महानता की प्रशंसा कीजिए। कभी अवसर मिले तो विनम्रता से यह पूछने का प्रयास भी करें कि 'श्रीमानजी, 20 हजार रुपये की मंथली इनकम से आपका घर परिवार कैसे आनंद और सुख-सुविधा से रह लेता है?’ जी हां, देश के सांसदों-विधायकों ने सर्वोच्च संवैधानिक संस्था निर्वाचन आयोग को अपनी वार्षिक आय की महत्वपूर्ण 'प्रामाणिक’जानकारियां उपलब्ध कराई हैं। आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार संसद या विधानसभाओं से चुने हुए कानून निर्माता प्रतिनिधियों में से करीब 35 प्रतिशत (एक तिहाई से अधिक) ने लिखित में यह जानकारी दी है कि उनकी वार्षिक आय मात्र ढाई लाख रुपये से भी कम है। यदि हम आप जोड़-बाकी लगाएं, तो समझ सकते हैं कि 'बेचारों’को केवल 20 हजार रुपये महीने की आय हो रही है। लगभग 1,141 सांसदों-विधायकों (कुल संख्या के 24 प्रतिशत) ने आयकर नियमों के प्रावधान के तहत आमदनी पर आयकर देने से पूरी छूट मिलने या कोई आय ही नहीं होने की जोरदार अधिकृत जानकारी दी है। हां, 40 प्रतिशत निर्वाचित प्रतिनिधियों ने माना है कि उनकी वार्षिक आय ढाई लाख से 10 लाख रुपये तक है। यानी किसी की मासिक आय एक लाख से भी कम है। इसमें उनके परिजनों-जीवनसाथी और निर्भर माता-पिता या बच्चों की आमदनी भी शामिल कर लें, तो भी सालाना आय 10 लाख रुपये से कम है।
एक हद तक देश के विधि एवं भाग्य विधाताओं में से करीब 50 प्रतिशत ने अपनी घरेलू संपत्ति करीब दो-दो करोड़ रुपये की दर्ज कराई है। करीब 70 प्रतिशत नेतागण की चल-अचल संपत्ति एक करोड़ रुपये से अधिक है। 28 प्रतिशत ने माना है कि उनकी कुल संपत्ति 5 करोड़ रुपये से अधिक की है।
हाल के महीनों में नोटबंदी के साथ इनकम टैक्स विभाग सर्वाधिक सक्रिय हुआ है। बैंकों में जमा-निकासी पर सरकार की 'तीसरी आंख ने विभिन्न स्तरों की छानबीन शुरू की है। रुपयों की जमा-निकासी में तनिक आशंका के आधार पर लाखों लोगों को नोटिस जारी हो रहे हैं। नकद खर्च पर अंकुश लग रहा है। काला धन रोकने के हर अभियान को जनता का व्यापक समर्थन मिलने की अपेक्षा स्वाभाविक है। अघोषित आमदनी के करीब 20 वर्षों से लंबित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक नेत्री शशिकला सहित तीन लोगों को चार साल की जेल एवं जुर्माने की सजा भी दी है। इसलिए यह सवाल उठता है कि अघोषित आय की आशंका क्या इक्का-दुक्का राजनीतिज्ञों या अन्य प्रभावशाली वर्ग के लोगों के बारे में ही होती है। सारे नियम-कानून के बावजूद न्यूनतम टैक्स देने से बचने में कौन अधिक चतुर है? नेता-अफसर-व्यापारी-नौकरीपेशा लोग, कंपनी के शीर्षस्थ अथवा मध्यम श्रेणी के प्रबंधक, डॉक्टर, वकील, पत्रकार, आर्किटेक्ट, आर्टिस्ट या किसी अन्य पेशे से जुड़े लोग? आखिरकार, इनकम टैक्स के नियम-कानून तो सब पर लागू हैं और अधिकांश लोग टैक्स के फंदे से बचने का रास्ता ढूंढऩे की कोशिश करते हैं।
फिलहाल नेताओं की आमदनी की चर्चा चल रही है, तो हम इससे जुड़े तथ्यों की ओर ध्यान देना उचित समझते हैं। वैसे समय-समय पर केंद्र में सांसदों और प्रदेशों में विधायकों के वेतन-भत्ते-सुविधाओं को बढ़ाने की मांग उठती रही है। 'जनता के सेवक’ सरकारी अधिकारियों के वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत बढऩे वाले वेतन-भत्तों से तुलना की बात भी उठाते हैं। लोकतंत्र में उनकी मांगों के औचित्य पर हम आप सवाल नहीं उठा सकते या उठाएंगे तो उन पर अधिक असर भी नहीं होने वाला है। बहरहाल, निर्वाचन आयोग को विवरण देते समय माननीय सांसदों-विधायकों ने संभवत: आयकर विशेषज्ञों या चार्टर्ड अकाउंटेंट से सहयोग लिया होगा अथवा वे स्वयं इनकम के समीकरणों की बाजीगरी रखते हों। लेकिन 2016 तक के रिकॉर्ड के अनुसार भारतीय सांसदों के वेतन-भत्तों और सुविधाओं की जानकारी भी याद कर लेनी चाहिए। अधिकृत संसदीय रिकॉर्ड के अनुसार प्रति सांसद मासिक वेतन- 50 हजार रु., निर्वाचन क्षेत्र मासिक भत्ता- 45 हजार रु., सांसद का निजी कार्यालय मासिक भत्ता- 15 हजार रु., सचिव-सहायक इत्यादि पर संसद से मासिक भुगतान की राशि- 30 हजार रु., संसद सत्र अथवा समिति की बैठक का प्रतिदिन भत्ता- 2 हजार रु.। मतलब वे केवल तनख्वाह को अपनी इनकम कह सकते हैं। वैसे कृपया इनको मिलने वाली सुविधाओं को आमदनी या सरकारी खजाने से खर्च की तरह जोडऩे का प्रयास करें। सांसदों को राजधानी दिल्ली के वी.आई.पी. इलाकों में मुफ्त बंगले या फ्लैट, टेलीफोन और पेयजल की सुविधा होती है। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग अतिरिक्त फर्नीशिंग इत्यादि की व्यवस्था पर नाममात्र का किराया ले सकता है। सांसद महोदय को देश-विदेश की आधुनिकतम चिकित्सा सेवा का पूरा खर्च सरकारी खजाने से जाता है। फिर प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित डिब्बे में अपने जीवनसाथी के साथ मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा दी गई है। एक सहायक दूसरी श्रेणी में जा सकता है। इसी तरह साल में 34 विमान यात्रा मुफ्त में कर सकते हैं। यदि नेता सत्तारूढ़ दल के हों, तो मंत्री बनने पर देश-विदेश की यात्राओं की सारी सुविधाएं, भत्ते इत्यादि का खर्च मंत्रालयों द्वारा किया जाता है।
संसद के अंदर या बाहर के मंचों पर माननीय राजनेता अमेरिका, यूरोप इत्यादि देशों के सांसदों के वेतन का आंकड़ा भी देते हैं। विदेशी मुद्रा के हिसाब से जोड़-भाग करने पर उनका वेतन अधिक ही दिखेगा। लेकिन ये तथ्य कोई नहीं बताता कि जिस ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था के आधार से भारतीय संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया, वहां वेतन-भत्ते के अलावा आवास, यात्रा आदि का लाभ सरकारी खजाने से नहीं दिया जाता।
देश की राजधानी में सांसदों के ठाट-बाट देखकर केंद्र शासित दिल्ली प्रदेश में पहली बार सत्तारूढ़ हुई आम आदमी पार्टी के नेताओं ने भी 'खास बनने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। केजरीवाल एंड कंपनी ने भारी बहुमत के बल पर विधानसभा में विधेयक पारित कर 'आम विधायकों को 400 गुना वेतन-भत्ते, सुविधाएं बढ़ाने का फैसला किया। 'आप के माननीय विधायकों ने सांसदों से भी अधिक अपने निर्वाचन क्षेत्र भत्ते के नाम पर 50 हजार रुपये, मतदाताओं को दर्शन देने के संपर्क भत्ते के लिए 10 हजार रुपये, अपनी कारें घुमाने के लिए 30 हजार रुपये, नौकर-चाकर के लिए 70 हजार रुपये, घर के अंदर या बाहर दफ्तर के नाम पर एक कमरे के लिए 25 हजार रुपये महीने का इंतजाम किया है। फिर इस कमरे की सजावट के लिए एक ही झटके में 1 लाख 60 हजार रुपये और शानदार कार खरीदने के लिए ब्याज मुक्त 12 लाख रुपये का ऋण देने की व्यवस्था की है। यह उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों के विधायकों से भी कई कदम आगे हैं। गनीमत है कि राष्ट्रपति महोदय ने दिल्ली सरकार के इस नये फरमान को स्वीकृति नहीं देकर लौटा दिया है। इनकम टैक्स विभाग के पुराने मास्टर केजरीवाल 'गरीब’नेताओं के लिए दूसरी गली से रास्ता निकालकर लाभ दिलवा सकते हैं।