसद) संघ-भाजपा के संगठनात्मक कार्यों के कारण मोदी से जुड़े हुए हैं। संघ से ही आए विनय सहस्रबुद्धे को सांसद के रूप में लाकर कोर गु्रप में रखा गया है। ये तीनों नेता अधिक समय सरकार और पार्टी को सुदृढ़ करने और चुनाव की रणनीति में पर्दे के पीछे सक्रिय भूमिका निभाते हैं। कानूनी मामलों की दृष्टिï से भूपेन्द्र यादव जुड़े हुए हैं। राजस्थान और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान मोदी के दूत के रूप में उन्होंने पार्टी की कमान संभाली थी। इस बार भी उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरणों के लिए उनकी भूमिका है। चुनाव 'वार रूम’ में विश्वस्त सहयोगी टेक्‍नोलॉजी विशेषज्ञ अरविन्द गुप्ता, डॉ. अरविन्द जैन निरंतर काम कर रहे हैं। वार रूम की यही टीम पंजाब, गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर के लिए अधिकाधिक जानकारियां उम्‍मीदवारों का लेखा-जोखा, संभावित चुनौतियों-खतरों पर विवरण, नारे इत्यादि करते रहते हैं। वॉर रूम से करीब 60 लोग जुड़े हुए हैं। इसी टीम ने मोदी की सभाओं के कार्यफ्म बनाए हैं। इसने उत्तर प्रदेश को सर्वाधिक प्राथमिकता दी और हर तीन जिलों के विधानसभा क्षेत्रों के लिए मोदी की एक बड़ी जनसभा, 400 प्रचार वैन लगाने की सलाह दी।  मोबाइल, फेसबुक ट्विटर से प्रचार भी यहीं से नियंत्रित होता है।

रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती

 

बहन जी ने छोड़ी पुरानी राह

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती इस बार सोशल इंजीनियरिंग पार्ट टू की तर्ज पर चुनाव लड़ रही हैं। कभी सोशल मीडिया से दूर रहने वाली बसपा प्रमुख ने न केवल सोशल मीडिया का सहारा लिया है बल्कि प्रचार के लिए पेशेवर गायक की रिकार्डिंग को भी प्रमुखता से सुनाया जा रहा है जिसके लिए लखनऊ में पार्टी मुख्‍यालय में वार रूम के जरिये पूरे प्रचार कार्यफ्म की रणनीति तैयार होती है। इसकी जिम्‍मेदारी सतीश चंद्र मिश्र के बेटे के पास है।

मायावती के करीबियों के मुताबिक इस बार बसपा अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव करके चुनाव लड़ रही है। इसलिए दलित-मुस्लिम गठजोड़ को प्रमुखता दी गई है। इसी गठजोड़ के कारण बहन जी ने दलितों के साथ-साथ मुसलमानों को सबसे अधिक टिकट दिया है। इतना ही नहीं मायावती ने मूर्तियों, स्मारकों से अब दूरी बनाते हुए कहा है कि अगर प्रदेश में उनकी सरकार आएगी तो न मूर्तियां लगेंगी और न ही संग्रहालय बनाए जाएंगे बल्कि विकास और गुंडाराज खत्म करने को प्राथमिकता दी जाएगी। मायावती के रणनीतिकारों में बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र के अलावा नसीमुद्दीन सिद्दकी शामिल हैं जो प्रचार के लिए रणनीति से लेकर उम्‍मीदवारों के चयन में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। इतना ही नहीं पूर्वांचल में मुस्लिम मतदाताओं के बीच पैठ बढ़ाने के लिए नसीमुद्दीन सिद्दकी के कहने पर बाहुबली विधायक मुख्‍तार अंसारी और उनके भाई और बेटे को बसपा ने टिकट दिया है। ये वही मुख्‍तार अंसारी हैं जो कभी बसपा के शासनकाल में प्रदेश की सीमा में भी घुसने से कतराते थे। लेकिन मायावती की रणनीति रही है कि प्रदेश के 18 फीसदी मुस्लिम आबादी के बीच कैसे पकड़ बनाई जाए। इसलिए 99 मुस्लिम उम्‍मीदवार भी उतार दिए गए। इसके अलावा सपा छोड़ कर बसपा में आए प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी और नारद राय को पार्टी ने उम्‍मीदवार बनाया। चौधरी यादव समाज से आते हैं जबकि राय भूमिहार। पूर्वांचल को लेकर मायावती की सोशल इंजीनियरिंग यही रही है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ के अलावा अन्य बिरादरी के उम्‍मीदवारों को भी प्राथमिकता दी जाए। इस तरह के प्रयासों के बल पर मायावती अपनी सोशल इंजीनियरिंग पार्ट-टू के जरिये सत्ता पर कब्‍जा करना चाहती हैं।

 

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