अन्ना द्रमुई की प्रमुख वी के शशिकला को भले ही सजा हो गई हो पर वह जेल से ही तमिलनाडु सरकार चलाने की पूरी कवायद में लगी हैंै। मुख्यमंत्री ई.के. पलानीस्वामी जब विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर रहे थे तब बेंगलुरु मेंजेल में बंद शशिकला पूरी कार्यवाही देख रही थीं। बाद में उन्होंने पलानीस्वामी को फोन भी किया और बधाई देने के बहाने निर्देश भी दिए। इससे पहले जब उन्होंने अपने समर्थकों को एक रिसॉर्ट में रखा तो उन पर इन्हें बंधक बनाने के आरोप तक लगे। उन्होंने इससे विचलित हुए बिना पलानीस्वामी पर दांव लगाया और ओ पन्नीर सेल्वम को रास्ते से हटाने में सफलता हासिल की।
पांच दिसंबर को अन्ना द्रमुक की सर्वेसर्वा रहीं जे जयललिता ने करीब 75 दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद आखिरी सांस ली। इसके बाद उनके विश्वस्त रहे ओ पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनाया गया। पन्नीरसेल्वम शशिकला को पसंद नहीं थे। शशिकला पहले पार्टी की महासचिव बनीं फिर उन्होंने पांच फरवरी को खुद को विधायक दल का नेता भी चुनवा लिया। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी शुरू हो गई। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और शशिकला को आय से अधिक संपत्ति मामले में चार साल की सजा सुनाई गई। वह सजा खत्म होने के बाद छह साल तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगी। ऐसे में उनकी इच्छा थी कि राज्य का मुख्यमंत्री वह शख्स बने जो उनका विश्वासी हो। पलानीस्वामी का नाम ऐसे व्यक्ति के रूप में उभरा और उन्हें ही अन्ना द्रमुक विधायक दल का नेता चुन लिया गया। पलानीस्वामी का नेता चुना जाना पन्नीरसेल्वम को रास नहीं आया और उन्होंने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इस घटनाफ्म के बीच राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा। जब उन्होंने विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की तक ऐसे घटनाफ्म हुए जो शर्मनाक करने वाले थे। सरकार ने 122-11 के अंतर से विश्वास मत हासिल भले ही कर लिया, लेकिन विधानसभा की कार्यवाही विधायकों की अभद्र हरकतों और हंगामे की भेंट चढ़ गई। 18 फरवरी की जैसे ही विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई विपक्षी सदस्यों ने हंगामा करना शुरू कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष धनपाल पर कागज फेंके गए। नेता प्रतिपक्ष एम के स्टालिन की कमीज फाड़ी गई। हंगामा कर रहे विधायकों ने कुर्सियां फेंकनी शुरू कर दीं और माइक उखाड़ दिए। हालात इतने बेकाबू थे कि लग रहा था कि वहां जंग हो रहा है। यह तब हुआ जब स्पीकर ने द्रमुक विधायकों को सदन से बाहर निकालने के आदेश दिए। एक ओर मार्शल द्रमुक विधायकों को निकालने के लिए लगे थे, तो दूसरी ओर ये विधायक अपनी पूरी ताकत से इसका विरोध कर रहे थे। आदेश से गुस्से में आए पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष स्टालिन ने मार्शलों से यहां तक कह दिया कि लोग इस छद्म शासन के खिलाफ हैं, हम लोगों के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने धमकी दी कि यदि हमें जबरन निकालेंगे तो हम खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए मजबूर हो जाएंगे। हम खुदकुशी पर भी विचार कर सकते हैं।