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संक्रमण नहीं संकट से गुजर रहा है विश्व

समारोह
आउटलुक मनी अवार्ड समारोह में व‌िचार व्यक्त करते मुरली मनोहर जोशी

मेरे सामने धर्मसंकट है कि मैं हिंदी में बोलूं या अंगे्रजी में। आपको हिंदी चलेगी तो मैं हिंदी में बोलूंगा। और अगर आप समझते हैं कि अंगे्रजी में बोलना जरूरी है तो कोशिश करूंगा कि अंगे्रजी में बोलूं। अंगे्रजी मेरी मातृभाषा नहीं है, तो ऐसे में आपकी क्‍या राय है? ... हिंदी में।

देवियों और सज्जनों, आप सबको मेरा आदरपूर्वक नमस्कार। सबसे पहले मैं आउटलुक मनी पत्रिका का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे आप सबके सामने उपस्थित कर दिया। अध्यापन के समय मैंने बहुत लोगों का, बीएससी के छात्रों का वायवा वर्षों तक लिया। लेकिन वह मेरा विषय होता था। मैं उसी विषय को पढ़ाता था। लेकिन आज आपने मुझे यहां खड़ा किया है, उस विषय को मैंने कभी पढ़ाया नहीं है। मैं मूलत: विज्ञान का छात्र हूं, जैसा कि अभी आपको बताया गया। अर्थशास्त्र मेरा कभी फार्मल स्टडी का विषय नहीं रहा। इसलिए आपको यह सुनकर और मुझे भी हैरानी हुई कि मुझे यहां क्‍यों बुलाया गया। फिर मैं समझता हूं कि शायद इसलिए कि आज की दुनिया में इकोनॉमिक वर्ल्ड में क्‍या हो रहा है, उसे मैं जानूं और समझूं। लेकिन जब तक यहां विवेचना हो रही थी तब मुझे नहीं बुलाया गया। मैं चीजों को सुनता और समझता। सबसे पहले मैं यह कहना चाहूंगा कि आज जब यहां देश की वित्तीय राजधानी में विचार कर रहे हैं और जो हमारे देश में पिछले दिनों अर्थव्यवस्था में एक परिवर्तन आया है, उसके बारे में चिंता कर रहे हैं, चर्चा कर रहे हैं और उसके आगे आने वाले परिणामों के बारे में विचार कर रहे हैं।  देश में उससे कैसे बेहतरी हो सकती है, उसका लाभ आम लोगों तक कैसे पहुंच सकता है, उसके बारे में आप विचार कर रहे हैं। यह बहुत अच्छी बात है, विचार होना चाहिए क्‍योंकि विचारों के आदान-प्रदान से हम किसी नतीजे पर पहुंचते हैं। सबसे पहले मैं यह आपके सामने निवेदन करना चाहूंगा कि आज जिस वक्‍त यहां हम विचार कर रहे हैं, उस वक्‍त दुनिया की क्‍या हालत है। मैं ऐसा समझता हूं कि विश्व आज एक बड़े विचित्र दौर से गुजर रहा है। एक संफ्मण नहीं, बल्कि एक संकट से गुजर रहा है। वो जबर्दस्त सिविलाइजेशनल संकट हो गया है। आर्थिक जगत में भी है, सामाजिक जगत में भी है, राजनीतिक जगत में भी है।  सबसे विचित्र बात यह है कि उसमें आज एक धार्मिक उन्माद का हिस्सा भी जुड़ गया है और आज ऐसी स्थिति आ गई है कि इन सबका जो परिणाण हुआ है, शायद ऐसा परिणाम दुनिया के सामने आज से पहले कभी नहीं रहा। मैं आपको डाराना नहीं चाहता, मगर आपके सामने जो तथ्य हमें दिखाई दे रहे हैं, उसका थोड़ा संक्षेप में उल्लेख करना चाहता हूं।

मेरी कहानी शुरू होती है, वैसे तो बहुत पुरानी कहानी है, मनुष्य की सञ्जयता से शुरू होती है। लेकिन मेरी कहानी, जहां से मैं आज शुरू करना चाहता हूं, वो उस जमाने से है, जब सोवियत रूस का पतन हुआ। जब उसका आर्थिक ढांचा और जो उनके सिद्धांत थे, उन्होंने वहां के समाज को या सारे समाज जो दुनिया के, उनसे जुड़े हुए थे, उनकी समस्याओं का कोई निदान नहीं किया। इत्तफाक से मुझे समय मिला था, तो मैं उन दिनों बर्लिन में ही था, जब बर्लिन की दीवार का आखिरी गेट टूटते हुए देखा। पूर्व जर्मनी और पश्चिम जर्मनी को मिलते हुए देखा। उस समय यह कहा गया कि अब यह एंड ऑफ हिस्ट्री है। अर्थात अब कोई विचारधारा की लड़ाई है ही नहीं, क्‍योंकि एक विचारधारा ने जिसे प्रजातंत्र, डेमोके्रसी, लिब्रलिज्म और मार्केट इकोनॉमी, इसने फतह किया। आज उसी को सारी दुनिया ने स्वीकार कर लिया कि अब यह व्यवस्था ही ठीक चलेगी। रूस ने भी कमोबेश इसी व्यवस्था को स्वीकार किया। यह बात 1990-91 की थी। मैं उन दिनों भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष भी था। हमारे देश में, और देशों की तरह हमने भी आर्थिक परिवर्तन किया। जिसे आज आप आर्थिक सुधारों का नाम देते हैं। हमारे नरसिंह राव जी उस समय भारत के प्रधानमंत्री और डॉ. मनमोहन सिंह उस समय वित्त मंत्री थे। उस समय भी मैंने यह बात कही थी और आज मैं यह समझता हूं कि मैंने कैसे उस समय कह दिया था। ये जो नया आर्थिक निजाम आया है सारी दुनिया के लिए, इसको बहुत समझदारी के साथ स्वीकार करना चाहिए। इसमें बहुत खतरे हैं। उस समय लोगों ने मुझसे कहा कि आप क्‍या बात कर रहे हैं, क्‍या खतरा है इसमें? मनुष्य को आजादी मिली कि वो एक तरफ तो प्रजातंत्र में जाए, दूसरी तरफ उसे संपîिा में मालिकाना हक मिल गए और बाजार की शक्ति आ गई। कंपटीशन आ गया। क्‍या परेशानी है आपको? मैंने कहा, मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैंने कहा, मैं तो न बाजार में हूं और न ही मेरे सामने कोई ऐसी चिंता है जिसकी वजह से मुझे कोई स्वयं को कष्टï हो, लेकिन मुझे लग रहा है कि यह व्यवस्था अभी बिना जाने परखे हुए, बिना अनुभव के हम इसे स्वीकार कर रहे हैं। और बड़ी तेजी से हम स्वीकार कर रहे थे भारत में। मैंने संसद में भी उस समय कहा था कि यह ठीक नहीं है। इसको बहुत समझबूझ के साथ स्वीकार करना चाहिए, फ्मश: स्वीकार करना चाहिए। क्‍योंकि हम अभी लिब्रलाइजेशन के लिए तैयार नहीं हैं।

(भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री के आउटलुक मनी अवाड्र्स में दिए संबोधन पर आधारित)

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