राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूपी सहित पांच राज्यों के चुनाव के बाद के हालात को लेकर रणनीति बनाने में जुट गया है। अगले महीने दक्षिण भारत के कोयम्बटूर में 15 से 17 मार्च को प्रस्तावित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के पहले भोपाल में 8 फरवरी को हुई संघ टोली के आला नेताओं की बैठक इस लिहाज से बहुत अहम रही। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में चुनावी महासंग्राम के बीच सरसंघचालक मोहन भागवत का आठ दिन तक मध्य प्रदेश में डेरा सामान्य बात नहीं है। भोपाल से लेकर दिल्ली तक भाजपा के कामकाज की समीक्षा के साथ संघ के अपने सालाना एजेंडे पर बात हुई है। साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव में संघ स्वयंसेवकों के एक वर्ग की नाराजगी को नियंत्रित करने पर विचार हुआ।
अपने भोपाल पड़ाव के पहले दिन मोहन भागवत ने संघ के शीर्ष नेताओं सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी के साथ दत्तात्रेय होसबाले और वी भागैय्या तथा संघ और भाजपा के बीच सेतु का काम करने वाले सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने दिनभर जमकर मंथन किया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के सभी प्रमुख पदाधिकारियों को प्रतिनिधि सभा की बैठक में लाए जाने वाले प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने का काम सौंप दिया है। संघ आरक्षण के मुद्दे से लेकर नोटबंदी के अच्छे-बुरे प्रभावों पर प्रस्ताव लाना चाहता है। ये प्रस्ताव संघ और उसकी विचारधारा पर चलने वाली भाजपा की भावी दशा और दिशा तय करने का काम करेंगे। आरक्षण के खिलाफ मोहन भागवत से लेकर मनमोहन वैद्य तक जो बयान देते रहे हैं उससे उपजे विवादों को संघ शांत करना चाहता है। आरक्षण के प्रस्ताव में इस बात को स्पष्ट किया जाएगा कि आरएसएस आरक्षण के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह इस बात पर जोर देना चाहता है कि आरक्षण का फायदा चंद परिवारों तक सीमित नहीं रहे। संघ आरक्षित वर्ग के उन लोगों को इसका फायदा देने की पैरवी करने वाला है जो इस सुविधा से अभी तक वंचित हैं। वह आरक्षण की सुविधा को संचित आरक्षित वर्ग से बाहर निकालना चाहता है। संघ की मान्यता है कि जब तक यह नहीं होगा तब तक संचित आरक्षित वर्ग के परिवार ही इस सुविधा का लाभ उठाते रहेंगे और वंचित आरक्षित समाज अपनी बारी की प्रतीक्षा ही करता रहेगा। उसका मौका न तो छह दशकों में आया और न आएगा। संघ की यह सोच भाजपा की मध्य प्रदेश जैसी सरकारों के नजरिये को बदलेगी जो नौकरी और पदोन्नति में आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था की पैरोकारी कर रही हैं।
पिछले तीन महीने से पूरे देश को उद्वेलित कर रही नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी की योजना पर भी संघ की पैनी निगाह रही है। प्रतिनिधि सभा में इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विचार के लिए संघ के पदाधिकारी विस्तृत मसौदा तय कर रहे हैं। संघ यह देखेगा कि नोटबंदी से देश में कालेधन और करप्शन का प्रवाह रुका या नहीं? रुका तो कितना? इसके लिए क्या नोटबंदी ही एकमात्र तरीका था? नोटबंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर भविष्य में कैसा प्रभाव होगा? अनुकूल या प्रतिकूल? नोटबंदी के साथ ही एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों की समीक्षा भी संघ के प्रस्ताव में होगी। आर्थिक मोर्चे पर यूपीए सरकार की नीतियों को अपनाने के दुष्प्रभावों का भी संघ अध्ययन करा रहा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लेकर जीएसटी तक सभी विषयों पर संघ अपने विचार प्रतिनिधि सभा में रखेगा। देश के आर्थिक परिदृश्य के संदर्भ में संघ अब कड़ा रवैया भी अपना सकता है। वह भाजपा को यूपीए की नकल छोड़ आर्थिक मोर्चे पर अपनी नीतियों पर वापस लौटने को भी कह सकता है। इसके लिए वह वित्त मंत्रालय में बड़े बदलावों की सलाह भी प्रधानमंत्री मोदी को दे सकता है। संघ को लग रहा है कि भाजपा सरकारों का रुख दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन से हट रहा है। वह कॉरपोरेट घरानों की पिछलग्गू ज्यादा नजर आ रही है। ऐसी नीतियां भाजपा को गरीब और मध्यम वर्ग से दूर कर सकती है। भाजपा की आर्थिक नीतियां छोटे और मझोले कारोबारियों को परेशानी में डाल रही हैं। इससे भाजपा का परंपरागत वोट बैंक छिटक रहा है। केंद्र की सरकार के साथ ही मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के कामकाज और चुनावी तैयारियों के बारे में चर्चा हुई है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लेकर भी संघ बड़ा फैसला कर सकता है। इसके बारे में इस बैठक में बातचीत हुई है। शाह को लेकर संघ के सोच-विचार के चलते ही शाह अभी तक अपनी नई टीम नहीं बना सके हैं। सूत्रों की मानें तो संघ के कुछ नेता अमित शाह को गुजरात की कमान सौंपने के पक्ष में हैं। वैसे असली निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही करेंगे। बहुत कुछ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के साथ हो रहे विधानसभा चुनावों के परिणाम पर निर्भर होगा। संघ की चिंता 2017-18 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव की भी है। बीते पौने तीन सालों में संघ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को फ्री हैंड दे रखा था, लेकिन प्रतिनिधि सभा की बैठक के दौरान सरकार के कामकाज की समीक्षा के बाद संघ मोदी और उनकी भाजपा को कई नीतिगत सुझाव भी दे सकता है। संघ ने इस बैठक में राम मंदिर के मुद्दे पर भावी रुख तय करने के साथ ही मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक के मुद्दे पर भी व्यापक रणनीति तैयार करने को कहा है। कुल मिलाकर देखें तो अगले महीने यूपी चुनाव के बाद दिल्ली से लेकर भोपाल तक भाजपा में कई उथल-पुथल भरे फैसले हो सकते हैं।
गांव और गरीब से खुद को जोड़ता संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शहरी क्षेत्रों तक सिमटे अपने प्रभाव के दायरे को विस्तृत करने के लिए बड़ी योजना तैयार की है। यह योजना गांव से जुडऩे की है। आदिवासी अंचलों में तो वह काफी पहले से काम कर रहा है, लेकिन अब दलित समाज को फोकस करने के साथ ही वह गांव के गरीबों की सुध लेना चाह रहा है। मोहन भागवत के इस पड़ाव के दौरान संघ भोपाल के साथ ही बैतूल और होशंगाबाद में 'धर्मांतरण रोकने’ और 'मेरा गांव, मेरा तीर्थ’ के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। इन अंचलों के कई गांवों से धर्मांतरण की सूचनाएं मिलने से चौंके संघ ने यह कार्यफ्म रखा है। 'मेरा गांव, मेरा तीर्थ’ योजना के तहत गांव के लोगों को नौ विधाओं में प्रशिक्षित करके गांव को स्वावलंबी बनाने का काम होगा। संघ बांस, मिट्टी, धातुओं से सामान बनाने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर चुका है। होशंगाबाद के बनखेड़ी ग्राम से वह सृजन ब्रांड के अगरबत्ती और वाशिंग पाउडर निर्माण का काम शुरू करा रहा है। भाउसाहब भुसकुटे न्यास के जरिए हर दस से बारह गांव के बीच में सृजन ब्रांड की यूनिट डालकर गांव वालों को रोजगार मुहैया कराने की बड़ी योजना पर काम चल रहा है। अपने मध्य प्रदेश पड़ाव के दौरान भोपाल में मोहन भागवत ने दलितों और आदिवासियों को भाजपा से जोडऩे की मुहिम के तहत कामकाजी महिलाओं और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की बड़ी सभा को भी संबोधित किया। इसके लिए श्रम साधक संगम आयोजन समिति के बैनर तले संघ कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर पीले चावल बांटकर भाजपा की सभा के लिए आमंत्रित किया। यानी भाजपा को कॉरपोरेट के दायरे से बाहर निकालकर आमजन के बीच संघ-भाजपा की घुसपैठ कराने की पूरी तैयारी हो चुकी है।