प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के देशव्यापी फैसले के ठीक एक दिन बाद पश्चिम बंगाल में एक गैर सरकारी संस्था परिवार सेवा संस्था के द्वारा किए जा रहे परिवार नियोजन के कामों का जायजा लेने जब यह संवाददाता कोलकाता पहुंचा तब उसे इस बात की दूर-दूर तक आशंका नहीं थी कि करीब ढाई महीने बाद अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक फैसला सिर्फ परिवार सेवा संस्था ही नहीं बल्कि भारत भर में परिवार नियोजन और वैधानिक गर्भपात के काम में सहयोग दे रही ऐसी गैर सरकारी और सरकारी संस्थाओं की आर्थिक मदद पर करारी चोट पहुंचाएगा। देश के नोटबंदी की तरह एनजीओ पर ट्रंप की यह नोटबंदी भारी पडऩे वाली है।
दरअसल ट्रंप ने अपने पूर्ववर्ती रिपद्ब्रिलकन राष्ट्रपतियों की तरह 1984 में रोनाल्ड रीगन के शासनकाल में बनाए गए उस कानून को फिर से लागू कर दिया जिसमें यह प्रावधान है कि कोई भी संस्था यदि गर्भपात के काम में लिप्त है तो उसे किसी भी तरह की अमेरिकी मदद नहीं मिलेगी फिर चाहे संबंधित देश में गर्भपात वैधानिक रूप से सही ही क्यों न हो। भले ही कोई संस्था परिवार नियोजन के कितने भी अच्छे काम क्यों न कर रही हो मगर यदि वह परिवार नियोजन के अन्य उपायों के अलावा महिलाओं का सुरक्षित गर्भपात भी करवाती है तो उस संस्था को अमेरिका की ओर से कोई मदद नहीं दी जाएगी। गौरतलब है कि अमेरिका की संघीय सरकार की ओर से परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए पूरी दुनिया में आर्थिक मदद दी जाती है और ट्रंप के इस फैसले से भारतीय संस्थाओं को करीब 70 करोड़ रुपये की सीधी आर्थिक मदद से, जबकि करीब 150 करोड़ रुपये के गर्भनिरोधक सामग्रियों से हाथ धोना पड़ सकता है। यह कानून साफ कहता है कि अगर संबंधित संस्था दूसरे दानदाताओं से जुटाए गए पैसे से भी गर्भपात के काम में लिप्त है तो उसे अमेरिकी मदद नहीं मिलेगी। भारत में परिवार नियोजन के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश गैर सरकारी संगठन महिलाओं के गर्भपात के काम भी संलग्न हैं क्योंकि यह परिवार नियोजन का एक अनिवार्य अंग है। भारत में गर्भपात अवैध नहीं है। दिलचस्प तथ्य यह है कि अमेरिका में जब डेमोक्रेटिक पार्टी का राष्ट्रपति पद संभालता है तो इस कानून को समाप्त कर देता है और रिपद्ब्रिलकन राष्ट्रपति इसे फिर से लागू कर देता है। ओबामा के शासनकाल में आठ वर्षों से यह कानून लागू नहीं था।
ट्रंप के फैसले से भारत के गांवों की महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित होंगी। गांवों की महिलाओं के लिए गर्भपात के सुरक्षित और सस्ते उपाय का महत्व कितना अधिक है इसका पता बिना इन इलाकों की महिलाओं से बात किए नहीं चल सकता। परिवार सेवा संस्था के कोलकाता और बारासात के िक्लनिकों में कई महिलाओं से आउटलुक ने बात की। इनमें अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं भी शामिल थीं। समाज के बेहद कमजोर तबके से आने वाली इन महिलाओं के लिए ये िक्लनिक उम्मीद की किरण साबित हो रहे हैं क्योंकि बेहद कम खर्च में यहां उन्हें एबॉर्शन की सुविधा उपलब्ध है। इसमें दवाओं के जरिए और ऑपरेशन के जरिए दोनों तरीके से गर्भपात कराए जाते हैं।
क्वालिफाइड डॉक्टर, नर्स, ऑपरेशन थिएटर और सबसे बढक़र काउंसिलिंग की बेहतरीन सुविधाओं की वजह से ये महिलाएं यहां इलाज करवाने में सहज महसूस करती हैं। अल्पसंख्यक समुदाय की एक महिला यहां अपने पति के साथ आई थी जिसने बताया कि उसके पहले से दो बच्चे हैं और वह और बच्चा नहीं चाहती। ऐसे में उसने दवाओं के जरिए गर्भपात का विकल्प चुना है और इसके लिए इस संस्था में आई है।
परिवार सेवा संस्था के तकनीकी परामर्शदाता डॉ. आलोक बनर्जी ने आउटलुक को बताया कि देश में परिवार नियोजन के काम में गैर सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। खुद परिवार सेवा संस्था ही पश्चिम बंगाल के अलावा दिल्ली, यूपी, बिहार आदि में कई िक्लनिक चला रहा है, जहां परिवार नियोजन के उपाय मसलन, गर्भनिरोधक गोलियां, कंडोम, कॉपर टी आदि की सुविधा के साथ-साथ गर्भपात की सुविधा भी समाज के उस तबके की महिलाओं को दी जाती है जो महंगे अस्पतालों का खर्च नहीं उठा सकतीं या सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था के कारण वहां जाना नहीं चाहतीं।
परिवार नियोजन के क्षेत्र में नीतिगत बदलाव के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा बताती हैं कि पूरी दुनिया में मातृ मृत्यु की कुल संख्या के एक चौथाई मामले अकेले भारत में होते हैं और यदि गर्भनिरोधकों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो इसमें से आधी मौतों को टाला जा सकता है। भारत में एक वर्ष में गर्भनिरोधकों के प्रयोग के कारण एक वर्ष में करीब 86 हजार माओं की मौतों को टाला जाता है। वैसे देश में प्रति एक लाख जीवित जन्म के समय मातृ मृत्यु की संख्या 167 हैं। अगर गर्भनिरोध के उपाय न हों तो यह आंकड़ा 300 से ऊपर जा सकता है। वैसे भी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां सरकारी और निजी चिकित्सा की स्थिति बदहाल है मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख पर 285 है।
ऐसे में जरा ट्रंप के फैसले के असर का आकलन करें। अमेरिकी सरकार की संस्था यूएसएड ने वर्ष 2015 में भारत में परिवार नियोजन और प्रजनन संबंधित सेवाओं पर करीब 143 करोड़ रुपये खर्च किए थे। अभी 2016 के आंकड़े सामने नहीं आए हैं मगर 2014 में उसने सिर्फ 90 करोड़ खर्च किए थे, यानी एक वर्ष में करीब 53 करोड़ रुपये की वृद्धि। इस हिसाब से 2016 का आंकड़ा करीब 200 करोड़ रुपये पहुंचता है। ट्रंप के फैसले से इस मदद पर रोक लगनी तय है जो कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए किसी झटके से कम नहीं है। फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की महासचिव कल्पना आप्टे कहती हैं कि उनका संगठन गर्भपात से इतर भी कई स्वास्थ्य कार्यफ्म चलाता है मगर चूंकि संगठन गर्भपात के काम में भी संलग्न है इसलिए उसे अमेरिकी मदद से हाथ धोना पड़ेगा, जिससे दूसरे स्वास्थ्य कार्यफ्म भी प्रभावित हो जाएंगे। भारत में हर वर्ष करीब 70 लाख गर्भपात होते हैं जिसमें से करीब आधे अवैध तरीके से होते हैं। वैध तरीके से होने वाले गर्भपात में गैरसरकारी संस्थाओं की बड़ी भागीदारी होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के इस फैसले से इन संस्थाओं को कड़ी चोट पहुंचने वाली है।
डॉक्टर आलोक बनर्जी बताते हैं कि भारत में परिवार नियोजन के लिए पिछले कई दशकों में किए गए प्रयास के परिणाम अब सामने आए हैं। भारत की कुल प्रजनन दर जो 1995 में 3.5 फीसदी थी वह 2013 में घटकर 2.3 पर आ गई है। जाहिर है कि इसमें सरकार के साथ-साथ गैर सरकारी संस्थाओं की बड़ी भूमिका है और गैर सरकारी संस्थाओं को इस काम के लिए अमेरिका से बड़ी मदद मिलती रही है। डॉक्टर बनर्जी बताते हैं कि अब भारत सरकार पूरे देश में परिवार नियोजन के लिए साल में एक बार लगने वाले गर्भनिरोधक इंजेक्शन को बड़े पैमाने पर लॉन्च करने जा रही है। परिवार नियोजन का यह बेहद कारगर और सुरक्षित साधन साबित होने वाला है।