मध्यप्रदेश में एक दर्जन हिंदू, पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई जासूसों के फेर में फंस गए हैं। हवाला कारोबार, हथियारों की तस्करी के साथ भारत के सैन्य ठिकानों के साथ फौज की गतिविधियों की जानकारी इनके जरिये जुटाई जा रही है। इस बात की पूरी आशंका है कि यह काम हर राज्य में चल रहा है। डिजिटल इंडिया के फेर में भारत सरकार ने देश को खतरे में धकेल दिया है। सरकारके पास देश के बाहर से आने वाले फोन कॉल्स के लिए एक निगरानी तंत्र होता है। लेकिन पुलिस के हाथ ऐसे यंत्र लगे हैं जिसने इस सिस्टम को फेल कर दिया है। चीन में निर्मित ये सिम बॉक्स भारत में धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं। हाल ही में दिल्ली के प्रगति मैदान में डिजिटल इंडिया को साकार करने के लिए लगाए गए इलेक्ट्रॉनिक मेले कनवर्जेंस इंडिया फेयर में ये उपकरण धड़ल्ले से बिके हैं।
मामले की पोल पिछले साल नवंबर में तब खुली जब जम्मू-कश्मीर के आरएसपुरा थाना क्षेत्र में सैन्य इलाकों और सेना की गतिविधि की जासूसी के आरोप में सतविंदर सिंह और दादू की गिरफ्तारी हुई। पुलिस ने जब इनके बैंक खातों में हुए लेनदेन को खंगाला तो पता चला इनके पास मध्य प्रदेश के सतना जिले के बैंकों से पैसा पहुंचाया गया था। मध्य प्रदेश के आतंक विरोधी दस्ते ने सूचना मिलने के बाद पड़ताल शुरू की। जांच के दौरान पुलिस ने बलराम सिंह नामक विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यकर्ता को पकड़ा। एटीएस प्रमुख संजीव शमी ने बताया कि बलराम सिंह ने 100 से अधिक लोगों के नाम पर खाते खुलवा रखे थे। खाताधारक को 5 हजार रुपये देकर उनके डेबिट कार्ड हासिल कर लिए थे। इन डेबिट कार्ड के जरिये ही बलराम सिंह, सतविंदर और दादू के साथ ही एक दर्जन से ज्यादा लोगों को पैसे बांट रहा था। उसके पास सिम बॉक्स था जिसके जरिये विदेशों से आने वाले इंटरनेट कॉल को जीएसएम की सिम वाले नंबर में बदलकर आगे बात कराई जा रही थी। बलराम सिंह द्वारा खुलवाए गए खातों में एक दिन में पांच लाख रुपये तक जमा कराए गए। उसे इंटरनेट कॉल से ही जानकारी दी जाती थी कि किस खाते में कितना रुपया जमा कराया गया है और उसे कहां भिजवाना है। पहले एटीएस बलराम सिंह को ही इस गोरखधंधे का सरगना समझ रही थी लेकिन बलराम से पूछताछ से पहले ही एटीएस ने जेल में बंद ड्रग कारोबारी रज्जन तिवारी को रिमांड पर ले लिया। रज्जन तिवारी गांजा, शराब और हत्या की सुपारी का काम करता है। वह कुख्यात गांजा तस्कर अनूप जायसवाल उर्फ जज्सा के अंतरराज्यीय गिरोह का सहयोगी है जिसका नेटवर्क उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा में फैला है। रज्जन पहले पूर्व केंद्रीय जेल अधीक्षक संजय पाठक की हत्या की साजिश करने वाले सिमी आतंकवादियों को छुपाने और उन्हें हथियार मुहैया कराने का आरोपी भी रहा है। रज्जन तिवारी का नाम एटीएस की जांच के दौरान ट्विस्ट के रूप में दिख रहा है। क्योंकि पहले दिन जब एटीएस ने इस गिरोह का भंडाफोड़ किया था तो उसने बताया कि पूरे जासूसी कांड का मास्टर माइंड दिल्ली निवासी कोचिंग सेंटर संचालक गुलशन सेन है। गुलशन के बारे में कहा जाता है कि वह अफगानिस्तान में पांच साल अमेरिकन आर्मी के लिए आईटी/कम्युनिकेशन एक्सपर्ट के रूप में काम कर चुका है। एटीएस ने यह आशंका भी जताई है कि गुलशन अब संभवत: पाकिस्तान की आईएसआई के लिए काम कर रहा है। गुलशन पर मध्य प्रदेश के अलावा आंध्रप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा उत्तर प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में तकरीबन 1000 सिम बॉक्स किराए पर मुहैया कराने का भी आरोप है। लेकिन हफ्ते भर बाद ही इस गिरोह का मास्टरमाइंड गुलशन सेन एटीएस की जांच में गुलशन से रज्जन हो गया। इस खुलासे से घबराई राज्य सरकार के दबाव में एटीएस ने मामले को राष्ट्रद्रोह से बदलकर साधारण ड्रग हथियार और हवाला कारोबार तक सीमित करने के लिहाज से पैंतरा बदला है। आउटलुक ने प्रदेश के डीजीपी ऋषि शुक्ला और एटीएस चीफ संजीव शमी से उनका पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा।
इस मामले में भोपाल से एटीएस ने भारतीय जनता युवा मोर्चा आईटी सेल के जिला संयोजक धु्रव सक्सेना, मनीष गांधी, मोहित अग्रवाल सहित कुल 11 लोगों को पकड़ा है, जिनके पास से सिम बॉक्स बरामद हुए हैं। चांैकाने वाली बात यह है कि एटीएस ने ध्रुव सक्सेना और मनीष गांधी को पुलिस रिमांड की अवधि पूरी होने से पहले ही अदालत से अनुरोध कर जेल भिजवा दिया। अभी तक वे चेहरे सामने नहीं आए हैं जो विदेशों से इन सिम बॉक्स के जरिये संपर्क कर रहे थे। पुलिस इस कारोबार में उलझे लोगों तक ही सिमट कर रह गई है, जबकि असली अपराधी अभी गिरफ्त से बाहर है। देश के बाहर से कौन उनसे बात कर रहा था? उन्हें कौन पैसा पहुंचा रहा था? यह तमाम सवाल अनुत्तरित रह गए हैं।
आंतरिक व्यवस्था में पोल ही पोल
सतविंदर के बैंक खातों के जरिये भोपाल एटीएस ने एक खुलासा तो कर दिया है लेकिन यह काम दूसरे राज्यों में भी नहीं हो रहा हो इसकी आशंका को कतई नहीं नकारा जा सकता। बहरहाल दो साल से भोपाल में चल रहे इस नेटवर्क के खुलासे के बाद मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ऋषि शुक्ला ने दूसरे राज्यों और आईबी को अलर्ट कर दिया है। कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सरकार की नाक के नीचे भाजपा नेताओं द्वारा चलाए जा रहे इस गोरखधंधे के लिए शिवराज सिंह सरकार को आड़े हाथों लिया है। लेकिन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों से हटकर लाख टके का सवाल यह है कि देश में डिजिटल क्रांति के नाम पर ऐसे-ऐसे उपकरण बाजार में उतार दिए गए हैं जो देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा पर सवाल खड़े करते हैं। सिम बेचने वाली टेलीकॉम कंपनियों ने बगैर पुख्ता तहकीकात के सैकड़ों सिम इन अपराधियों के हाथों तक पहुंचा दिए। जबकि इन कंपनियों को किसी एक सिम से एक दिन में 300-400 मिनट बातचीत होने पर उसकी जानकारी और रिकार्ड सुरक्षा एजेंसियों को मुहैया कराना चाहिए। लेकिन इन कंपनियों ने अपने मुनाफे के फेर में अंधाधुंध सिम बांटा और फिर मुनाफा भी कमाया। इसमें सरकार की नीतियों की भी पोल खुली है जो बड़ी फोन कंपनियों की लॉबी के सामने घुटने टेके हुए है। ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई करने के लिए दूरसंचार मंत्रालय ने एक संस्था टर्म (टेलीफोन इनफोर्समेेंट रिसोर्स एंड मॉनीटरिंग) बना रखी है लेकिन उसने भी कोई कार्रवाई नहीं की है। भारत जैसे देश में बढ़-चढक़र इंटरनेट का इस्तेमाल तो हो रहा है लेकिन इंटरनेट और उसके जरिए हो रहे साइबर अपराधों की निगरानी की नीति नहीं बन पा रही है। इसके पीछे भी उस पर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की लॉबी काम कर रही है। इसके चलते इंटरनेट निगरानी नीति का मसौदा भारत सरकार की कमेटी की विचार प्रक्रिया में उलझा हुआ है। इसके विपरीत देखा जाए तो सिंगापुर में डाटा सर्विलांस (निगरानी) का पुख्ता सिस्टम है। अमेरिका में इंटरनेट पर होने वाली हर गतिविधि उनके सर्वर में जमा होती रहती है। जरा भी गड़बड़ी दिखे तो वहां भी सुरक्षा एजेंसियां तुरंत सक्रिय हो जाती हैं। डिजिटल क्रांति के नाम पर बेधडक़ और बिना किसी निगरानी के डाटा परोसा जा रहा है। देश में ऐसे सिम बॉक्स उपलब्ध हैं जिनमें एक डिब्बे में 8, 16, 32, 64 से लेकर 128 सिम को कनेक्ट कर विदेश से आने वाले इंटरनेट कॉल को देसी कॉल में बदला जा सकता है। यही नहीं भारतीय सुरक्षा एजेंसियां अभी इस बात का खुलासा नहीं कर रही हैं कि सिम बॉक्स के साथ ही जीएसएम सर्विलांस सिस्टम का भी उपयोग हुआ है। इसके जरिए फोन सुनने वाले के मोबाइल पर साधारण सिम के नंबर के बजाय अति विशिष्ट नेता, अफसर या सैन्य अधिकारियों के मोबाइल नंबर दिखाई देने लगते हैं। सेना के मूवमेंट की जानकारी सेना का कोई भी कारिंदा बगैर जाने- पहचाने नंबर देखे नहीं दे सकता।